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Etah News: जिलाध्यक्ष का फसा पेंच: संघ-बीजेपी में नई रणनीति या आंतरिक संघर्ष

Etah News: एटा और फिरोजाबाद सहित कुछ जिलों में यह फैसला टल गया है। इस विलंब ने पार्टी के अंदरखाने गहराते मतभेदों और संघ की नई रणनीति की अटकलों को हवा दे दी है।

Sunil Mishra
Published on: 23 March 2025 5:59 PM IST
Etah News
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Etah News (Image From Social Media)

Etah News: जिले में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के जिलाध्यक्ष पद पर असमंजस की स्थिति एटा में बरकरार है। प्रदेश के लगभग अधिकतर जिलों में जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा हो चुकी है, लेकिन एटा और फिरोजाबाद सहित कुछ जिलों में यह फैसला टल गया है। इस विलंब ने पार्टी के अंदरखाने गहराते मतभेदों और संघ की नई रणनीति की अटकलों को हवा दे दी है।

संघ और बीजेपी के बीच नई खींचतान?

सूत्रों की मानें तो बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के बीच नेतृत्व और संगठनात्मक निर्णयों को लेकर अक्सर सहमति रही है। हालांकि, इस बार जिलाध्यक्ष के चयन में सहमति बनने में देरी ने संकेत दिए हैं कि अंदरूनी गणित साधने की कोशिशें जारी हैं। खासतौर पर एटा में जातीय समीकरण की उलझन ने इस मामले को पेचीदा बना दिया है।

कौन बनेगा जिलाध्यक्ष?

एटा के जिलाध्यक्ष पद के लिए करीब 46 आवेदन आए हैं, लेकिन संघ की प्राथमिकता ऐसे कद्दावर उम्मीदवार को जिलाध्यक्ष बनाने की है, जो पार्टी का जातीय समीकरण साध सके। एटा में ब्राह्मण, लोधी, शाक्य, और वैश्य समुदाय के बीच संतुलन बनाना जरूरी है, क्योंकि इनका असर दोनों विधानसभा सीटों—एटा और मारहरा—के नतीजों पर पड़ता है।

ऐसा ही फिरोजाबाद पर भी फंसा समीकरण

फिरोजाबाद में भी जातीय संतुलन साधना चुनौतीपूर्ण है। परंपरागत रूप से लोधी जिलाध्यक्ष बनाने की संभावना पर चर्चा है, लेकिन इस बार शाक्य समुदाय से जिलाध्यक्ष की नियुक्ति पर भी विचार किया जा रहा है। हालांकि, शाक्य समाज ने हाल ही में समाजवादी पार्टी (सपा) को समर्थन देकर बीजेपी के लिए नई चुनौती खड़ी की है।

क्या ब्राह्मण वोटरों की नाराजगी बढ़ेगी?

एटा में ब्राह्मण जिलाध्यक्ष न बनने पर पार्टी के परंपरागत ब्राह्मण वोटरों में नाराजगी की आशंका भी जताई जा रही है। कासगंज में पहले ही ब्राह्मण जिलाध्यक्ष बनाकर संघ ने वहां संतुलन साधा है, लेकिन एटा में यह संतुलन अभी अधर में है।

क्या होगा बीजेपी का नया प्रयोग?

संघ और बीजेपी के इस नए प्रयोग में एटा में अगर किसी ओबीसी या शाक्य जिलाध्यक्ष की नियुक्ति होती है, तो यह एक बड़ा जोखिम होगा। इससे लोधी और अन्य सवर्ण जातियों की नाराजगी बढ़ सकती है, जिसका असर आगामी चुनावों पर पड़ना तय है।

2027 के लिए समीकरण साधने की चुनौती

अगर एटा और मारहरा विधानसभा सीटों पर बीजेपी को 2027 में जीत दर्ज करनी है, तो अभी से जिलाध्यक्ष चयन में जातीय और सामाजिक समीकरण साधना होगा। अन्यथा, दोनों सीटों पर पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

संघ के झोले से निकलेगा जिलाध्यक्ष, पर वैश्य उम्मीदवार ?

सूत्रों के अनुसार, एटा में इस बार वैश्य जिलाध्यक्ष बनने की संभावना नहीं है। संघ की योजना कुछ अलग और नया प्रयोग करने की है, जिससे बीजेपी का सांगठनिक ढांचा मजबूत हो सके।आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि एटा में जिलाध्यक्ष कौन बनता है और यह फैसला बीजेपी के जातीय और राजनीतिक समीकरणों पर क्या असर डालता है?

Ramkrishna Vajpei

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