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HC की जमीन पर कब्जा कर बनी अवैध मस्जिद हटाने की मांग, प्रशासन से जानकारी तलब

महाधिवक्ता भवन और हाईकोर्ट के लिए अधिग्रहीत नजूल भूमि पर अनाधिकृत कब्जा कर बनी मस्जिद को हटाने और अतिक्रमण कराने के दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही की मांग में दाखिल जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (30 मार्च) को जिला प्रशासन, एडीए और हाईकोर्ट महानिबंधक से एक हफ्ते में जानकारी तलब की है।

tiwarishalini
Published on: 30 March 2017 7:25 PM IST
HC की जमीन पर कब्जा कर बनी अवैध मस्जिद हटाने की मांग, प्रशासन से जानकारी तलब
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इलाहाबाद: महाधिवक्ता भवन और हाईकोर्ट के लिए अधिग्रहीत नजूल भूमि पर अनाधिकृत कब्जा कर बनी मस्जिद को हटाने और अतिक्रमण कराने के दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही की मांग में दाखिल जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (30 मार्च) को जिला प्रशासन, एडीए और हाईकोर्ट महानिबंधक से एक हफ्ते में जानकारी तलब की है।

यह आदेश चीफ जस्टिस डी.बी.भोसले और जस्टिस यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने वकील अभिषेक शुक्ला की याचिका पर दिया है। हाईकोर्ट के पास जी.टी.रोड स्थित नजूल भूमि आजिम अहमद काजमी के बंगले को राज्य सरकार ने हाईकोर्ट कार्यालय के लिए लिया। काजमी को मुआवजा भी दे दिया गया। 8 हजार वर्ग मीटर कुल जमीन में से चार हजार वर्ग मीटर महाधिवक्ता कार्यालय और चार हजार वर्ग मीटर जमीन हाईकोर्ट कार्यालय के लिए दिया गया।

इसी जमीन के बीच में 430 वर्ग मीटर जमीन में अवैध रूप से मस्जिद बना ली गई और 380 वर्ग फीट जमीन पर सड़क बना ली गई। 30 दिसंबर 2004 को डीएम इलाहाबाद ने रिपोर्ट दी थी कि टीन शेड है, मस्जिद नहीं। बिना शासन की अनुमति लिए मस्जिद नहीं बनाई जा सकती। 8 जनवरी 2016 को एडीएम नजूल ने कहा 17 जुलाई 1998 में पट्टा नवीनीकरण के समय कोई मस्जिद नहीं थी।

एडीएम नजूल की ही निरीक्षण रिपोर्ट में 6 दिसंबर 1999 को कहा गया कि भूमि पर कोई मस्जिद नहीं है। हाईकोर्ट को यह जमीन दे दी गई। इसी जमीन में टीन शेड लगाकर कुछ वकीलों ने नमाज पढ़ना शुरू किया। बाद में कुछ जज भी नमाज पढ़ने जाने लगे और धीरे-धीरे मस्जिद बन गई। अधिकारियों की शिथिलता के कारण हाईकोर्ट की जमीन पर अवैध कब्जा कर बनाई गई मस्जिद को हटाए जाने की याचिका में मांग की गई है। याचिका की सुनवाई एक सप्ताह बाद होगी।

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इलाहबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रतापगढ़ बाघराय थाना क्षेत्र में 11 दिसंबर 2016 को राजेश सिंह की जघन्य हत्या के आरोपी पवन मिश्र की अर्जी पर विवेचना नवाबगंज थाना इलाहाबाद को स्थानान्तरित करने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह से पूछा है कि आरोपी के प्रार्थनापत्र पर डीआईजी इलाहाबाद ने 28 फरवरी 2017 को हत्या की विवेचना बाघराय से नवाबगंज थाना पुलिस को कैसे सौंप दी।

न्यायिक निर्णय के अनुसार आरोपियों की मांग पर विवेचना स्थानान्तरित नहीं की जा सकती। याचिका की सुनवाई 17 अप्रैल को होगी। कोर्ट ने नियम के विपरीत विवेचना स्थानान्तरित करने पर क्षोभ व्यक्त किया।

यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति के.पी.सिंह की खण्डपीठ ने मृतक की पत्नी पूनम सिंह की याचिका पर दिया है। याची का कहना है कि 11 दिसम्बर 16 को हुई हत्या की पुलिस विवेचना कर रही थी। विवेचना को प्रभावित करने के लिए मनगढ़ंत आरोप लगाते हुए आरोपी ने डीआईजी से शिकायत की।

राजनैतिक दबाव डालकर विवेचना नवाबगंज पुलिस को सौंप दी है। हाईकोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि आरोपी की शिकायत पर विवेचना स्थानान्तरित नहीं की जा सकती। याची अधिवक्ता ने कहा कि हत्या की विवेचना को प्रभावित करने के लिए यह आदेश दिया गया है। इस पर कोर्ट ने गृह सचिव से 17 अप्रैल को हलफनामा मांगा है।

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