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Etawah News: चम्बल नदी में मगरमच्छ-घड़ियाल की नेस्टिंग शुरू, इस समय बहुत आक्रमक हैं ये जलजीव

Etawah News: इस समय मगरमच्छ व घड़ियालों की चल रही नेस्टिंग में नन्हे मुन्ने बच्चे अंडों से निकल कर बाहर आ रहे है ।

Sandeep Mishra
Published on: 8 Jun 2022 11:26 AM IST
Nesting of alligators and crocodiles
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चम्बल नदी में घड़ियालों व मगरमच्छ की नेस्टिंग शुरू (photo: social media )

Etawah News: कभी डकैतों की गोलियों से लोगों को थर्राने वाली चम्बल घाटी, आज अपने आगोश में नए नन्हे मुन्ने मेहमानों का स्वागत कर रही है। इटावा के चम्बल सेंचुरी इलाके में मगर व घड़ियालों (Nesting of crocodiles) की नई पीढ़ी ने जन्म लिया है। ये नन्हे मुन्ने बच्चे अंडों से निकल कर अब इस समय चम्बल नदी (Chambal river) के पानी मे मस्ती कर रहे हैं और नई दुनियां का लुत्फ उठा रहे हैं।

इस इटावा की चम्बल नदी के साफ पानी में इस समय बेहद अनोखा नजारा देखने को मिल रहा है। इस समय मगरमच्छ व घड़ियालों की चल रही नेस्टिंग में नन्हे मुन्ने बच्चे अंडों से निकल कर बाहर आ रहे है इस तपती गर्मी में चम्बल के ठंडे पानी का भरपूर आंनद ले रहे हैं। नदी किनारे मगरमच्छ व घड़ियालों में खबसूरत शिशु पूरे जून माह भर नेस्टिंग के समय अंडों से निकल कर चम्बल नदी के पानी मे मस्ती करते नजर आएंगे।

सिर्फ चम्बल नदी में पाए जाते हैं ये घड़ियाल

इंटरनेशनल यूनियन फ़ॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर द्वारा घोषित क्रिटिकल एंडेन्जर्ड गेवीएलिस गेंगेटिकस ( भारतीय उपमहाद्वीप की बेहद खतरे में शुमार घड़ियालों की यह विश्व प्रसिद्ध प्रजाति सिर्फ पूरे विश्व मे सिर्फ चम्बल नदी में ही पाई जाती है।विश्व प्रसिद्ध घड़ियालों इस कुनबे में हर साल की तरह ही इस नेस्टिंग वर्ष में कुछ बढोत्तरी हुई है।

मगरमच्छ की कुल 23 प्रजातियाँ हैं

IUCNCEC के सक्रिय सदस्य, पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण के लिये कार्य कर रहे संस्था ओशन के महासचिव एवं प्राणी व्यवहार के पूर्व व्याख्याता वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ आशीष त्रिपाठी ने बताया कि विश्व भर में मगरमच्छों की कुल 23 प्रजातियां मौजूद है जिनमे भारत मे केवल 3 व चम्बल सेंचुरी में सिर्फ 2 (मगर/घडियाल) ही मौजूद है। जिनमे मगर का वयस्क नर 14 फ़ीट तक लम्बा होता है व मादा 8 फ़ीट तक लम्बी हो सकती है वहीं वयस्क नर घडियाल 15 फ़ीट व वयस्क मादा 13 फ़ीट लम्बी होती है।

तीन-फीट के गहरे गड्ढों में मादा घड़ियाल करती है नेस्टिंग

डॉ आशीष के अनुसार प्रत्येक वर्ष में फरवरी माह में दो से तीन हफ्ते तक नर मादा घडियाल मेटिंग करते है फिर मार्च के अंत व अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक नेस्टिंग होती है। नदी तट से कुछ दूर बालू में मादा घडियाल अपने पैरों से तीन से चार फीट का गहरा गढ्ढा खोदकर उसमे समान्यतयः25 से 30 तक अंडे देती है। उसके बाद अप्रैल व मई तक लगभग 60 दिन इन्क्यूबेशन पीरियड (अंडे में जीवन आरंभ) चलता है फिर मई के अंत मे और जून के प्रथम सप्ताह में अंडो से छोटी छोटी हेचलिंग्स (बच्चे) निकलने लगते है। अंडो से एक नन्हा नवजीवन सृजित होने के बाद प्रकृति प्रदत्त नन्हा सा खूबसूरत घडियाल जब अंडों से बाहर आता है तो माँ भी अपने घोंसले को थपथपा कर बच्चों को बाहर आने व अपने बाहर मौजूद होने व उनकी पूर्ण सुरक्षा का संकेत बराबर ही देती रहती है । प्रकृति में माँ और बच्चों का यह मूक वार्तालाप यूं ही चलता रहता है। जो उनका एक ईश्वरीय प्रदत्त जन्मजात व्यवहार व रिश्ता भी है। उसके बाद पूरे जून माह में व जुलाई के प्रथम सप्ताह तक पेरेंटल केयर (माता पिता द्वारा बच्चों की देखभाल) चलती रहती है।

सेंचुरी इलाके में घड़ियालों के 1000, मगरमच्छ के 200 बच्चों का जन्म

वन्य जीव जन्तु विशेषज्ञ डॉ0 आशीष त्रिपाठी ने बताया कि इस बार पूरी 425 किमी लम्बी राष्ट्रिय चम्बल सेंचुरी ट्राई स्टेट इको रिजर्व (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,राजस्थान मैं विस्तारित) सेंचुरी एरिया में लगभग 400 से अधिक नेस्ट चिन्हित किये गये है जिनसे अब तक घड़ियालों के लगभग 1000 और मगर के लगभग 200 बच्चे जन्म भी ले चुके है । जो कि अब धीरे धीरे बड़े हो रहे है लेकिन इसके विपरीत बड़ी विडंबना है कि, प्रकृति में एक प्राकृतिक संतुलन का नियम भी साथ साथ चलता रहता है यही बच्चे जुलाई माह में चम्बल की भयावह बाढ़ का शिकार भी हो जाएंगे और कौन नन्हा मेहमान कितनी दूर तक बह कर आगे चला जायेगा कौन यही रह जायेगा यह तो ईश्वर ही जाने।

शिकारी कुत्तों व बाज से जीवन का खतरा

डॉ0 आशीष ने बताया कि मगरमच्छ व घड़ियाल के इन छोटे छोटे शिशुओं को शिकारी कुत्तों,बाज या अन्य शिकारी पक्षियों व जानवरो से भी एक अनजाना खतरा हमेशा बना ही रहता है।घड़ियालों के बाद इस समय मगर के अंडों से भी बच्चे निकलना शुरू हो चुके हैं जो आजकल पानी मे अपने मां बाप के सुरक्षित साये में चम्बल नदी के पानी मे मनमोहक अठखेलियाँ करते देखे जा सकते है

मगर व घड़ियाल के पास न जाएं,जा सकती है जान

वन्य जीव जंतु विशेषज्ञ आशीष ने लोगों को सचेत करते हुए कहा कि मगरमच्छ व घड़ियालों के दीदार को लालायित लोग जरा सावधान भी रहें। इस समय उनके पास जाना अपनी मौत को खुली दावत देना ही है क्योंकि इस समय जून माह में नर व मादा घड़ियाल एवं मगर अपने नौनिहालों की सुरक्षा को लेकर बेहद सतर्क व अलर्ट मोड़ पर रहते है और किसी भी बाहरी साये से सीधे दो दो हाथ करने को तैयार है। इसी तरह कुछ दिन पहले मौत के साये से अनजान, बकरीयों को पानी पिलाने गई बच्ची खतरनाक मगर का निवाला बन गई थी। उनका कहना है कि चम्बल की शान विश्व प्रसिद्ध घड़ियाल प्रजाति कभी भी मानव जाति पर हमलावर नही होती है ये चम्बल का इससे पूर्व का इतिहास भी रहा है ।

मगर व घड़ियालों की पहचान चिन्ह

नदी किनारे धूप सेंकते या पानी मे तैरते नर घड़ियालों को आप उसकी बड़ी थूथन से आसानी से पहचान सकते हो जिस पर घड़े जैसी बड़ी आकृति बनी होती है। वही मादा घड़ियाल की चोंच पर ऎसी कोई भी आकृति नही पाई जाती है।

नन्हे शिशुओं को दी जा रही पर्याप्त सुरक्षा

इटावा जिले के प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी अतुल कांत शुक्ला ने बताया कि चम्बल नदी में घड़ियाल व मगरमच्छ के इन नन्हे मेहमानों की सुरक्षा के पूर्ण इंतज़ाम वन विभाग व सेंचुरी की वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन यूनिट की देख रेख में किये गये है।उन्होंने बताया कि वही दूसरी ओर अंडो से बच्चे निकलने तक सभी जरूरी सावधानियां रखी जाती है। बीच बीच मे कुकरैल ब्रीडिंग सेंटर लखनऊ से भी घड़ियालों के बच्चे चम्बल नदी में लाकर छोड़े जाते है।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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