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Exclusive: UP में बंटते हैं लाखों कम्बल फिर भी ठिठुरते हैं लोग, जानें पूरा खेल

aman
By aman
Published on: 5 Jan 2018 11:00 AM IST
Exclusive: UP में बंटते हैं लाखों कम्बल फिर भी ठिठुरते हैं लोग, जानें पूरा खेल
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Exclusive: बंटते हैं लाखों कम्बल फिर भी ठिठुरते हैं लोग, जानिए क्या है कारण

मनोज द्विवेदी

लखनऊ: प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहित अलग-अलग शहरों में हर साल जाड़े में लाखों कम्बल बांटे जाते हैं। फिर भी सड़क पर ठिठुरते गरीबों को आसानी से देखा जा सकता है। इसके पीछे कम्बल के काले कारोबार से जुड़े लोगों का हाथ होता है, जो गरीबों की देह से कम्बल उतार लेते हैं और उन्हें कड़ाके की ठंड में ठिठुरने के लिए छोड़ देते हैं। newstrack.com की जांच में और कई खुलासे हुए हैं।

गुरुवार (04 जनवरी) को ही प्रदेश सरकार ने कुछ आंकड़े पेश किए। इन आंकड़ों में प्रदेश भर में 3 लाख से ज्यादा कम्बल बांटने का जिक्र है। जाहिर सी बात है यह केवल सरकारी आंकड़ा है। इनके अलावा कई स्वयंसेवी संगठनों और अन्य संस्थाओं द्वारा गरीबों को मुफ्त में कम्बल बांटे जाते हैं। बहुत से आम नागरिक भी व्यक्तिगत तौर पर 100-200 कम्बल अलग-अलग शहर में बांटते हैं, फिर भी गरीबों को राहत नहीं मिलती।

Exclusive: बंटते हैं लाखों कम्बल फिर भी ठिठुरते हैं लोग, जानें पूरा खेल कम्बल सिंडिकेट सक्रिय

newstrack.com की टीम ने जब इसकी पड़ताल की, तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। शहर के हजरतगंज चौराहे पर बिना कम्बल ठंड से ठिठुर रहे जयप्रकाश ने बताया, कि दो दिन पहले ही उन्हें नया कम्बल मिला था लेकिन कुछ लोग आए और 50 रुपए देकर कम्बल ले गए। साथ ही बोले, कि तुम्हें शाम तक नया कम्बल दे जाएंगे। ऐसी हालत सिर्फ एक जगह नहीं बल्कि हर जगह है। क्योंकि कम्बल सिंडिकेट से जुड़े लोग इसी तरह हर वर्ष जाड़े में लाखों की काली कमाई करते हैं।

Exclusive: बंटते हैं लाखों कम्बल फिर भी ठिठुरते हैं लोग, जानें पूरा खेल इस तरह होता है कम्बल का खेल

सूत्रों ने बताया, कि हर शहर में गरीबों को बांटने के लिए थोक के भाव कम्बल उपलब्ध कराने वालों का रैकेट चलता है। जैसे आपको 500 कम्बल बांटने हैं तो वे कम से कम दाम में कम्बल देने का का दावा कर, कम्बल बेच देते हैं। साथ ही, उनके लोग कम्बल बांटने का इलाका भी बताते हैं। कम्बल बांटने वाले वहां जाकर गरीबों को कंबल दे देते हैं और चले जाते हैं। उनके जाने के बाद रैकेट से जुड़े लोग उन गरीबों को कुछ पैसा देकर या धमकी देकर, दोबारा कम्बल देने का वादा कर उनसे कम्बल वापस ले लेते हैं। इस तरह फिर वह कम्बल सिंडिकेट के पास पहुंच जाता है। फिर नया ग्राहक आता है और यही चक्र बार-बार जारी रहता है। चूंकि यह सब इतने गुपचुप तरीके से होता है कि किसी को कोई शक ही नहीं होता।

Exclusive: बंटते हैं लाखों कम्बल फिर भी ठिठुरते हैं लोग, जानें पूरा खेल सरकारी कर्मचारी भी मिले होते हैं

ऐसा नहीं है कि यह काम सिर्फ निजी स्तर पर कम्बल बांटने वालों के साथ होता है। कई बार सरकारी कम्बलों में भी इसी तरह का खेल किया जाता है। कुछ दिन पहले ही प्रदेश मंत्री बृजेश पाठक द्वारा बांटे गए कम्बल सरकारी कर्मचारियों द्वारा वापस लिए जाने का मामला सुर्ख़ियों में आया था। इनकी सारी करतूत कैमरे में कैद हो गई थी। जिससे यह साबित होता है कि गरीबों को राहत देने वाले हर काम में धांधली करने वालों की पूरी घुसपैठ है।

Exclusive: बंटते हैं लाखों कम्बल फिर भी ठिठुरते हैं लोग, जानें पूरा खेल होनी चाहिए मॉनिटरिंग

एक स्वयंसेवी संस्था से जुड़े राजेश सिंह कहते हैं, कि इस तरह के काम पर तभी रोक लगाई जा सकती है जब इसकी सही तरह से मॉनिटरिंग हो। जहां पर भी कम्बल वितरण का कार्यक्रम पूरा हो वहां 24 घंटे और 48 घंटे के अंतराल पर एक बार जांच जरूर की जाए। क्योंकि कभी-कभी कम्बल लेने वाले लोग भी उसी सिंडिकेट से जुड़े होते हैं जो कम्बल पाने के बाद गायब हो जाते हैं।

Exclusive: बंटते हैं लाखों कम्बल फिर भी ठिठुरते हैं लोग, जानें पूरा खेल

सभी तस्वीरें newstrack.com के फोटो जर्नलिस्ट आशुतोष त्रिपाठी की कैमरे से...

Exclusive: बंटते हैं लाखों कम्बल फिर भी ठिठुरते हैं लोग, जानें पूरा खेल

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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