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अभियंता दिवस विशेष : अभियंत्रण सेवाओं और अभियंताओं की दशा और दिशा
भारत में हर वर्ष 15 सितंबर को “अभियंता दिवस” मनाया जाता है। प्रतिभा के धनी प्रसिद्ध अभियंता भारत रत्न डॉ. श्री मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म इसी दिन हुआ था और उनके उत्कृष्ट कार्यों के स्मरण के उद्देश्य से यह परंपरा वर्ष 1968 से इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स द्वारा प्रारंभ की गई और इस प्रकार 2017 में मनाया जाने वाला यह 50 वाँ “अभियंता दिवस” है।
शैलेन्द्र दुबे
लखनऊ: भारत में हर वर्ष 15 सितंबर को “अभियंता दिवस” मनाया जाता है। प्रतिभा के धनी प्रसिद्ध अभियंता भारत रत्न डॉ. श्री मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म इसी दिन हुआ था और उनके उत्कृष्ट कार्यों के स्मरण के उद्देश्य से यह परंपरा वर्ष 1968 से इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स द्वारा प्रारंभ की गई और इस प्रकार 2017 में मनाया जाने वाला यह 50 वाँ “अभियंता दिवस” है।
तकनीकी क्षेत्र के कार्यों में नियोजित निर्देशन कुशलतापूर्वक करने वाले विशेषज्ञ व्यक्ति को अभियंता (इंजीनियर) कहा गया है और जीवन यापन की परिस्थितियों का अनुकूलन करने की विधा को अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) कहा गया है। यद्यपि अभियांत्रिकी की औपचारिक शिक्षा तो उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ से ही शुरू हुई थी परन्तु अनौपचारिक रूप से शिक्षित अभियंताओं और अभियांत्रिकी का जुड़ाव मानव सभ्यता के विकास के साथ सदा से ही है क्योंकि यह विकास अभियंता के योगदान तथा अभियांत्रिकी के उपयोग के बिना संभव ही नहीं है।
वर्तमान समय में अभियांत्रिकी विकास की गति लगातार तेज होती जा रही है और इस कारण जीवनशैली में भारी परिवर्तन हो रहे हैं, सुविधाएं बढ़ी हैं लेकिन साथ ही जटिलताएं भी बढ़ी हैं। टीवी, कम्प्यूटर, इंटरनेट, सेलफोन आदि कई उपकरणों ने तो दिनचर्या पर क्रांतिकारी प्रभाव डाले हैं और इनके कारण अभियंताओं का कार्यक्षेत्र बढ़ता जा रहा है। अतः किसी देश के त्वरित विकास के लिये निष्णात अभियंताओं की उपलब्धि एक प्राथमिक आवश्यकता हो गई है। यह अपने देश का सौभाग्य है कि यहाँ मेघावी और प्रतिभा के धनी अभियंताओं की कमी नहीं है और यहाँ के अभियंताओं की धाक पूरे विश्व में है। खेद इस बात का है कि भारत देश, जो विश्व भर में अभियंताओं की आपूर्ति कर रहा है, अपने ही अभियंताओं की प्रतिभा का न तो वांछित लाभ ले पा रहा है और न ही समुचित सम्मान कर पा रहा है , इसी कारण यहाँ से प्रतिभाओं का पलायन हो रहा है।
भारत में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है, हर तरह की जलवायु और खनिज यहाँ उपलब्ध हैं, पर्याप्त धूप, जल संसाधन, समुद्री किनारे आदि यहाँ पर हैं, मेहनती युवा शक्ति यहाँ पर है केवल आवश्यकता इनके नियोजित उपयोग की है जिसके लिये पर्याप्त कुशल अभियंता भी यहाँ पर हैं। फिर भी यदि वांछित विकास नहीं हो पा रहा है तो यह एक गंभीर प्रश्न है जिस पर यथोचित मंथन समय की महती आवश्यकता है।
यदि उत्तर प्रदेश की बात करें तो अभियांत्रिकी प्रतिभा के मामले में प्रदेश सदैव अग्रणी रहा है । आईआईटी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय , एचबीटीआई , एमएनआईटी जैसे देश के जाने माने इन्जीनियरिंग कालेज यूपी में होने के कारण प्रदेश में मेधावी अभियंताओं की कभी भी कमी नहीं महसूस की गयी । परिणाम स्वरुप प्रदेश के इंजीनियरिंग विभागों की उपलब्धियां भी गर्व करने लायक रही हैं | 1970 के दशक में सरकारों ने अभियंत्रण सेवाओं और अभियंताओं के महत्त्व को समझा और इंजीनियरिंग विभागों का पूर्ण दायित्व योग्य और विशेषज्ञ अभियंताओं को दिया गया । बिजली और सिंचाई दो ऐसे प्रमुख विभाग थे जिनके प्रमुख सचिव पद पर विभाग के वरिष्ठ अभियंताओं को तैनात किया गया और अच्छे परिणाम आने शुरू हो गए ।
देश में सबसे पहले 110 मेगावॉट क्षमता की थर्मल इकाई (ओबरा में 1979 में ) के नियोजन , डिजाइन , निर्माण और संचालन का श्रेय यूपी के बिजली अभियंताओं के नाम है । देश के प्रथम भूमिगत हाइडिल पावर स्टेशन का निर्माण छिबरो (डाक पत्थर - अब उत्तराखंड ) में प्रदेश के अभियंताओं ने ही किया । देश में सर्वप्रथम 400 के वी पारेषण लाइन और उपकेन्द्र के नियोजन , निर्माण और संचालन का कार्य यहाँ के इंजीनियरों ने ही किया । 765 के वी पारेषण लाइन और उपकेंद्र भी देश में सबसे पहले यहां के इंजीनियरों ने ही संचालित किया ।
पी डब्लू डी से बने नए निगमों यूपी सेतु निगम और उत्तर प्रदेश निर्माण निगम ने न केवल देश के अन्य प्रांतों अपितु विदेश में भी प्रतिस्पर्धात्मक बिडिंग के जरिये नए प्रोजेक्ट हासिल किये और रिकार्ड समय में उनका सफल निर्माण कर प्रदेश का गौरव बढ़ाया । ग्रामीण विद्युतीकरण को गति मिलने से प्रदेश के किसान की वर्षा पर निर्भर रहने की विवशता काफी कुछ कम हुई । प्रदेश भर में फैला हुआ सड़कों का विस्तृत जाल जिससे गाँव, कस्बों और शहरों से जुड़ते गए , अभियंताओं की ही देन हैं । लेकिन 70 के दशक की इन सफलताओं के बावजूद अभियंताओं को हटाकर इंजीनियरिंग विभागों की बागडोर पुनः नौकरशाहों को दे दी गयी और अभियंताओं को पुनः उन्ही के विभाग में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया ।
आज हालात बहुत खराब हो चुके हैं । 30 - 35 साल की नौकरी के अनुभवी अभियंता के बॉस और सुपर बॉस बहुत कम सर्विस के ऐसे नौकरशाह बन रहे हैं जिन्हे न तो विभाग के विषय का ज्ञान होता है और न ही वह किसी जटिल तकनीकी समस्या का कोई समाधान ही बता सकते हैं । दुष्परिणाम सामने है । कभी देश में अग्रणी रहने वाला उत्तर प्रदेश अब प्रगति की दौड़ में बिहार और उड़ीसा जैसे प्रांतों से भी पिछड़ता जा रहा है । 1969 में केंद्र सरकार द्वारा गठित प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में साफ़ तौर पर अनुशंसा की गयी थी कि इंजीनियरिंग विभागों का कार्य पूरी तरह विशेषज्ञ इंजीनियरों को ही दिया जाये और इंजीनियरों को सामान्य सेवाओं की तुलना में अधिक वेतन दिया जाये । 1974 में उप्र में गठित बी डी सानवाल कमेटी ने भी इंजीनियरों को अधिक वेतन देने और सचिव बनाये जाने की सिफारिश की किन्तु दोनों रिपोर्टों पर कोई अमल होना तो दूर की बात है उलटे अभियंत्रण सेवाओं और अभियंताओं की निरंतर हो रही उपेक्षा ने आज प्रदेश की प्रगति के चक्के को ही जाम कर दिया है ।
देश के स्वतंत्र होने से पहले तीन प्रमुख सेवायें थीं । आई सी एस , आई पी और आई एस ई । इनमे से आई सी एस अब आई ए एस के नाम से और आई पी अब आई पी एस के नाम से चल रही है किंत आई एस ई अर्थात इंडियन सर्विस ऑफ इंजीनियर्स की जरूरत नहीं समझी गयी |यदि इंजीनियरिंग सेवाओं और इंजीनियरों की देश के विकास में महती भूमिका है तो अखिल भारतीय इंजीनियरिंग सेवा का पुनर्गठन और भी आवश्यक है , यह स्वीकार करना चाहिए ।
अगर हम अतीत की ओर देखें तो मैसूर के तत्कालीन राजा ने श्री विश्वैश्वरैया जैसे अभियंता को, उनकी योग्यता और कुशलता को देखते हुए, अपने राज्य का दीवान (प्रधान मंत्री) नियुक्त किया था । श्री जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. के. एल. राव की तकनीकी योग्यता देख कर उनको सिंचाई मंत्री पहले नियुक्त किया और चुनाव बाद में लड़वाया । श्री नेहरू ने ही स्लोक्हम जैसे निष्णात अमरीकि इंजीनियर को उस समय राष्ट्रपति के वेतन के बराबर वेतन दे कर भाखड़ा बाँध बनाने के लिये नियुक्ति दी और चंडीगढ़ बसाने के लिये प्रसिद्ध स्विस वास्तुविद् ला कार्बूजिये को उनकी शर्तों पर आमंत्रित किया । ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन सभी ने अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
प्रतिभाएं चाह कर भी तिरस्कृत और पराधीन नहीं रह सकती हैं और इसलिये इस महान देश के विकास और जन समस्याओं के स्थाई समाधान के लिये आवश्यक यह है कि प्रतिभाशाली अभियंताओं को वांछित सम्मान देते हुए निर्णय लेने व कार्य करने की स्वतंत्रता दी जाये ताकि वे अपनी कुशलता का उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें।
भारत में अभियांत्रिकी विधा सदियों से उत्कृष्ट रही है । रामायण के सुंदरकांड में सर (सरोवर), कूप (कुआँ), वापी (बावड़ी) उपवन (बगीचा), सिंचाई, विविध आयुधों, नल व नील द्वारा सेतु (पुल) निर्माण, पुष्पक विमान आदि का उल्लेख उस समय की विकसित अभियांत्रिकी का संकेत देता है। इसी तरह महाभारत काल में लाक्षागृह का निर्माण, इंद्रप्रस्थ नगरी का विकास, संजय की दूरदृष्टि क्षमता, तीर से भूगर्भीय जल निकालने का उल्लेख भी यही दर्शाता है। सदियों पुराने महल, मीनारें, किले, मंदिर, खानें, विशाल बाँध और नहर प्रणालियाँ, निष्णात अभियंताओं की यशोगाथा आज भी गा रही हैं।
भारत शीघ्रताशीघ्र विकसित देशों की श्रेणी में आवे इसके लिये यह आवश्यक है कि समाज अपने अभियंताओं की प्रतिभा का भरपूर उपयोग करे व अभियंताओं का भी यह कर्तव्य बनता है कि वे अपनी प्रतिभा का पूरा पूरा उपयोग करें, अपने ज्ञान को अद्यतन (अपडेटेड) रखें और अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह पूरी जिम्मेदारी के साथ करें ताकि उनके द्वारा निर्देशित कार्य अपनी एक विशिष्ट झलक दें और निर्धारित मापदंडों पर खरे उतरें।
आज इंजीनियर्स डे मात्र रस्म अदायगी न रह जाए इसलिए सरकार और इंजीनियरों दोनों के लिए विचार मंथन का समय है । राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त के शब्दों में - " हम कौन थे , क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी - आओ विचारें आज मिल कर ये समस्या हम सभी " ।
(लेखक शैलेन्द्र दुबे जो कि ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन हैं)