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लखनऊ की रेजीडेंसी में मौजूद हैं अतीत की सनहरी यादें, कभी अंग्रेजों का था अड्डा
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को नवाब असफ-उद-दौला ने बसाया था। गोमती तट पर स्थित बेलीगारद यानी रेजीडेंसी, नवाबों के शहर लखनऊ के ऐतिहासिक इमारतों में से एक है।
लखनऊ: लखनऊ को नवाबों का शहर भी कहा जाता है। गोमती नदी के तट पर स्थित लखनऊ सूर्यवंशी काल में बसा था। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को नवाब असफ-उद-दौला ने बसाया था। गोमती तट पर स्थित बेलीगारद यानी रेजीडेंसी, नवाबों के शहर लखनऊ के ऐतिहासिक इमारतों में से एक है।
रेजीडेंसी में आज भी गदर के निशान मौजूद हैं। उस दौर में आजादी के दीवानो ने अंग्रेज अधिकारियों के गढ़ रेजीडेंसी में 86 दिनों तक कब्जा जमाकर रखा। इस दौरान आजादी के दीवानो ने कई अंग्रेज सैनिकों और अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया। संघर्ष के उस दौर में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए कई हिन्दुसतानी सैनिक भी शहीद हो गए। रेजीडेंसी अतीत की कई कहानियों को अपने आप में समेटे हुए है। आज भी लखनऊ वाले पर्यटकों मन मोह लेती है।
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नवाब असफ-उद-दौला ने रेजीडेंसी का निर्माण कराया। नवाब ने अंग्रेजों की सुविधा के मद्देनजर नदी किनारे एक ऊंचे टीले पर इसे बनवाया। इसे बनाने में लखौरी ईंट और सुर्ख चूने का इस्तेमाल हुआ है। वर्ष 1800 में नवाब सआदत अली खां के शासन में रेजीडेंसी का निर्माण पुरा हुआ।
रेजीडेंसी में ईस्ट इंडिया कंपनी के नियुक्त अधिकारी रहते थे। इस दो मंजिले इमारत में बड़े-बड़े बरामदे और एक पोर्टिको मौजूद था। रेजीडेंसी के नीचे आज भी एक बड़ा तहखाना है। इस तहखाने के भीतर अवध के रेजीडेंट आराम करते थे। गदर के दौरान तमाम अंग्रेज महिलाएं और बच्चों ने इसी तहखाने में शरण ले रखी थी।
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इसी तहखान में पहली जुलाई 1857 को कर्नल पामर की बेटी के पैर में गोली लगी थी। रेजीडेंट के ऊपरी मंजिल पर स्थित पूर्वी सिरे वाले कमरे में 2 जुलाई 1857 को सर हेनरी लॉरेंस को क्रांतिकारियों ने गोली मार दी थी।
बैंक्वेट हॉल
ब्रिटिश रेजीडेंट के लिए अवध हुकूमत ने इस इमारत में दावत खाने का निर्माण कराया था। इस दो मंजिले में इमारत में एक समय यूरोपियन फर्नीचर और चीन के सजावटी सामान भरे पड़े थे। इसके मुख्य कक्ष में फाउंटेन चला करते थे। जब बादशाह नसीरुद्दीन हैदर का दौर था तो उस समय इस हॉल में दावतें हुआ करती थीं। गदर के दौरान इस भवन को अस्पताल का रूप दे दिया गया था। 8 जुलाई के हमले में रेवरेंड पोलीहेम्पटन यहां बहुत बुरी तरह से जख्मी हुए।
सेंट मेरी चर्च
1810 में रेजीडेंसी में गाथिक शैली के सेंट मेरी गिरिजाघर का निर्माण हुआ था। गदर के दौरान इसे गल्ले के गोदाम में बदल दिया गया। स्वतंत्रता संग्राम में मारे गए रेजीडेंसी के पहले अंग्रेज की कब्र की इसी चर्च में बनाई गई। इसी जगह पर नवाब मुस्तफा खां और मिर्जा मुहम्मद हसन खां की मजार भी स्थित है।
ट्रेजरी हाउस
यूरोपियन अधिकारी रेजीडेंसी में ही विनियम विभाग का कामकाज देखते थे। 1857 की क्रांति के दौरान यहां स्थित केंद्रीय भाग को प्रयोगशाला के रूप तब्दील कर दिया गया। इसमें इनफील्ड गन की कार्टिंजेज बनाने का काम होता था। इसके पास में पुराने बरगद के पास रेजीडेंसी का पोस्ट आफिस भी था। इसमें गदर के दौरान टूल्स शेल्स का निर्माण किया जाने लगा।
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हेनरी लाॅरेंस स्मारक
इतिहासकार के मुताबिक रेजीडेंसी में रह रहे ब्रिटिश अधिकारियों में हेनरी लाॅरेंस एक बेहद कुशल प्रशासक था। गदर की लड़ाई में मारे गए हेनरी की मजार पहले 51 फीट ऊंचे और बड़े घेरे में बनी थी। 1904 में अंग्रेजों के शासन काल में उसे ये नई रूपरेखा दी गई।
स्वतंत्रता संग्राम में महत्व
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान रेजीडेंसी का एक अलग ही महत्व है। चनहट की लड़ाई के अगले दिन 30 जून 1857 को सैय्यद बरकत अहमद के नेतृत्व में हिंदुस्तानियों ने इस विदेशी गढ़ पर गोलीबारी करनी शुरू कर दी। चनहट की लड़ाई के कमांडर बेगम हजरत महल के प्रमुख सहायक राजा जियालाल थे।
क्रांतिकारियों ने 86 दिन तक इस पर अपना कब्जा जमाकर रखा। इस दौरान अंग्रेजों के तमाम परिवार यहां पर कैद रहे। 17 नवंबर 1857 की रात मौलवी अहमदउल्ला शाह ने रेजीडेंसी पर आखिरी बार हमला किया, जिसके दूसरे दिन काॅलिन कैम्पबेल कानपुर से सेना लेकर आए और फिर उस पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।