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लोकसभा चुनाव 2019- फिरोजाबाद में चाचा-भतीजे में होगी रोचक जंग

raghvendra
Published on: 15 March 2019 7:55 AM GMT
लोकसभा चुनाव 2019- फिरोजाबाद में चाचा-भतीजे में होगी रोचक जंग
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धनंजय सिंह

लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2019 का बिगुल बज चुका है। ऐसे में फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गयी हैं। इसका कारण यह है कि इस संसदीय सीट पर इस बार सैफई परिवार के दो बड़े दिग्गज चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। प्रगतिवादी समाजवादी पार्टी के मुखिया शिवपाल यादव पहले ही इस सीट से चुनाव लडऩे का ऐलान कर चुके हैं, वहीं समाजवार्टी पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव प्रो.रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर चाचा-भतीजे के चुनावी मैदान में उतरने से काफी दिलचस्प मुकाबले की उम्मीद है। अभी भाजपा और कांग्रेस ने इस सीट पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। जीत का ताज किसके सिर पर बंधेगा यह तो मतदाता तय करेंगे, लेकिन इतना जरूर है कि हर किसी की नजर चाचा-भतीजे की इस सियासी जंग पर टिकी है।

बदलता रहा है जनता का मिजाज

फिरोजाबाद लोकसभा सीट का इतिहास रहा है कि यह सीट किसी एक पार्टी की होकर नहीं रही है। यहां की जनता का मिजाज लगातार बदलता रहा है। साल 1957 में पहली बार इस सीट पर आम चुनाव हुए, जिसमें निर्दलीय नेता ब्रजराज सिंह ने जीत हासिल की। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चौधरी रघुबीर सिंह को हराया। इस तरह ब्रजराज सिंह फिरोजाबाद के पहले सांसद बने। 1962 में भी ब्रजराज सिंह ही सांसद बने। साल 1967 के चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के शिवचरण लाल यहां से सांसद बने। 1971 में कांग्रेस ने पहली बार अपना खाता यहां खोला और कांग्रेस नेता छत्रपति अम्बेश यहां के सांसद चुने गए। 1977 में लोकदल से रामजी लाल सुमन चुने गए।

1980 में निर्दलीय राजेश कुमार सिंह रामजी लाल सुमन को हराकर सांसद बने। 1984 में इस सीट पर कांग्रेस के गंगाराम सांसद बने। 1989 में दुबारा रामजी लाल सुमन जनता दल के टिकट पर जीते। 1991 में भारतीय जनता पार्टी ने इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित किया और प्रभु दयाल कठेरिया फिरोजाबाद के सांसद बने। कठेरिया ने इस लोकसभा सीट पर लगातार 3 लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की और 7 सालों तक यहां से सांसद रहे। 1999 और 2004 में राम जी लाल सुमन समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े और फिरोजाबाद के सांसद बने।

अखिलेश भी जीत चुके हैं चुनाव

2009 में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यहां से लोकसभा चुनाव में जीते और उसी वर्ष उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 2009 के उपचुनाव में कांग्रेस नेता और अभिनेता राजबब्बर ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव को हराकर यहां पर जीत हासिल की। 2014 में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव ने यहां से बड़ी जीत हासिल की। अक्षय यादव 534583 वोट पाकर विजयी हुए, जबकि भाजपा के प्रो.एस.पी.सिंह बघेल 420524 वोट पाकर दूसरे तथा बसपा के ठाकुर विश्वदीप सिंह 118909 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस के अतुल चतुर्वेदी को मात्र 7447 वोटों पर संतोष करना पड़ा।

मुस्लिम, जाट और यादव निर्णायक भूमिका में

2019 के लोकसभा चुनाव में चाचा-भतीजे के वर्चस्व वाली इस फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर सबकी निगाहें टिकी हैं। सपा-बसपा गठबंधन और शिवपाल यादव के चुनाव लडऩे से 2019 का मुकाबला यहां और दिलचस्प हो गया है। जातिगत आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो फिरोजाबाद क्षेत्र में करीब 15 फीसदी से अधिक मुस्लिम जनसंख्या है, जो यहां पर निर्णायक स्थिति में हैं।

लोकसभा चुनाव में इस सीट पर मुस्लिम, जाट और यादव वोटरों का समीकरण बड़ी भूमिका निभा सकता है। इस बार इस क्षेत्र से शिवपाल यादव चुनाव मैदान में है और यदि कांग्रेस ने भी अपना प्रत्याशी उतारा तो यादव और मुस्लिम वोट बिखर सकते हैं जिससे दोनों तरफ से सपा को नुकसान हो सकता है। ऐसे में अपने ही गढ़ में फिरोजाबाद के सपा सांसद अक्षय यादव की राह चुनौती पूर्ण हो सकती है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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