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ताकि मरने के बाद भी रहे हाथों में हाथ

raghvendra
Published on: 8 Jun 2018 8:08 AM GMT
ताकि मरने के बाद भी रहे हाथों में हाथ
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: शहर के बशारतपुर में रहने वाले वाल्टर केविन अगस्टाइन की मौत 2009 में हो गई थी। कम उम्र में पति के साथ छोडऩे के बाद पत्नी स्टीला अगस्टाइन ने पति की कब्र में दफन होने का इंतजाम किया। चंद महीनों बाद ही स्टीला की मौत के बाद उसे पति वाल्टर केविन अगस्टाइन को भी एक ही कब्र में दफनाया गया। तब ईसाई धर्म के साथ अन्य वर्ग के लोगों में इसे लेकर चर्चाएं हुई थीं। लेकिब अब कई वर्जनाओं को दरकिनार कर एक ही कब्र में दफन होने की ख्वाहिश रखने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। छह लोगों जहां एक साथ एक ही कब्र में दफन हैं तो कईयों ने पहले से ही एडवांस बुकिंग करा रखी है।

सात जन्मों तक साथ रहने की बातें सिर्फ कागजी नहीं रहें इसे हकीकत में बदलते हुए गोरखपुर में ईसाई धर्म के लोग एक ही कब्र में दफन हो रहे हैं।

जिंदगी भर साथ-साथ रहने के वादे के साथ दाम्पत्य की डोर में बंधने वाले ईसाई समाज के दर्जन भर लोग मरने के बाद भी साथ-साथ रहने के लिए कब्रिस्तानों की एडवांस बुकिंग करा चुके हैं। उनकी ख्वाहिश है कि मरने के बाद उन्हें पति या पत्नी के साथ ही दफनाया जाए। 300 साल से अधिक पुराने पैडलेगंज स्थित कब्रिस्तान में अभी तक पांच दंपति एक ही कब्र में चिरनिद्रा में हैं। वहीं दर्जन भर लोग इसके लिए एडवांस बुकिंग करा चुके हैं। यहां पांच कब्र ऐसे हैं जहां पति-पत्नी एक ही कब्र में दफन हैं। शहर में रहने वाली स्टीला अगस्टाइन के साथ ही वर्ष 2009 में मरे वाल्टर केविन अगस्टाइन को भी एक ही कब्र में दफनाया गया। वहीं सोली घतिगरा और मेरेजा पिंटो घतिगरा भी एक ही कब्र में दफनाए गए हैं। वर्ष 2016 में पादरी बाजार निवासी सीजे नटाल का निधन हुआ तो उन्हें पत्नी विरोनिका नटाल की कब्र में ही दफनाया गया। शहर के ही रहने वाले रंजीत-डेविड और मिशेल दंपति की कब्र भी साथ-साथ है।

असुरन क्षेत्र निवासी एंथोनी साइमन की मृत्यु 27 सितम्बर 2012 में हुई थी। पत्नी ने अभी से ही ऐसी व्यवस्था करा ली है कि मरने के बाद उसे भी पति के साथ दफन किया जा सके। ऐसे दर्जन भर दंपति हैं जो एडवांस बुकिंक करा चुके हैं लेकिन वह अपना नाम सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं। सेंट जोसफ स्कूल में कार्यरत राकेश नटाल के माता-पिता भी एक ही कब्र में दफन हैं। राकेश बताते हैं कि माता और पिता जी ने जीते जी एक ही कब्र में दफन होने की इच्छा जाहिर की थी। जिसके बाद कब्रिस्तान की देखरेख करने वाली संस्था की मदद से दोनों को एक ही कब्र में दफनाने की व्यवस्था की गई। कैथोलिक डायसिस ऑफ गोरखपुर के सचिव बिन्नी का कहना है कि साथ-साथ एक ही कब्र में दंपति का दफन होना ऐच्छिक है। माता-पिता की इच्छा पर केरल में कब्रिस्तान में स्थान सुरक्षित किया है।

साथ-साथ दफन होने का भावनात्मक पक्ष के दूसरा पहलू भी है। कब्रिस्तान में कम पड़ती जमीन को लेकर गोरखपुर में सभी को दंपति के बाद परिवार के सदस्यों के साथ-साथ कब्र बनाने पर भी सोचना होगा। शहर में ईसाई समुदाय की चार कब्रिस्तान है। सभी कब्रिस्तान में जमीन की किल्लत महसूस की जा रही है। शहर के सबसे बड़े कब्रिस्तान पैडलेगंज में काफी कम जमीन ही बची है। बशारतपुर और पादरी बाजार स्थित कब्रिस्तान में भी काफी कम जमीन बची है। जागरूक ईसाई समुदाय के लोगों का कहना है कि एक ही कब्र में परिवार के सदस्यों के दफन किये जाने और अन्य विकल्पों पर विचार किया जा रहा है।

एक लाख खर्च होते हैं दंपति की कब्र में

पैडलेगंज स्थित कब्रिस्तान में डेढ़ सौ से अधिक अंग्रेजों की कब्र हैं। कब्रिस्तान की एक तरफ गोरखपुर और आसपास के रहने वाले ईसाई धर्म के लोगों के कब्रिस्तान हैं। कब्रिस्तान की देखरेख करने वाली संस्था पक्की कब्र के लिए 40 हजार रुपये शुल्क लेती है। जबकि साधारण कब्र के लिए सिर्फ 4 हजार रुपये अदा करने होते हैं। पक्की कब्र बनाने में ग्रेनाइट और मार्बल का प्रयोग होता है। कब्रिस्तान के केयर टेकर का कहना है कि दंपति का कब्र बनाने में 70 हजार से 1 लाख रुपये तक खर्च होते हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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