TRENDING TAGS :
ईद-उल-अजहा: यहां कुछ इस तरह पाले जाते हैं बकरे
कानपुर: पूरे देश में ईद-उल-अजहा बुधवार को धूमधाम से मनाया जाना है। ईद-उल-अजहा के मौके पर कानपुर में इन दिनों टीपू, सुल्तान और चांद की चर्चा है। कुर्बानी के लिए तैयार ये बकरे इतने खुबसूरत हैं कि शहरभर से लोग इन्हें देखने आ रहे हैं और इनके साथ सेल्फी ले रहे हैं।
यह भी पढ़ें: DAV कॉलेज में बनेगा ‘बापजी’ का भव्य स्मारक, आर्किटेक्ट संग बैठक जल्द
ये बकरे काजू, बादाम, किसमिश और चना खाते हैं, दूध और कोल्ड्रिंक पीते हैं। गर्मी के मौसम में एसी और कूलर में रहते हैं। बकरीद के मौके पर इन्हें खरीदने वालो भीड़ लगी है लोग मुंह मांगी रकम देने को तैयार हैं लेकिन यह बकरे सिर्फ अपने मालिक की जुबान को समझते है और उनके ही इशारे पर नाचते है।
यह भी पढ़ें: सपा के प्रदेश सचिव संजय कश्यप व उसके प्रधान भाई पवन कश्यप पर दर्ज हुई FIR
बेकनगंज के रहने वाले आकिब खान का रेडीमेड कपड़ो का व्यापर है। आकिब खान को बचपन से ही बकरे पलने का शौक रहा है. यह शौक उन्हें अपने वालिद से मिला। आकिब के पिता को भी बकरे पालने का शौक रहा है। आकिब खान के पास 28 बकरे हैं. इन बकरों के लिए उन्होंने ख़ास व्यवस्था कर रखी है। उनके लिए अलग से घर जो पूरी तरह से वातानुकूलित है ताकि बकरों को गर्मी नहीं लगे। सर्दियों के मौसम में उन्हें गर्म रखने के लिए ब्लोवर की भी व्यवस्था की जा जाती है।
आकिब ने उनके खाने और पीने की भी खास व्यवस्था की है। आकिब अपने बकरों को काजू,बादाम,पिस्ता,किसमिश और चना खिलाते है। इसके साथ मौसम के हिसाब से उन्हें हरी सब्जियां और पनीर के टुकड़े खाने में दिया जाता है। दूध और कोल्डड्रिंक पीने के लिए दिया जाता है और पानी में सिर्फ आरओ का पानी पीते है।
आकिब खान बताते है कि मेरे वालिद बकरे पलते थे और मै छोटा था तो उनकी देख रेख करता था। उनके बाद मुझे भी बकरों को पलने का शौक पड़ गया। हमारे परिवार में बकरों को खरीदकर कुर्बानी देने का प्रचलन नहीं है। हम लोग उसी बकरे की कुबानी देते है जिसको हमने स्वयं पाला हो। क्योंकि हजरत इब्राहीम ने खुदा के लिए अपने बेटे हजरत इस्माइल की कुर्बानी दे दी थी।
इसका मतलब है कि सबसे दिल के नजदीक जिसे सबसे ज्यादा आप प्यार करते हो उसकी क़ुरबानी दी जाती है। यही वजह है कि मैं इन बकरों को अपने परिवार के सदस्यों की तरह खिलाता पिलाता हूं। यह बकरे मेरे दिल के सबसे करीब होते हैं लेकिन जब इनकी कुर्बानी होती है तो दुख तो होता है।
उन्होंने बताया कि हमारे टीपू, सुलतान और चांद को संभालने के लिए कम से कम चार लोगों की जरूरत पड़ती है। इनकी लंबाई लगभग 4 फीट है यह बहुत ही ताकतवर है। बकरीद के मौके पर लोग मुझे इनकी मुंह मांगी रकम देने को तैयार है। लोग हमारे व्यापारी भाईयो ने तो इसकी कीमत 8 से 10 लाख तक देने को तैयार थे।
इनकी देख रेख करने के लिए हमने चार लोगो को नौकरी पर भी रखा है वो सिर्फ इनकी देख रेख करते है। हमारे बकरों को देखने के लिए शहर के आलावा बहार से लोग आ रहे है । वो आते है इनके साथ फोटो खिचवाते है। हम लोग बकरीद के मौके पर दान भी करते है जो हमारे मजहब में है कि पहला दान फकीरों का बनता है । इसके लिए हमारे पास अलग से भी बकरे है।