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सूबे में विकास की पड़ताल: नेता मालामाल, जनता बेहाल

raghvendra
Published on: 24 Nov 2017 12:21 PM IST
सूबे में विकास की पड़ताल: नेता मालामाल, जनता बेहाल
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नीलमणि लाल

लखनऊ: इसे विरोधाभास कहें या लोकतंत्र का चलन, विकास की गाड़ी सिर्फ हमारे नेताओं को ही आगे खींच पा रही है। हमने यूपी के पांच जिलों आजमगढ़, गोंडा, गाजीपुर, सोनभद्र और कुशीनगर की पड़ताल की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। इन पांचों जिलों में विकास की दौड़ में नेताओं ने इलाके की जनता को बहुत दूर छोड़ दिया है। इन जिलों में से किसी भी नेता की समृद्धि के बराबर कोई भी इलाका या कोई भी शख्स दौड़ नहीं पाया है। दूसरी ओर जनता की समस्याओं को देखें तो उनकी ढेर सारी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। इन जिलों से जीतने वाले नेता बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठे मगर इलाके के विकास व जनसमस्याओं को सुलझाने के प्रति उदासीन ही बने रहे। नतीजतन आम लोग अब भी बेहाल जिंदगी जी रहे हैं।

कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल है। पिछले दस साल से यहां एयरपोर्ट बन रहा है। गेंदा सिंह नाम के एक स्थानीय नामचीन नेता को इस इलाके के गन्ना किसानों की दिक्कतें इस हद तक पता थीं कि लोग उन्हें गन्ना सिंह कह देते थे, लेकिन आज इस पूरे जिले में एक भी चीनी मिल ठीक से नहीं चलती। गन्ना किसान बेहाल हैं। वह कोल्हू पर गन्ना बेचने को मजबूर हैं। उनकी आधी शक्ति ‘पर्ची’ जुटाने में निकल जाती है। उपज तो बढ़ गयी मगर इलाके में एक भी नयी चीनी मिल नहीं लगी। पुरानी मिलें आधी क्षमता की पेराई कर रही हैं।

यहां से कांग्रेस जमाने में आर.पी.एन.सिंह केन्द्र सरकार में मंत्री थे। उनके पिता सी.एस.पी. सिंह भी मंत्री रहे। राजमंगल पांडे प्रदेश से लेकर केंद्र तक मंत्री रहे, पर जिले में एक हाथों को भी उद्योग में काम नहीं मिला। सिर्फ नये मालवीयों ने कुछ स्कूल खोले जहां लोग आधी तनख्वाह पर काम करने को विवश हैं। अब भी इस जिले में चूहे मारकर खाने का चलन दिख जाएगा। भूख से मरने की पहली प्राथमिकी मुलायम राज में इसी जिले में लिखी गयी थी।

आजमगढ़ में सडक़ों की हालत खस्ता

अलीगढ़ मुस्लिम यूनीविर्सिटी में मुस्लिम शब्द जोड़े जाने से नाराज शिब्ली नोमानी ने आजमगढ़ को शिक्षा के केंद्र के रूप में चुना था। यहां के लोग धारा से विपरीत चुनावी नतीजे देते रहे हैं। वैसे यह जिला समाजवादियों का पुराना गढ़ रहा है। चरण सिंह कहा करते कि उनकी दो आंखें हैं-एक बागपत और दूसरी आजमगढ़। एक दौर में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा सांसद और विधायक आजमगढ़ के ही थे। यह समाजवादी सरकार का दौर था।

मुलायम सिंह को भी आजमगढ़ सुरक्षित पनाह लगता है तभी तो अपनी तीसरी पीढ़ी को राजनीति में जगह देने के लिए उन्होंने मैनपुरी को खाली करते ही अपने लिए आजमगढ़ को चुना। चन्द्रजीत यादव इंदिरा युग में यहां के नामचीन नेता थे। आज भी आजमगढ़ को बनारस और गोरखपुर से जोडऩे वाली सड़क प्रदेश की सबसे खराब सड़क है। इन दोनों सड़कों पर चलने वाले लोग सरकार व प्रशासन को कोसते रहते हैं। इकलौती चीनी मिली किसी तरह सरकारी बैसाखी पर चलायी जाती है। पूर्वांचल विश्वविद्यालय आजमगढ़ की जगह जौनपुर कर दिया गया। मुलायम के बेटे अखिलेश के पांच साल और मुलायम सिंह यादव के तीन बार के कार्यकाल के बावजूद आजमगढ़ विकास के पैमाने पर बहुत ही पीछे है।

ये जिले बन गये पिछड़ेपन की मिसाल

गोंडा जिला भारतीय जनसंघ की सबसे सुरक्षित पनाहगाह रहा है। यहां से पूर्व पीएम रहे अटल बिहारी बााजपेयी भी चुनाव जीत चुके हैं। नानाजी देशमुख यहां से सांसद रहे पर उन्होंने अपना प्रकल्प चित्रकूट में बसाया। यहां के राजघराने के कीर्तिवर्धन सिंह और आनंद सिंह हमेशा किसी न किसी सदन में रहे। भाजपा के ब्रजभूषण शरण सिंह, कांग्रेस की सुचेता कृपलानी और राजा दिनेश प्रताप सिंह ने इस जिले के किसी न किसी क्षेत्र की नुमाइंदिगी की। आज यह जिला भारत के सबसे गंदे शहरों में अव्वल है। यहां तीन चीन मिले हैं पर सरकार के तमाम दावों के बावजूद गन्ना किसान बकाया भुगतान के लिये चीनी मिलों को रोज चक्कर काटते दिख जाते हैं।

जिले के मनकापुर में स्थित आईटीआई बंदी के कगार पर है। २४ साल से यह जिला महायोजना के प्रस्ताव का इंतजार कर रहा है। अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री बन गए, कीर्ति वर्धन और आनंद सिंह हर दल में चक्कर काट आए, सपा भाजपा और कांग्रेस तीनों जिलों के दिग्गज नेताओं को सिर छुपाने के लिए जिले में जगह मिली पर जिले की स्थिति बद से बदतर ही होती गयी।

सोनभद्र में सबसे ज्यादा बिजली मगर 25 फीसदी गांवों में अंधेरा

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आज के सोनभद्र को भारत का स्विट्जरलैंड कहा था। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा उद्योग किसी एक जिले में हैं तो वह सोनभद्र ही है। देश में सबसे अधिक बिजली सोनभद्र में बनती है, लेकिन आज भी यहां की करीब २५ फीसदी गांव रोशनी के लिए तरस रहे हैं। यहां के औद्योगीकरण ने आदिवासियों से उनका पारंपरिक रोजगार तो छीना पर उनके हाथ आज भी काम की तलाश में खाली बैठे देखे जा सकते हैं। अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आरक्षित यह सीट पारंपरिक तौर पर कांग्रेस के पास रही है। रामप्यारे पनिका और भाजपा के रामसकल के बीच यहां की सियासत घूमती रही है।

आजादी से लेकर २७ साल पहले तक प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। भाजपा के कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और रामप्रकाश गुप्ता मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मुलायम सिंह यादव ने मिर्जापुर जनपद से अलग करके सोनभद्र को जिला बनाया था। यहां आज भी इलाज के लिए बनारस और लखनऊ जाना लोगों की मजबूरी है पर इसे यहां के उद्योगों में काम करने वाले लोग वहन कर सकते हैं क्योंकि यहां के लोगों की प्रतिव्यक्ति आय काफी अच्छी है। पूरे शहर को एक बंधे के मार्फत पानी की सप्लाई की जाती है। शहर में पानी निकासी की कोई मुक्कमल व्यवस्था नहीं है। तमाम औद्योगिक इकाइयों के चलते यहां बाजार बड़ा है, लेकिन कोई व्यवस्थित बाजार नहीं है। रेनूकोट में हिंडाल्को ने अपना एक मॉल बना रखा है। कोई मल्टीप्लेक्स नहीं है। करीब दो दशकों से सोनभद्र के लिए कोई नयी ट्रेन नहीं दी गयी है।

विकास की दौड़ में काफी पिछड़ा है गाजीपुर

नरेंद्र मोदी सरकार में दो विभागों के भारीभरकम मंत्री मनोज सिन्हा गाजीपुर से सांसद हैं। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, देश के सीएजी रहे विनोद राय और तकरीबन ३० साल लगातार किसी न किसी सदन के सदस्य रहे भाजपा नेता कलराज मिश्रा भी यहीं के हैं।

उत्तर प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष व केंद्र में मंत्री रहे महेन्द्र नाथ भी गाजीपुर के हैं। इस शहर में घुसते ही पिछड़ेपन का अहसास हो जाता है। शहर के अंदर की सडक़ें बेहद टूटी-फूटी हैं। पूरे शहर के नुमाइंदों को जलकल से पानी पिलाने की जिम्मेदारी आज भी पूरी नहीं हो पा रही है। शहर में सीवरलाइन बिछाने की मांग लंबे समय से लंबित पड़ी है।

अंग्रेजों के समय यहां अफीम का कारखाना हुआ करता था जो बंदी की कगार पर है। यहां की इकलौती चीनी मिल व सूती मिल कब की बंद हो चुकी है। सपा के ओमप्रकाश सिंह और कैलाश यादव इस जिले से मंत्री होते रहे। भारतीज समाज पार्टी के ओमप्रशकाश राजभर योगी सरकार में यहीं से मंत्री हैं। मुलायम सिंह यादव के निकट सहयोगी रामकरण यादव का यह जिला रहा है। फिर भी इस जिले को चुनाव के ऐन पहले पहली मर्तबा अखिलेश यादव ने विकास के मद में बड़ी धन राशि दी पर वह भी खर्च न हो सकी।

‘इन राज्यों को नाम लेकर शर्म दिलाने की जरूरत’

नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि देश के सबसे ज्यादा पिछड़े जिलों में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है, जबकि दूसरे नंबर पर बिहार है। देश के 201 जिले शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के मामले में पिछड़े और बदहाल हैं। इन जिलों में 25 फीसदी जिले अकेले उत्तर प्रदेश के हैं। उसके बाद बिहार और मध्य प्रदेश का नंबर है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष अमिताभ कांत ने पोषण, गरीबी से पीडि़त बचपन, शिक्षा और युवा व रोजगार पर भारत के ‘यंग लाइव्स लांजीट्यूडिनल सर्वे’ के प्रारंभिक निष्कर्ष को जारी करते हुए कहा था कि ‘अगर आप देश के 201 जिलों को देखें, जहां हम असफल हैं तो उनमें से 53 उत्तर प्रदेश में, 36 बिहार में और 18 मध्य प्रदेश में हैं।

जब तक इन इलाकों का नाम लेकर उन्हें शर्म नहीं दिलाई जाएगी, तब तक भारत विकास नहीं कर पाएगा। कांत ने पहले कहा था कि पूर्वी भारत के 7 से 8 राज्य हैं जो देश के पीछे खींच रहे हैं, इसलिए इन राज्यों को नाम लेकर शर्म दिलाने की जरूरत है। उन्होंने कहा दक्षिण भारत के साथ कोई समस्या नहीं है। पश्चिम भारत के साथ कोई समस्या नहीं है। केवल पूर्वी भारत के साथ है, वहां के सात राज्यों और 201 जिलों की समस्या है। उनका नाम जाहिर कर उन्हें शर्म दिलाना चाहिए। नेता और सरकारी अधिकारी को यह महसूस होना चाहिए कि उन्हें दंडित किया जाएगा।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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