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DNA फिंगर प्रिंट के जनक लालजी सिंह अब नहीं रहे, दिल का दौरा पड़ने से मौत
डीएनए फिंगर प्रिंट के जनक पद्मश्री डा. लालजी का रविवार की रात ह्रदयाघात से निधन हो गया। वह सेलुलर और आण्विक जीवविज्ञान के लिए केंद्र (सीसीएमबी) हैदराबाद के निदेशक थे और काशी हिदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति। हृदयाघात के बाद आनन-फानन में उन्हें बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल की आइसीयू में भर्ती कराया गया जहां इलाज के दौरान रात करीब 10 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
लखनऊ/वाराणसी: डीएनए फिंगर प्रिंट के जनक पद्मश्री डा. लालजी का रविवार की रात ह्रदयाघात से निधन हो गया। वह सेलुलर और आण्विक जीवविज्ञान के लिए केंद्र (सीसीएमबी) हैदराबाद के निदेशक थे और काशी हिदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति। हृदयाघात के बाद आनन-फानन में उन्हें बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल की आइसीयू में भर्ती कराया गया जहां इलाज के दौरान रात करीब 10 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के 22 अगस्त, 2011 से 22 अगस्त, 2014 तक कुलपति रहे। विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डॉ. राजेश सिंह के अनुसार पूर्व कुलपति एवं जौनपुर के ब्लॉक सिकरारा कलवारी गांव निवासी डॉ. लालजी सिंह तीन दिन पहले अपने गांव आए थे। वह रविवार की शाम हैदराबाद जाने के लिए फ्लाइट पकड़ने बाबतपुर एयरपोर्ट पहुंचे थे। उनकी फ्लाइट शाम साढ़े पांच बजे थी। इससे पहले ही करीब चार बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। उन्हें सर सुंदरलाल अस्पताल लाया गया। डॉ. सिंह को डीएनए फिंगर प्रिंट का जनक भी कहा जाता है। उनकी जिनोम नाम से कलवारी में ही एक संस्था है।
पैतृक गांव में होगा अंतिम संस्कार
इसमें रिसर्च का कार्य होता है। डा. लालजी सिंह वर्तमान में सीसीएमबी, हैदराबाद के निदेशक भी थे। बताया जाता है कि दिल्ली के तंदूर हत्याकांड को सुलझाने में उनका बहुत योगदान था। उनका अंतिम संस्कार सोमवार को जौनपुर स्थित पैतृक गांव कलवारी में किया जाएगा।
पद्मश्री से सम्मानित
इसे अद्भुत संयोग भी कहेंगे कि लालजी सिंह ने जहां से शिक्षा-दीक्षा ली वहीं उन्होंने अंतिम सांस भी ली। कुलपति के कार्यकाल के दौरान वह मात्र एक रुपये वेतन लिया करते थे। इंटरमीडिएट तक शिक्षा जौनपुर जिले में लेने के बाद उच्च शिक्षा के लिए 1962 में श्री सिंह बीएचयू चले आए थे। यहां से उन्होंने बीएससी, एमएससी और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 2004 में उन्हें भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
डॉ लालजी सिंह देश के नामी नू-जीवविज्ञानी थे। लिंग निर्धारण का आणविक आधार, डीएनए फिंगरप्रिंटिंग, वन्यजीव संरक्षण, रेशमकीट जीनोम विश्लेषण, मानव जीनोम एवं प्राचीन डीएनए अध्ययन आदि उनकी रुचि के प्रमुख विषय थे।
जीवन परिचय
डॉ. सिंह का जौनपुर जिले के सदर तहसील एवं सिकरारा थाना क्षेत्र के कलवारी गांव के निवासी स्व. ठाकुर सूर्य नारायण सिंह के पुत्र के रूप में 5 जुलाई 1947 को जन्म हुआ था। इंटरमीडिएट तक शिक्षा जिले में लेने के बाद उच्च शिक्षा के लिए 1962 में श्री सिंह बीएचयू गए, जहां पर उन्होंने बीएससी, एमएससी और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। साल 1971 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे कोलकाता गए, जहां पर साइंस में 1974 तक एक फेलोशिप के तहत रिसर्च किया। इसके बाद वे छह माह की फैलोशिप पर यूके गए और तीन माह की बढ़ोत्तरी लेकर 9 माह बाद वापस भारत आए। जून 1987 में सीसीएमबी हैदराबाद में वैज्ञानिक पद पर कार्य करने लगे और 1998 से 2009 तक वहां के निदेशक रहे। वर्तमान में भी वह इसी संस्था के निदेशक थे।