TRENDING TAGS :
फूलपुर लोकसभा उपचुनाव : भारतीय जनता पार्टी ने साधे कई निशाने
कौशलेन्द्र मिश्र
इलाहाबाद: फूलपुर लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा ने इस बार बाहरी प्रत्याशी कौशलेन्द्र सिंह पटेल को मैदान में उतारकर जहां परिवारवाद पर अंकुश लगाया है वहीं पार्टी में उठने वाली अन्तर्कलह को भी शांत कर दिया है। पार्टी ने प्रत्याशी चयन में सामाजिक व भौगोलिक समीकरणों पर भी ध्यान दिया है। मिर्जापुर निवासी कौशलेन्द्र के बहाने भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। इससे भाजपा पूर्वांचल में अपनी पैठ बढ़ाना चाह रही है।
कौशलेन्द्र को फूलपुर से उतारने के पीछे भाजपा की कुर्मी समाज को अपने साथ लाने की कोशिश है। भाजपा का मानना है कि उनके चुनाव जीतने से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वाराणसी सीट को भी खासी मजबूती मिलेगी। हालांकि फूलपुर सीट से अभी तक कोई भी बाहरी प्रत्याशी जीत नहीं हासिल कर सका है। ऐसे में कौशलेन्द्र को जिताने में पार्टी पूरी ताकत झोंकेगी और यह उपचुनाव भाजपा के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में मजबूती का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।
दूसरी ओर अपना वजूद बचाने को फिक्रमंद कांग्रेस के लिए यह सीट परीक्षा की घड़ी है। कुर्मी बाहुल्य इस क्षेत्र के लिए उसने यहां ब्राह्मïण नेता पर दांव लगाया है जबकि समाजवादी पार्टी ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुये यहां से कुर्मी प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। वहीं इन सबके बीच फूलपुर से सांसद रह चुके बाहुबली अतीक अहमद ने जेल से ताल ठोंक दी है। अतीक के मैदान में उतरने से सपा और कांग्रेस के खेमे में हलचल तेज हो गई है। उन्हें अपनी गणित बिगड़ती नजर आ रही है।
फूलपुर संसदीय क्षेत्र देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का चुनाव क्षेत्र रहा है। लिहाजा इस सीट को महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। पं.नेहरू यहां से लगातार तीन बार विजयी हुए थे। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर का फायदा उठाते हुए यहां से केशव प्रसाद मौर्य ने 3 लाख 8 हजार से अधिक मतों से जीत हासिल की थी। उन्होंने अपने निकतटम प्रतिद्वंद्वी सपा के धर्मराज पटेल को हराया था जबकि इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी क्रिकेटर मो.कैफ की जमानत तक जब्त हो गयी थी।
इस बीच केशव के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद यह सीट रिक्त हो गयी। भाजपा अपनी सीट गंवाना नहीं चाहती। इसीलिए जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए कौशलेन्द्र को चुनाव मैदान में उतारा गया है। माना जा रहा है कि कौशलेन्द्र के जीतने पर पूर्वांचल में भाजपा को मजबूती मिलेगी। बाहरी प्रत्याशी को मैदान में उतारने से पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं में उठने वाले विवाद पर भी अंकुश लग गया है।