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बार-बार एस्मा पर भड़के कर्मचारी संगठन ,आदेश वापस लेने की मांग

यूपी में 6 माह तक के लिए एस्मा आगे बढ़ा दिया गया है। ऐसे में अब सरकारी सेवाओं में हड़ताल करने पर एक बार फिर रोक लग गई है।

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Newstrack NetworkPublished By Vidushi Mishra
Published on: 27 May 2021 1:01 PM GMT (Updated on: 27 May 2021 2:20 PM GMT)
Government offices stop strike for 6 months, Yogi government imposed ESMA
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सीएम योगी आदित्यनाथ(फोटो-सोशल मीडिया)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से लागू किए गए एस्मा ने कर्मचारी और शिक्षकों को भड़का दिया है। शिक्षक और कर्मचारी संगठनों ने इसका खुलकर विरोध किया है और सरकार से कहा है कि अपना यह आदेश तत्काल वापस ले। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सरकार की ओर से बार-बार एस्मा लागू किया जा रहा है जबकि कर्मचारी संगठनों ने आंदोलन का कोई नोटिस भी नहीं दे रखा है।

इस मामले में शिक्षक कर्मचारी पेंशनर्स अधिकार मंच के नेताओं का कहना है कि सरकार एस्मा के बहाने कर्मचारियों की समस्याओं से निपटाने के बजाए अपना कार्यकाल पूरा करना चाह रही है। बता दें, इस सरकार में लगातार तीन बार कर्मचारी तथा शिक्षक संगठनो पर एस्मा लगाई गई। जिसके चलते इतने कम समय में सरकार द्वारा बिना हड़ताल, आन्दोलन के नोटिस के एस्मा लगाना कर्मचारियों के खिलाफ अघोषित इमरजेंसी है।

समस्याएं कहने का अधिकार छीना

शिक्षक कर्मचारी पेंशनर्स अधिकार मंच के नेता डा. दिनेश शर्मा, अध्यक्ष, सुशील कुमार प्रधान महासचिव, इं. हरिकिशोर तिवारी अध्यक्ष राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद, रामराज दुबे अध्यक्ष चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी महासंघ, सतीश कुमार पाण्डेय अध्यक्ष राज्य कर्मचारी महासंघ, कमलेश मिश्रा अध्यक्ष राज्य कर्मचारी महासंघ के हस्ताक्षर से तीसरी बार जारी एस्मा आदेश का विरोध जाहिर करते हुए पत्र मुख्य सचिव को भेजा है।

इस पत्र में स्पष्ट रूप से तीसरी बार जारी एस्मा आदेश को कर्मचारियों के संगठनों के मौलिक अधिकारी को हनन बताते हुए इसका हर स्तर पर प्रतिवाद किए जाने का इरादा जताया गया है। इस पर कर्मचारी नेताओं का कहना है कि संगठनों का अपनी समस्याएं कहने का अधिकार प्रत्येक स्तर पर होता है।

इस संबंध में मुख्य सचिव स्तर से लगभग हर मुख्य सचिव द्वारा कड़े निर्देश जारी किए जाते है कि प्रतेक महीने सभी शीर्ष अधिकारी अपने अधीनस्थ संगठनों की बात को सुनकर उनका हल निकाले परंतु प्रदेश का दुर्भाग्य है कि 90 प्रतिशत अधिकारी उन आदेश का पालन नहीं करते।

जिसका परिणाम यह है कि कर्मचारियों समस्याएं बढ़ती जाती हैं फिर आंदोलन की शुरुआत होती है। लेकिन ऐसा नही कि तत्काल कर्मचारी काम ठप्प कर दे या हड़ताल पर चले जाए पहले काला फीता बांधना ,जिला में धरना प्रदर्शन करना, मसाल जलूस निकाला, मंडल स्तर पर धरना प्रदर्शन करना, प्रदेश में रैली निकालना उसके बाद हड़ताल की घोषणा तक की जाती है। यानि स्पष्ट है कि कर्मचारी शिक्षक संगठन गोल टेबिल पर वार्ता के लिए तैयार रहते हे लेकिन शीर्ष के लोग सुनना नहीं चाहते।



डा. दिनेश शर्मा, अध्यक्ष, सुशील कुमार प्रधान महासचिव, इं. हरिकिशोर तिवारी अध्यक्ष राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद, रामराज दुबे अध्यक्ष चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी महासंघ, सतीश कुमार पाण्डेय अध्यक्ष राज्य कर्मचारी महासंघ, कमलेश मिश्रा अध्यक्ष राज्य कर्मचारी महासंघ कहना है कि संगठनों का दायित्व है कि अपनी सही बात उचित स्तर पर पहुंचाकर हल निकाल कर कर्मचारियों को न्याय दिलाएं बात ना सुनी जाने कि स्थित में समस्त कार्यक्रम जैसे कार्य बहिष्कार तथा हड़ताल तक करने को बाध्य होते हैं।

कर्मचारियों शिक्षकों पर इमरजेंसी

साथ ही उनका कहना है कि नई पेंशन व्यवस्था में तमाम खामियों के कारण 15 वर्षों बाद भी हमारे कर्मचारी, शिक्षक परेशान है।कई ऐसे उदाहरण है कि उन्हें पेंशन के नाम परकुछ भी हासिल नहीं हो रहा है।

महामारी कोरोना को संभालने में काफी मेहनत करने के बाद भी महंगाई भत्ता तथा अन्य भत्ते काटे गए, सातवे वेतन आयोग की संस्तुतियों आज 4 साल बाद भी बसते में बंद हैं। विगत 18 महीने से लगातार अस्मा लगाया जा रहा है आखिर वर्तमान सरकार में जो समस्या रही है उनका हल चुनाव से पहले हमें इसी सरकार से निकालना ही है।

ऐसे में सबसे बड़ी बात यह है कि जब कर्मचारी शिक्षक बड़े आंदोलन आविष्कार हड़ताल उसमें भी तोड़फोड़ पर होता है और संघटना से वार्ता का क्रम टूट जाता है तब एस्मा लगाया जाता रहा है। लेकिन कतिपय चंद शीर्ष अधिकारी पता नहीं क्यों बिना बड़े आंदोलन के या किसी बड़े संगठन के नोटिस के ही एस्मा लगा देते हैं। हालाकिं इसे हम मान्यता प्राप्त संगठन के लोग अनावश्यक धमकी के रूप में मानते हैं। वहीं ऐसा लगता है जैसे कर्मचारियों शिक्षकों पर इमरजेंसी लगा दी गई।

तो अब इस तरह बार-बार एस्मा लगाने का मतलब सरकार चाहती हे कि अब कर्मचारी शिक्षक अपनी समस्या भी नहीं उठाएंगे ? सरकार आपकी समस्या भी नहीं सुनेंगी ? आप आंदोलन भी नहीं करेगें ? उन्होंने इस आदेश को कर्मचारियों और शिक्षकों के लिए अघोषित आपातकाल का प्रतीक बताते हुए तत्काल एस्मा आदेश वापस लेने की मांग की है।

ये है एस्मा का मतलब

जानकारी देते हुए बता दें, कि एस्मा भारतीय संसद द्वारा पारित अधिनियम है, जिसे 1968 में लागू किया गया था। ये कानून संकट की घड़ी में कर्मचारियों के हड़ताल को रोकने के लिए ये बनाया गया था।

इस कानून के तहत, किसी राज्य सरकार या केंद्र सरकार की ओर से ये कानून अधिकतम छह महीने के लिए लगाया जा सकता है। इस कानून के लागू होने के बाद यदि कर्मचारी हड़ताल पर जाते हैं तो उनका ये कदम अवैध और दंडनीय की श्रेणी में आता है। एस्मा कानून का उल्लंघन कर हड़ताल पर जाने वाले किसी भी कर्मचारी को बिना वारंट गिरफ्तार किया जा सकता है।

Vidushi Mishra

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