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नहीं रहे प्रसिद्ध सूफी संत: फिल्मों से कनेक्शन, इसलिए छोड़ दी थी इंडस्ट्री

जनपद में शिक्षा के साथ साथ व्यवसायिक शिक्षा की जो अलख जगाई है वह जनपद वासियों के लिए किसी अमूल्य निधि से कम नहीं है। यहां सभी धर्म सम्प्रदाय से ताल्लुक रखने वाले हजारों छात्र दीनी तालीम के साथ तकनीकी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 18 Sep 2020 3:56 PM GMT
नहीं रहे प्रसिद्ध सूफी संत: फिल्मों से कनेक्शन, इसलिए छोड़ दी थी इंडस्ट्री
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प्रदेश में मशहूर 86 वर्षीय सूफी संत हजरत महबूब मीनाशाह बाबा ने शुक्रवार दोपहर इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

गोंडा: भारत में सूफ़ी परम्परा का इतिहास बहुत पुराना है। जनमानस में इन सूफ़ियों के प्रति श्रद्धा आज भी देखने को मिलती है। उनके दर पर समाज के सभी वर्गों के लोग इकट्ठा होकर दुआएं और मिन्नतें मांगते हैं। सूफ़ियों की साधना की यह तहज़ीब हिंदू-मुस्लिम एकता का माहौल तैयार करने में मदद करती है। इसी परम्परा के संवाहक और देश, प्रदेश में मशहूर 86 वर्षीय सूफी संत हजरत महबूब मीनाशाह बाबा ने शुक्रवार दोपहर इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वह एक ऐसे निर्विवाद सूफी संत रहे, जिन्होंने आध्यात्म, मानव सेवा के लिए तालुकेदारी और फिल्मी दुनिया की चकाचौंध भरी जिंदगी छोड़ दी थी।

बाबा मीनाशाह ने आध्यात्म के साथ ही तालीम को भी उंचाइयों तक पहुंचाया और आध्यात्मिक परिसर में ही आलीशान शैक्षिक संस्थान स्थापित किया। उन्होंने जनपद में शिक्षा के साथ साथ व्यवसायिक शिक्षा की जो अलख जगाई है वह जनपद वासियों के लिए किसी अमूल्य निधि से कम नहीं है। यहां सभी धर्म सम्प्रदाय से ताल्लुक रखने वाले हजारों छात्र दीनी तालीम के साथ तकनीकी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

स्वतंत्रता आन्दोलन में काटा जेल

सूफी संत हजरत महबूब मीनाशाह का जन्म 03 जुलाई 1934 को लखनऊ के यहियागंज में हुआ था। इनके बचपन का नाम अजीज हसन था। इनके पिता मौलवी जियाउद्दीन जाने माने तालुकेदार थे। अजीज हसन की प्राथमिक शिक्षा लख्ननऊ के हुसैनाबाद इण्टर कालेज, इण्टरमीडिएट कराची के एचआइएमएस बहादुर कालेज और उच्च शिक्षा मुस्लिम युनिवर्सिटी में हुई। नेवी की नौकरी के दौरान वर्ष 1944 से 1946 तक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लेने के लिए भारत की ओर से सिंगापुर भेजा गया।

उन्होंने देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और अंग्रेजों के खिलाफ मुंबई में भारत छोड़ो आंदोलन में सहभागिता की। स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए अंग्रेज अधिकारियों के आदेशों की अवहेलना की, जिससे ब्रिटिश सेना ने 11 साथियों के साथ गिरफ्तार करके कराची की जेल में डाल दिया। कराची की जेल में उन्हें तीन माह तक कारावास भोगना पड़ा। इसके बाद उनका कोर्ट मार्शल भी किया गया। आजादी के बाद परिवार के लोगों ने उन्हें उन्नाव जनपद में न्योतनी तालुकेदारी के संचालन का जिम्मा सौंप दिया।

GONDA 1 फाइल फोटो

छोड़ दी तालुकेदारी और फिल्मी दुनिया

1952 में जमींदारी उन्मूलन हुआ तो अजीज हसन तालुकेदारी छोड़ मुंबई चले गए। उन्होंने मुंबई के बालीबुड में हाथ आजमाया और एक्टिंग के साथ अशोक प्राइवेट लिमिटेड एवं महबूब स्टूडियो के प्रोडक्शन मैनेजर और सहायक निर्देशक का दायित्व भी निभाया। लेकिन करीब 15 वर्षों तक चला फिल्मी दुनिया का यह सफर भी उन्हें आकर्षित नहीं कर सका। सांसारिक सुख और भौतिकवाद से ऊबकर आध्यात्म की ओर उनका रुझान बढ़ा और वह सच्चे गुरु की खोज में निकल पड़े।

वर्ष 1967 में घूमते-घूमते एक दिन उनकी मुलाकात गोंडा के ख्यातिलब्ध आध्यात्मिक गुरु सूफी संत हजरत इकराम मीना शाह से हुई और उनके शिक्षाओं और मानवता की सेवा सेे प्रभावित होकर यहीं रह गए। उनकी शिक्षाओं और मानव सेवा की प्रेरणा ने का प्रभाव रहा कि वे अपना सब कुछ त्याग कर अध्यात्म में लीन हो गए। उनके श्रद्धा, सेवा और सर्मपण से प्रभावित होकर गुरु इकराम मीनाशाह ने ही इन्हें महबूब मीनाशाह नाम दिया। तब से वे लगातार बिना किसी भेदभाव के मानव सेवा में जुटे रहे हैं।

इसी का परिणाम है कि आज बाबा के लाखों मुस्लिमों के साथ हजारों में हिन्दू धर्म को मानने वाले भी मुरीद हैं। जिला मुख्यालय पर स्थित मीनाइया दरबार में देवी पाटन मंडल ही नहीं देश व प्रदेश के अनेक स्थानों से लाखों की संख्या में जायरीन आते हैं।

आध्यात्म के साथ तालीम दे रहा मीनाइया दरबार

कई दशक पहले देवीपाटन मण्डल मुख्यालय के सरकुलर रोड पर कर्बला और फातिमा कालेज के बीच बियाबान जंगलों के बीच दुर्गम स्थान को अपना ठिकाना बनाकर सूफी संत हजरत इकराम मीनाशाह ने आध्यात्मिक साधना और मानव सेवा शुरु की थी। वे बिना किसी धार्मिक भेदभाव के लोगों के बीच आध्यात्म की शिक्षा प्रदान कर उन्हें मुरीद बना लेते थे। इस सूफ़ी संत के आस्ताने आलिया मीनाइया में मुसलमानों के साथ हिंदू भी बड़ी श्रद्धा के साथ आया करते थे और यह सिलसिला आज भी जारी है। सूफी परम्परा के संवाहक के रूप में हजरत महबूब मीनाशाह बाबा ने अपने जीवनकाल में समाज के सभी वर्गों को लेकर देवीपाटन मण्डल में गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल कायम की।

बाबा मीनाशाह के प्रति बड़े-बड़े राजनेताओं के साथ-साथ लाखों लोगों की विशेष आस्था चली आ रही है। कहने को तो इस आध्यात्मिक संस्था के पास करोड़ों की संपत्ति है। इसके सर्वेसर्वा भी सूफी संत हजरत महबूब मीनाशाह ही थे किन्तु वे संस्थान का एक पैसा भी अपने ऊपर नहीं खर्च करते थे। जो भी आय होती है उसे शिक्षा के क्षेत्र में ही खर्च किया जाता है। इसी का नतीजा है कि एमएसआइटी में उच्च स्तर की वह सब सुविधाएं हैं जो किसी अच्छे संस्थान में होनी चाहिए।

GONDA 4 फाइल फोटो

सौहार्द के लिए किया शांति मार्च

आध्यात्म और मानव सेवा के लिए तालुकेदारी, फिल्मी दुनिया व तमाम सांसारिक सुखों को तिलांजलि देने वाले निर्विवाद सूफी संत व जिले की अजीम शखि़्सयत मीना शाह बाबा के मुरीदों में मुस्लिमों के साथ हिन्दुओं की अच्छी खासी तादाद है। वे साम्प्रदायिक सौहार्द को लेकर सदैव चिंतित रहते थे। 90 के दशक में जब कर्नलगंज कस्बे में दंगा हुआ तो वे सड़क पर उतरे। कच्चे बाबा आश्रम के संत निक्कू बाबा और ईसाई मिशनरी के फादर को साथ लेकर उन्होंने गोंडा नगर में शांति मार्च किया था।

इसके बाद बसपा शासनकाल में अयोध्या में राम जन्म भूमि मामले में उच्च न्यायालय के निर्णय को लेकर उपजे तनाव को दूर करने के लिए एक बार फिर वे सड़क पर उतरे थे और कच्चे बाबा आश्रम के संत निक्कू बाबा और ईसाई मिशनरी के फादर को साथ लेकर उन्होंने गोंडा नगर में शांति मार्च किया। उन्होंने कौमी एकता, आध्यात्म व शिक्षा के क्षेत्र में काफी कार्य किया। आलीशान कम्प्यूटर संस्थान स्थापित किया है, जहां सभी धर्म सम्प्रदाय से ताल्लुक रखने वाले बच्चो को तकनीकी शिक्षा दी जा रही हैं।

22 साल पूर्व की एमएसआइटी की स्थापना

गुरु के मिशन को आगे बढ़ाते हुये उनके परम शिष्य हजरत महबूब मीनाशाह ने एक ओर जहां मानव सेवा को जारी रखा वहीं दीनी शिक्षा के लिए मदरसे की शुरुआत की। उन्होंने गोंडा को विकसित शहर बनाने और जनपद वासियों के बच्चों को तकनीकी शिक्षा से लाभान्वित करने हेतु उन्होंने जनवरी 1998 में मीनाशाह इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालोजी डिग्री कालेज (एमएसआईटी) नामक संस्था की स्थापना की। एमएसआईटीएम कालेज ने अपने गौरवशाली 22 वर्षो में जनपद, देवीपाटन मण्डल ही नहीं देश व प्रदेश में नाम रोशन किया है। यहां से शिक्षित, प्रशिक्षित छात्र-छात्राएं पूरे देश में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं और सरकारी, अर्द्धसरकारी एवं निजी कम्पनी में अच्छे पदों पर कार्यरत हैं।

GONDA 3 फाइल फोटो

शोक संवेदनाओं का सिलसिला जारी

वृद्धावस्था और खराब स्वास्थ्य के कारण शुक्रवार को सबके चहते सूफी परम्परा के संवाहक के रूप में हजरत महबूब मीनाशाह बाबा का देहावसान हो गया। उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए दरबारे मीनाईया आलिया में रखा गया है, जिसे शनिवार दोपहर 2ः00 बजे सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा। उनके निधन से पूरे क्षेत्र में शोक छा गया है। इसकी खबर मिलते ही गोंडा जिला समेत अनके जिलों के राजनेता, धर्मगुरु, प्रशासनिक अफसर और हजारों की संख्या में बाबा के चाहने वाले भी आस्ताने आलिया मीनाइया पहुंचे हैं।

हजरत महबूब मीनाशाह के देहावसान पर गोंडा के भाजपा सांसद कीर्तिवर्धन सिंह, कैसरगंज के सांसद बृजभूषण शरण सिंह, सदर विधायक प्रतीक भूषण सिंह, पूर्व मंत्री विनोद कुमार सहित तमाम राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, समाजसेवियों, शिक्षाविदों, अधिकारियों, बुद्धिजीवियों ने शोक प्रकट करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की है।

रिपोर्टर तेज प्रताप सिंह

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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