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Sonbhadra News: स्वच्छ वायु-दीर्घ आयु कार्यक्रम में जल, जंगल, जमीन पर पड़ते दुष्प्रभावों पर हुई चर्चा, बयां किए गए प्रदूषण के आंकड़े

Sonbhadra News Today: राष्ट्रीय वायु स्वच्छता कार्यक्रम के तहत वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री अरुण कुमार सक्सेना की मौजूदगी में हुए जिले में व्याप्त प्रदूषण की भयावहता बयां की गई।

Kaushlendra Pandey
Published on: 20 Jan 2023 6:02 PM GMT
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सोनभद्र: स्वच्छ वायु-दीर्घ आयु कार्यक्रम में जल, जंगल, जमीन पर पड़ते दुष्प्रभावों पर हुई चर्चा

Sonbhadra News: राष्ट्रीय वायु स्वच्छता कार्यक्रम के तहत चयनित अनपरा अंचल में शुक्रवार को वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री अरुण कुमार सक्सेना की मौजूदगी में हुए स्वच्छ-वायु-दीघु कार्यक्रम में जहां जिले में व्याप्त प्रदूषण की भयावहता बयां की गई। वहीं यहां के प्रदूषण की स्थिति, लोगों की समस्याओं की सुनवाई और त्वरित एक्शन के लिए स्वतंत्र प्राधिकरण स्थापित करने की मांग की गई। प्रतिष्ठित एजेंसियों, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नीरी और एनजीटी की कोर कमेटी के अध्ययन में सामने आए तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए, एनजीटी की तरफ से मरकरी-फ्लोराइड का मानव जीवन पर पड़ते दुष्प्रभाव के विस्तृत अध्ययन और लोगों को राहत उपलब्ध कराने के लिए त्वरित उपाय अमल में लाने के दिए गए निर्देश पर भी पहल की मांग उठाई गई।

बगैर अध्ययन रिहंद जलाशय से जलापूर्ति किसी त्रासदी को न्योता देना तो नहीं? करें विचारः शुभा प्रेम

जल, जमीन और जंगल पर पड़ते दुष्प्रभाव विषय पर बोलते हुए बनवासी सेवा आश्रम की संचालक शुभा प्रेम ने कहा कि सोनभद्र में भूजल प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। 2009-10 में सीबीसीबी के साथ किए गए सर्वेक्षण में जहां फ्लोराइड की माचा प्रतिलीटर 2.6 ग्राम थी। वह स्कूलों के जलस्रोतों के हालिया परीक्षण में 7.22 पहुंच गई। 2016 में 21 ग्राम पंचायतों में कराए गए सर्वेक्षण में यह मात्रा 11 पाई गई थी। जल में मरकरी की भी मात्रा बढ़ रही है। खासकर, सतही जल में बढ़ता प्रदूषण यह बताते है कि हवा में प्रदूषण का जहर लगातार बढ़ रहा है। कहा कि जल निगम ने 269 गांवों को फ्लोराइड प्रभावित घोषित किया है।

अब तक वहां के लोगों को शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं हो सकी। अब उन्हें हर घर नल योजना से पानी देने की तैयारी हो रही है लेकिन जिस रिहंद जलाशय के पानी को जहरीला होने की कई रिपोर्ट्स आ चुकी हैं, उसका बगैर आईआईटीआर और नीरी के सहयोग से अध्यययन कराए तथा वगैर वैज्ञानिक विधि से प्यूरीफाई की व्यवस्था के जलापूर्ति कहीं एक और त्रासदी को न्योता देना तो नहीं है, इस पर भी विचार किया जाना चाहिए। क्योंकि एनजीटी की रिपोर्ट भी कहती है कि संसाधन न होने के कारण यहां मरकरी, फ्लोरोसिस का विस्तृत अध्ययन नहीं हो सका है। इसके लिए पहले 2017 में, इसके बाद 2018 में, इसके लिए प्रोजेक्ट बनाने और विशेषज्ञों के जरिए अध्ययन कर समुचित कदम उठाने का निर्देश भी दिया गया है।

पर्यावरण संरक्षण को लेकर होना पड़ेगा जागरूक, आक्सीजन के बिना नहीं हो सकती जीवन की कल्पनाः पर्यावरण मंत्री

वन एवं पर्यावरण मंत्री अरुण कुमार सक्सेना ने कहा कि 12 से 15 दिन तक भूखे पेट रह सकते हैं। तीन दिन बगैर पानी के रह सकते है लेकिन बगैर आक्सीजन के तीन मिनट भी नहीं रह सकते। इसलिए ज्यादा से ज्यादा पौधे रोपें। पेड़ों को संरक्षित करें। जरूरत के अनुसार ही वाहन का प्रयोग करें। कहा कि पर्यावरण पर ज्यादा असर न पड़े, इसके लिए जरूरी है कि हम अपनी आदत बदलें। पेड़ों की कटान नहीं होना चाहिए। वन्य जीव भी हमारे लिए जरूरी है। वन पर्यावरण एंव जलवायु परिवर्तन विभाग के अधिकारी केपी मलिक, यूपी प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष केपी यादव, क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी टीएन सिंह, बीएचयू वाराणसी से आए विशेषज्ञ लल्लन मिश्रा, प्रमुख सचिव मनोज सिंह ने भी प्रदूषण की स्थिति और नयंत्रण पर विचार रखे। एसपी डॉ. यशवीर सिंह, सुरेश चंद्र पांडेय वन प्रभागीय अधिकारी, उमेश गुप्ता सहायक पर्यावरण अभियंता, एके सक्सेना, उप जिलाधिकारी शैलेंद्र मिश्रा, उप पुलिस अधीक्षक पिपरी प्रदीप सिंह चंदेल सहित अन्य मौजूद रहे।

वक्ताओं की तरफ से दर्शाए गए आंकड़ें, गिफ्ट पर पहल की उठी मांग

- वर्ष 1998 में 22 गांव के सर्वे में 50 से 75 प्रतिशत लाह का उत्पादन खत्म होने की बात सामने आई थी। अब यह शून्य हो चुका है। इससे जहां जिले की एक बड़ी एरिया में स्थित हजारों परिवारों से 18 हजार से सवा लाख की नकद आमदनी छिन गई है। वहीं सरकार की तरफ से लाह के लिए लाखों खर्च के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकल पाया है।

-रेशम के लिए पहचान रखने वाले जिले का दक्षिणांचल इलाका अब धीरे-धीरे इसकी भी पहचान खोता जा रहा है। पिछले तीन-चार सालों में उत्पादन तेजी से गिरा है। चिंरौजी, आवला खत्म हो गए हैं। तेंदू की उत्पादकता भी समाप्त होने की तरफ बढ़ रही है, जो फल जनवरी तक पेड़ में बने रहने चाहिए वह नवंबर में गिर जा रहे हैं।

- नीरी ने 2020 में जिले से सटे सिंगरौली के गोरबी के पास फलदार पौधों का अध्ययन किया था। खाने वाले भाग में 23 प्रतिशत से अधिक हैवी मैटल्स और न खाने योग्य 45 प्रतिशत से अधिक हैवी मैटल्स की मौजूदगी मिली है।

-ओबरा थर्मल पावर से सीपीबीसी ने क्लीयरेंस देते हुए शर्त रखी थी कि जहरीली भूमि को चिन्हित कर उसकी घेरेबंदी की जाए, ताकि उस पर पैदा होने वाली फसल-चारा का इंसान तथा पशु उपयोग न करने पाएं।

- भूमि संरक्षण, मनरेगा विभाग ने भूमि सुधार और जल संरक्षण पर करोड़ों खर्च किए। बावजूद जहां लगातार फसलों की उत्पादकता घट रही है। वहीं आम, अमरूद का उत्पादन घटने के साथ ही उसकी क्वालिटी गिरी है।

- कुछ साल पहले प्रदूषण प्रभावित 52 गांवों का सर्वे किया गया था, जिसमें यह सामने आया था कि बाकी भारत की तुलना में लोगों का फेफड़ा 60 प्रतिशत ही काम कर रहा है। 100 में नौ शिशुओं की गर्भ में ही मृत्यु हो जाती है। मरकरी के प्रभाव ने इंसान, पशु और जानवर तीनों में बांझपन की समस्या बढ़ाई है।

- एनजीटी ने कहा था कि फ्लोराइड प्रभावितों को नियमित पोषाहार के साथ ही जिले के चिकित्सकों को केजीएमयू में प्रदूषण जनित बीमारी को पहचानने-उपचार की प्रशिक्षण दिया जाए ताकि लोगों को विकलांग होने से बचाया जा सके। अभी इसको लेकर पहल सामने नहीं आई।

Shashi kant gautam

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