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सात समंदर पार भी दिखता है इन उंगलियों का जादू , नेहरू ने की थी तारीफ

sudhanshu
Published on: 27 Oct 2018 4:29 PM IST
सात समंदर पार भी दिखता है इन उंगलियों का जादू , नेहरू ने की थी तारीफ
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गोरखपुर: जिले के औरंगाबाद गांव की टेराकोटा हस्तशिल्प का नाम आते ही उसकी एक से बढ़कर एक सुंदर कलाकृतियों की तरफ सबका ध्यान चला ही जाता है। इन्हें बनाने वाले कई कुम्हारों को इसी कला की वजह से सात समंदर पार जाने का मौका भी मिल चुका है। इनके हाथों का जादू अब हर किसी के सिर चढ़कर बोल रहा है। इनमें से कुछ कुम्हारों को नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।दीपावली में जहा घरों को सुसज्जित करने में चाइनीज झालरों का प्रयोग होता है वहीं अब टेराकोटा के बने दिए अपनी छाप को छोड़ रहा है विगत कई वर्षों से अब लोगों में टेरा कोटा की मूर्तियों और दियो के लिए दिलचस्पी दिख रही है लोग अपने घरों में टेराकोटा जैसी मूर्तियों का प्रयोग अपने घर को सुसज्जित करने में ज्यादा कर रहे हैं।

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विदेशों में है देशी कुम्‍हारों की धूम

गोरखपुर शहर से महज 15 किलो मीटर दूर औरंगाबाद अपने टेराकोटा हस्तशिल्प के लिए भारत मे ही नहीं विदेशों मे भी जाना जाता है | आप को बताते चले की औरंगाबाद गाँव मे 12 कुम्हारों का नाम बड़े ही इज्जत के साथ लिया जाता है |इसमे से कई कुम्हारों को अपने टेराकोटा हस्तशिल्प कला के लिए नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड भी मिल चुका है।

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दीपों की ये वैराइटी है खास

दीपावली पर्व पर टेराकोटा का बाजार तैयार है। दीप, पंचदीप, थाली, दीप स्टैंड, दीप कलश, जाली दीप, दीपमालिका, नारियल, हाथी, घोड़ा, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां बड़ी संख्या में बनकर तैयार हैं। टेराकोटा कार्य के लिए पहचान रखने वाला औरंगाबाद में दीपावली को लेकर उत्साह है। क्योंकि इसकी डिमांड बहुत अधिक है। दीपावली पर्व पर दिल्ली राजस्थान मध्य प्रदेश उड़ीसा मुंबई गुजरात वह अन्य राज्यों में टेराकोटा की मूर्तियां दीया की काफी डिमांड है। यही नहीं टेराकोटा की मूर्तियां विदेशों में भी अच्छी खासी इसकी डिमांड है। ऑर्डर बहुत मिलते हैं पर इस आर्डर को कुम्हार पूरा भी नहीं कर पाते हैं ।क्योंकि इसे बनाने में समय ज्यादा लगता है ।

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ये है कीमत

कलश--25 से 80 रुपए, दीप पूंजी 70 से 80 रूपये, एक दीप 3 रूपये, कोसा दीप 10से 15 रूपये, नारियल 30 रूपये, लालटेन दीप 50 से 60 रूपये, दीप मालिका 80 से 100 रुपए, 50 दीप स्टैंड 500 रूपये, डेढ़ सौ दीप स्टैंड, 650 पंचदीप 50 रूपये, थाली दीप 50 रूपये, हाथी घोड़ा ऊंट 60 से 200 रूपये, लक्ष्मी गणेश मूर्तियां 60 से 500 रूपये तक।

टेराकोटा की मूर्तियों की नेहरू ने की थी तारीफ

1966 में जवाहरलाल नेहरु ने भी टेराकोटा की मूर्तियों की तारीफ की मूर्तिकार खूब लाल ने बताया कि औरंगाबाद टेराकोटा का आकर्षण नेहरु को भी खींच लाया था। 1966 में वह गोरखपुर आए और रिक्शा से औरंगाबाद गए जहां टेराकोटा का काम शुरू करने वाले सुखराज से मिले और उनकी कृतियों की तारीफ की इसके बाद सुखराज ने वहां के स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण देना शुरु किया। अब औरंगाबाद के घर घर में टेराकोटा की मूर्तियां बनाई जाती हैं।

शिवानंद को मिला था एवार्ड

राधिका देवी के अनुसार शिवानंद प्रजापति को 1981 में स्टेट अवार्ड मिला था। इसके बाद 8 फीट का राणा प्रताप का घोड़ा लेकर वह दिल्ली प्रदर्शनी में गए उन्हें वहां अवार्ड तो नहीं मिला पाया लेकिन सरकार ने उनका घोड़ा खरीद लिया जो आज भी दिल्ली में पृथ्वी रोड पर स्थापित है।

बहुत बढ़ गई महंगाई

वहीं खूब लाल प्रजापति राधिका देवी भागवत व ज्योति ने बताया कि इस वर्ष मिट्टी का दाम बहुत बढ़ गया है। 5000 रुपए टाली मिट्टी खरीदनी पड़ रहा है। ईंधन के दाम भी आसमान छू रहे हैं। इसे विकसित करने के लिए इसका बड़ा बाज़ार निर्मित होना चाहिए। जिला उद्योग केंद्र कुछ प्रयास कर रहा है। लेकिन प्रयास और बड़े स्तर पर होना चाहिए।

घाटे का सौदा नहीं है टेराकोटा

कुम्हारों ने बताया कि 1 ट्राली मिट्टी में एक डीसीएम सामान तैयार होते हैं और उनकी कीमत एक से डेढ़ लाख रुपए होती है। 1 ट्राली मिट्टी को गढ़ने में 10 लोग काम करे तो एक माह लगता है। इसे पकाने में अधिकतम 3 दिन लगता है और न्यूनतम जैसे दीया पकना है तो मात्र एक ही दिन काफी है।



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