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Fatehpur: दिव्यांग बच्चों के जीवन का 'फसाना' लिख रहीं 'अफसाना'
Fatehpur: महिलाएं शिक्षित नहीं होती है उनकी संतानें भी शिक्षा के महत्व को नहीं समझ पाती और वह अशिक्षा का क्रम चलता रहता है।
Pic - Social Media
Fatehpur: दिव्यांगता को लोग अभिशाप समझ जीवन में हार मान लेते हैं, लेकिन कई ऐसे भी उदाहरण समाज में हैं जिनके जज्बे के आगे दिव्यांगता भी बौनी साबित हो गई। ऐरांया ब्लाक के पौली की रहने वाली 39 वर्षीय अफसाना आज समाज के लिए मिशाल बन गई है। बालिका शिक्षा के लिए काम कर रही हाईस्कूल पास अफसाना ने अपनी प्ररेणा से स्कूल न जाने का मन बना चुकी करीब चार सौ बालिकाओं को स्कूल में दाखिला करवा चुकी हैं।
ऐरांया ब्लाक के मोहम्मदपुर गौंती में जाकिर अली के घर जन्मी अफसाना जब एक वर्ष की थीं तभी उन्हें लकवाग्रस्त हो गईं। परिजनों ने कई डाक्टरों को दिखाया लेकिन सुधार नहीं हुआ। बाएं हाथ और दाएं पैर ने कार्य करना बंद कर दिया था। बड़ा परिवार होने की वजह से घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी। पिता जाकिर अकेले ही कमाने वाले थे। अफसाना बहनों और पांच भाई के साथ पली थीं। लेकिन बचपन से अफसाना की ललक शिक्षा की तरफ थी लेकिन घर के हालात ऐसे नहीं थे कि वह हाईस्कूल के बाद भी पढ़ाई जारी रखें सकें। पिता ने पौली के मोहम्मद अनीश के साथ शादी कर दी। शादी के बाद अफसाना को आगे की पढ़ाई न कर पाने का मलाल हमेशा सालता रहा। अफसाना ने गांव के बच्चों खासकर बालिकाओें को स्कूल के लिए प्रेरित करना शुरु कर दिया। घर पर बालिकाओं को बुलाकर पढ़ाने लगीं। पति मजदूरी करते हैं। अफसाना के चार बेटे और तीन बेटियां हैं। सभी की पढ़ाई जारी है।
अफसाना कहती हैं दिव्यांगता मेरे कार्य में कभी-भी बाधा नहीं बनी। अशिक्षा से जीवन में अंधेरा ही रहता है। खासकर बालिका का शिक्षित का होना बहुत जरुरी है। उसके शिक्षित होने से आगे की आगे की पीढ़ियां शिक्षित होती चली जाती हैं। जो महिलाएं शिक्षित नहीं होती है उनकी संतानें भी शिक्षा के महत्व को नहीं समझ पाती और वह अशिक्षा का क्रम चलता रहता है।
संस्था के साथ मिलकर कर रही काम
बीहड़ इलाकों में लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने के लिए कार्य करने वाली संस्था एजुकेट गर्ल्स के घर-घर संपर्क के दौरान उन्हें चार साल पहले संस्था के बारे में जानकारी मिली। तब से संस्था के साथ जुड़ गईं और मिलकर बालिका शिक्षा की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं। एक पैर खराब होने के बावजूद पैरों के सहारे चलकर वह लोगों के घरों में पहुंचती हैं और अभिभावकों को बालिका शिक्षा के लिए प्रेरित करती हैं।