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हरियाणा में दुष्यंत चौटाला इस तरह बने किंगमेकर
जेजेपी को दस सीटें मिलती दिख रही हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों दुष्यंत का समर्थन पाने की कोशिश में हैं। ऐसे में सबकी नजरें उन पर जाकर टिक गई हैं। यहां तक कि उनके सीएम तक बनने का अनुमान लगाया जा रहा है।
नई दिल्ली: हरियाणा के चुनावी रुझानों से साफ है कि वहां भाजपा या कांग्रेस दोनों में से किसी को पूर्ण बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है। ऐसे में सत्ता की चाबी अब जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के दुष्यंत चौटाला के हाथों में होगी। जेजेपी को दस सीटें मिलती दिख रही हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों दुष्यंत का समर्थन पाने की कोशिश में हैं। ऐसे में सबकी नजरें उन पर जाकर टिक गई हैं। यहां तक कि उनके सीएम तक बनने का अनुमान लगाया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि दुष्यंत खुद सीएम पर नजर गड़ाए हुए हैं। ऐसे में महज 31 साल की उम्र में राज्य की राजनीति में जेजेपी को एक बड़ी ताकत बनाने वाले दुष्यंत चौटाला के बारे में जानना दिलचस्प है।
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युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं दुष्यंत
अमेरिका के कैलिफॉर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में ग्रेजुएशन करने वाले दुष्यंत हिमाचल प्रदेश के लॉरेन्स स्कूल से स्कूली पढ़ाई की है। इसके साथ ही वे नेशनल लॉ कॉलेज से कानून में पोस्टग्रेजुएट भी हैं। वे अपनी सभाओं में युवाओं की बेरोजगारी का मुद्दा लगातार उठाते हैं। यही कारण है कि वे युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। दुष्यंत में राजनीति में दम दिखाने का साहस है और अपने साहस के दम पर ही उन्होंने मात्र 11 महीने में जेजेपी को राज्य की ताकतवर पार्टी बना दिया।
बेरोजगारी को बनाया मुद्दा
दिसम्बर 2018 में उन्होंने अपने दादा और राज्य के पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला से बगावत कर अपने दम पर पार्टी बनाई और इस चुनाव में बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बना दिया। उनकी प्रगतिशील और विकासपरक सोच ने युवाओं को काफी लुभाया। दुष्यंत का साहस इससे भी समझा जा सकता है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में उन्होंने केंद्रीय मंत्री रह चुके राज्य के कद्दावर नेता बिरेंदर सिंह की पत्नी प्रेमलता के खिलाफ उचाना कलान क्षेत्र से चुनाव लडऩे में भी हिचक नहीं दिखाई।
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जनता के मुद्दों से जुड़ाव
इस बार के चुनावी नतीजों से यह भी माना जाने लगा है कि दुष्यंत चौटाला ही आगे चलकर पूर्व उपप्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी देवीलाल की राजनीतिक विरासत संभालेंगे। 2014 में सबसे कम उम्र में हिसार से लोकसभा का चुनाव जीतने वाले दुष्यंत ने तब पूर्व सीएम भजनलाल के पुत्र कुलदीप विश्नोई को हराया था। चुनाव जीतने के बाद वे लोकसभा में सक्रिय रहे और जनता से जुड़े मुद्दे उठाते रहे। इससे उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती गई। दुष्यंत ने बहुत छोटी उम्र में ही अपने परबाबा देवीलाल के साथ चुनाव अभियान में हिस्सा लेकर राजनीति के गुर सीखे थे। उन्होंने 1996 में देवीलाल के साथ रोहतास लोकसभा सीट के लिए चुनाव अभियान चलाया था।
राजनीतिक परिपक्वता भी काबिलेगौर
दुष्यंत चौटाली की राजनीतिक परिपक्वता भी काबिलेगौर है। वे सियासत के धुरंधर खिलाड़ी हैं। इसे इसी से समझा जा सकता है कि 2019 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपने दादा ओमप्रकाश चौटाला या चाचा अभय चौटाला के खिलाफ मुंह नहीं खोला, जबकि इन्हीं दोनों के कारण दुष्यंत को अलग पार्टी जेजेपी बनानी पड़ी। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को अपने दादा और पिता के जेल में होने और देवीलाल द्वारा राज्य के लिए कार्यों की याद दिलाई। इससे वे युवाओं के साथ जाटों का भी समर्थन पाने में कामयाब रहे।
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जाटों का समर्थन पाने में कामयाब
भाजपा ने इस बार पिछली बार की अपेक्षा कम जाटों का चुनाव मैदान में उतारा था। कई कारणों से जाट भाजपा से नाराज भी बताए जा रहे थे। हरियाणा में 29 फीसदी जनसंख्या वाले जाट सबसे ताकतवर और निर्णायक हैं। ऐसे में दुष्यंत ने जाटों का समर्थन पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने जाटों के जख्म पर मरहम लगाया और उनकी आहत भावना का अच्छा लाभ उठाया। हरियाणा के घाघ राजनेता जिस जेजेपी को बच्चा पार्टी कहते थे, उसने चंद महीनों में खुद को खड़ा कर अपने तेवर दिखा दिए। इस चुनाव से यह भी साफ हो गया है कि प्रदेश की राजनीति में अब जेजेपी के ऊपर चस्पा बच्चा पार्टी का लेबल भी धुल गया है।