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दर्जन भर आईपीएस के पास नहीं है कोई काम, कैसे सम्भले लॉ एण्ड आर्डर
योगी सरकार भले ही अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई के दावे कर रही है। लेकिन हालिया बुलन्दशहर हिंसा हो या सुल्तानपुर में मासूम बच्चों के अपहरण के बाद निर्मम हत्या।
शारिब जाफरी
लखनऊ: योगी सरकार भले ही अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई के दावे कर रही है। लेकिन हालिया बुलन्दशहर हिंसा हो या सुल्तानपुर में मासूम बच्चों के अपहरण के बाद निर्मम हत्या। आगरा में युवती की तेजाब फेंककर ह्त्या, राजधानी में हुए विवेक तिवारी हत्याकाण्ड और प्रतापगढ में बिगड़ी कानून व्यवस्था ने सरकार की ख़ूब फ़ज़ीहत कराई।
आला अफसरों ने वजीर ए आजम को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर कानून व्यवस्था नहीं संभाल पाएं। नतीजतन अपराध पर लगाम कसने में नाकाम आईपीएस अफसरों को डीजीपी आफिस से अटैच करने का सिलसिला चल पड़ा जो बदस्तूर जारी है। वर्तमान में ऐसे अफसरों की संख्या 11 है। जो मुफ्त की पगार उठा रहे हैं, वो भी एक दो दिन से नहीं बल्कि महीनो से ये सिलसिला जारी है।
सरकार उनसे कोई काम नहीं ले पा रही है। क्योंकि उनके पास कोई कार्यभार ही नहीं है। कई अफसर तो डीजीपी आफिस में चहलकदमी करके अपना दिन काट रहे हैं।
शेल्टर होम काण्ड की गाज रोहन पी कनय पी पर गिरी
देवरिया शेल्टर होम काण्ड में योगी सरकार ने डीआईजी बस्ती राकेश शंकर और एसपी देवरिया रोहन पी कनय को हटा कर डीजीपी मुख्यालय से अटैच कर दिया था। 13 अगस्त यानि क़रीब चार माह से दोनों अफ़सर डीजीपी मुख्यालय से अटैच चल रहे हैं।
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वीवीआईपी विज़िट के दौरान इन अफसरों की ड्यूटी कभी कभी ज़िलों में लगाई जाती है। बाक़ी समय दोनों अफसर एक से दूसरे अफसर के कमरे में दरबारी कर टाईम पास करने को मजबूर हैं।
बुलन्दशहर हिंसा नहीं संभाल पाने का झेल रहें दंश
बुलन्दशहर में गौकशी के बाद हुई हिंसा में इंस्पेक्टर स्याना सुबोध कुमार सिंह की मौत के बाद सरकार लम्बी फ़ज़ीहत के बाद कृष्ण बहादुर सिंह को भी डीजीपी आफिस से अटैच किया गया है। इसी तरह प्रतापगढ़ से निलम्बित हुए संतोष कुमार सिंह भी दो महीने से ज़्यादा वक़्त से बरोज़गार हैं। 2013 बैच के सिद्धार्थ शंकर मीणा और 2012 बैच के जी एस चंद्रभान 29 अगस्त से डीजीपी मुख्यालय से अटैच हैं।
केंद्र से लौटी एडीजी रेणुका मिश्रा भी महीनों से वेटिंग में
केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस लौंटी 1990 बैच की रेणुका मिश्रा 1 अक्टूबर यानि क़रीब तीन माह से डीजीपी मुख्यालय से अटैच हैं। उन्हें भी एक अदद उस आदेश का इन्तेज़ार है। जिस के ज़रिये उन्हें भी कुछ काम करने का मौक़ा मिल सके। इसी तरह मैटरनिटी लीव से वापस लौंटी 2005 बैच की मंजिल सैनी भी 1 नवम्बर यानि दो माह से बेरोज़गार हैं।
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2009 बैच के अखिलेश कुमार चौरसिया और इसी बैच के अजय कुमार सिंह भी महीनो से डीजीपी आफिस में चहलक़दमी करते देखे जा सकते हैं। अखिलेश चौरसिया को फैज़ाबाद से हटाया गया था योगी सरकार के गठन के बाद से फैज़ाबाद में कोई भी आईपीएस अफसर 4 माह से ज़्यादा कप्तानी नहीं कर पाया है। वर्तमान में जोगेन्दर कुमार योगी राज में फैज़ाबाद के छठें पुलिस कप्तान हैं। गोरखपुर से हटाये गए शलभ माथुर डीजीपी ऑफिस से अटैच हैं।
एसपी प्रतापगढ की कुर्सी बनी काल
योगी सरकार बनने के बाद जो भी अफसर एसपी प्रतापगढ की कुर्सी पर बैठा। उसे सस्पेंशन का दंश झेलना पड़ा या फिर डीजीपी आफिस से अटैच होना पड़ा। बीते महीनों तत्कालीन एसपी प्रतापगढ संतोष कुमार सिंह को सरकार ने सस्पेंड कर देवरंजन वर्मा को एसपी प्रतापगढ बनाया था।
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ताबड़तोड़ आपराधिक घटनाओं के चलते सरकार ने 28 नवम्बर को देवरंजन वर्मा को भी हटाकर डीजीपी आफिस से अटैच कर दिया। वर्मा कुल 42 दिन एसपी प्रतापगढ रहे। वर्तमान में हालत यह है कि वर्मा और सिंह डीजीपी आफिस की खाक छान रहे हैं। इस से पहले अखिलेश राज में डिप्टी एसपी ज़ियाउलहक़ हत्याकाण्ड में तत्कालीन एसपी अनिल कुमार राय को भी सस्पेन्ड कर दिया गया था।