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100 भाषाओं में अनुवादः दुनिया में बज रहा धौरहरा के संजय का डंका

संजीव बताते हैं की उन्होंने यह पुस्तक तीन से चार वर्ष की उम्र के बच्चों के लिए तैयार की थी और इसमें सिर्फ सकारात्मक बातें कहीं गई हैं।

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Published on: 6 July 2020 5:22 PM IST
100 भाषाओं में अनुवादः दुनिया में बज रहा धौरहरा के संजय का डंका
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धौरहरा: धौरहरा कस्बे के मोहल्ला शुक्ला वार्ड निवासी वरिष्ठ साहित्यकार संजीव जायसवाल 'संजय' की चित्र पुस्तक 'वह हँस दिया' का भाषा इन्डोनिशिया में अनुवाद हुआ। इस पुस्तक का अब तक विश्व की 100 भाषाओं में अनुवाद पूरा हो चुका है। संजीव की इस अनोखी उपलब्धि का साहित्यजगत में भरपूर स्वागत किया जा रहा है। तो वहीं कस्बे सहित जनपदवासी अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

जिले का नाम रोशन कर रहा ये साहित्यकार

कस्बे के एक सभ्रांत परिवार में जन्मे संजीव आर डी एस ओ के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए पर उनकी साहित्य में रूचि ने उन्हें बुलंदी पर पहुंचा दिया। उनकी पुस्तक वह हंस दिया का इंडोनेशिया भाषा में अनुवाद रविवार को हुआ। इसके साथ ही अब यह पुस्तक सौ भाषाओं में अनुवाद होने का रिकॉर्ड बना चुकी है। संजीव बताते हैं की उन्होंने यह पुस्तक तीन से चार वर्ष की उम्र के बच्चों के लिए तैयार की थी और इसमें सिर्फ सकारात्मक बातें कहीं गई हैं।

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इसीलिए इसे पूरे विश्व में लोकप्रियता मिल रही है। विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं के साथ-साथ इस पुस्तक का जन-जातियों और कबीलों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं तक में अनुवाद हो रहा है। इस पुस्तक की लोकप्रियता और उपयोगिता देखते हुए बिहार सरकार द्वारा इसकी 45000 प्रतियां खरीद कर सभी स्कूलों में भेजी जा चुकी हैं।

कई पुरस्कारों से हो चुके हैं समान्नित

इससे पहले भी संजीव की कई पुस्तकों का विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। पर्यावरण पर आधारित उनके लोकप्रिय उपन्यास ‘होगी जीत हमारी’ को भारत-सरकार द्वारा 15 भाषाओं में प्रकाशित किया गया है। सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए साहित्य रचने वाले संजीव को दिसम्बर 2019 में उ.प्र.हिंदी संस्थान द्वारा दो लाख रुपये का ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान प्रदान किया गया था। इससे पहले भी हिंदी संस्थान द्वारा उन्हें ‘अमृत लाल नागर कथा सम्मान’‘सूर पुरस्कार’ और ‘सोहन लाल द्वेदी सम्मान’ प्रदान किया जा चुका है।

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इसके अलावा उन्हें भारत सरकार का प्रतिष्ठित ‘भारतेन्दु हरीश्चन्द्र सम्मान’ दो बार मिला है जो कि एक रिकॉर्ड है। संजीव लखनऊ के अनुसंधान संगठन ‘आर.डी.एस.ओ.’से निदेशक के पद से सेवानिवृत हुए है और अब पूरी तरह से साहित्य सेवा के लिए समर्पित हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने सोशल मीडिया पर लगातार अपनी कहानियां सुनाई थीं। जिन्हें काफी लोकप्रियता मिली थी। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में संजीव की अब तक 1050 कहानियां और 55 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

रिपोर्ट- शरद अवस्थी

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