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Court Commissioner: जानें क्या होता है 'कोर्ट कमिश्नर'? ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आपने खूब सुना इस शब्द को
ज्ञानवापी मस्जिद मामले में एक शब्द सबसे ज्यादा गूंजा। वो है कोर्ट कमिश्नर। क्या आप जानते हैं, कौन होता है कोर्ट कमिश्नर। इनकी नियुक्ति किन मामलों में और कैसे की जाती है?
Court Commissioner: ज्ञानवापी मस्जिद मामले (Gyanvapi Masjid) में गुरुवार को वाराणसी कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। अदालत ने कोर्ट कमिश्नर (Court Commissioner) के साथ दो अन्य वकीलों को भी शामिल करने के आदेश दिए। कोर्ट ने कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा के अलावा विशाल कुमार सिंह को भी इस मामले में कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया है। साथ ही, इसके अलावा अजय सिंह को भी असिस्टेंट कमिश्नर बनाया गया।
अब लोगों के मन में ये सवाल कौंधने लगा कि आखिर ये कोर्ट कमिश्नर होता क्या है? साथ ही इनकी नियुक्ति कब और किस हालात में की जाती है। तो आइये आज हम आपको बताते हैं कि आखिर कोर्ट कमिश्नर होते कौन हैं।
ऐसी स्थिति में होती है कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति
कानून के जानकार बताते हैं कि सिविल कोर्ट में दायर मामलों के निस्तारण के लिए अदालत को अलग-अलग पहलुओं को ध्यान में रखना होता है। मगर, कुछ ऐसे विषय होते है जिन्हें दस्तावेजों से समझ पाना या किसी निष्कर्ष तक पहुंचना मुश्किल होता है। उदाहरण के लिए इसे ऐसे समझें। जब पक्षकारों के बीच विवाद आने-जाने वाले रास्ते को लेकर हो। इसमें वादी का कहना हो कि आवागमन के लिए सिर्फ एक ही रास्ता है और उसे भी प्रतिवादी की तरफ से रोक लिया गया है। जानकार मानते हैं तब, ऐसी स्थिति में सिर्फ साक्ष्य और सबूतों के आधार पर कोर्ट किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकता।
जानें किसे कहते हैं 'कोर्ट-कमिश्नर'
ऐसे मामलों में भौतिक स्थिति को अदालत के सामने पेश नहीं किया जा सकता। ना ही कोर्ट उस खास भौतिक स्थिति तक पहुंचकर कोई फैसला दे सकता है। ऐसे में एक कमीशन (commission) मूल रूप से कोर्ट द्वारा किसी व्यक्ति को न्यायालय की ओर से कार्य करने के लिए दिए गए निर्देश या भूमिकाएं और इसके पीछे का विचार उन कार्यों का निष्पादन (Execution) है। जिससे न्यायालय (Court) को पूर्ण न्याय देने में मदद मिले। कमीशन का संचालन करने वाले ऐसे शख्स को ही 'कोर्ट-कमिश्नर' कहते हैं।
कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति कब, किस स्थिति में की जाती है?
हालांकि, ये कानूनी भाषा है जिसे समझना आम लोगों के लिए थोड़ा मुश्किल होता है। मगर आपको बता दें कि, सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा- 75 में कमीशन नियुक्त (Commission Appointed) करने की शक्ति प्रदान की गई है। साथ ही, आदेश- 26 में इसकी प्रक्रिया को विस्तार से बताया गया है। कमीशन जारी करने की अदालत की शक्ति विवेकाधीन है। अदालत द्वारा पक्षों के बीच 'पूर्ण न्याय' करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका प्रयोग अदालत द्वारा या तो वादी के पक्षकार के आवेदन पर या स्वयं की प्रेरणा से किया जा सकता है।