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फूलों की खेती से कामयाबी की उड़ान, जीत चुके हैं कई पुरस्कार

raghvendra
Published on: 8 Dec 2018 12:37 PM IST
फूलों की खेती से कामयाबी की उड़ान, जीत चुके हैं कई पुरस्कार
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रजत राय

लखनऊ: 48 साल के मोइनुद्दीन ने 2001 में अपने मां-बाप के कहने पर लखनऊ विश्वद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की मगर वे कभी भी वकील नहीं बनना चाहते थे। उन्हें बचपन से फूलों से लगाव था। किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले मोइनुद्दीन के घर में कभी कोई बाहर नहीं निकला। घर वालों के लाख चाहने पर भी उन्होंने वकालत का पेशा नहीं अपनाया और वापस गांव लौट आए। बहुत कोशिश के बाद उन्हें परिवार को फूलों की खेती के लिए मनाने में कामयाबी मिली। फिर मोइनुद्दीन ने इस क्षेत्र में इतनी जबर्दस्त कामयाबी हासिल की कि आज उन पर परिवार ही नहीं बल्कि पूरा गांव नाज करता है।

मोइनुद्दीन बताते हैं कि मुझे बचपन से फूलों से बड़ा लगाव था और मैं अपने घर के छोटे से बगीचे में किस्म-किस्म के फूल लगता रहता था। मेरे दादा, पापा और चाचा हमेशा से चाहते थे कि मैं गांव से बाहर निकलूं और पढ़लिख कर एक बड़ा वकील बनूं। सबके कहने पर मैंने वकालत की पढ़ाई की, लेकिन अपनी चाहत के चलते मैं वापस गांव आ गया और कुछ ऐसा करने की सोची जिससे मेरे घर वालों को मुझ पर नाज हो। मोइनुद्दीन कहते हैं कि मेरे घर वालों ने लाख कोशिश की मुझे वापस लखनऊ भेजने की मगर मैंने उनसे ये कहकर थोड़ा समय ले लिया कि अगर मैंने दो साल में कुछ नया नहीं किया तो मैं लखनऊ चला जाऊंगा और वकालत करने लगूंगा।

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मोइनुद्दीन बाराबंकी के दफेदार पुरवा गांव के रहने वाले हैं और काफी रिसर्च करने के बाद उन्होंने फूलों की खेती करने का फैसला किया। शुरुआत में उन्होंने 2003 में तीन एकड़ जमीन पर ग्लेडीयोलस की खेती की और पहले साल उनका शुद्ध मुनाफा 1.5 लाख रहा। मोइनुद्दीन के मुताबिक इसके बाद मेरे घर वालों को लगा कि मैं इस काम में अच्छा मुनाफा कमा सकता हूं तो उन्होंने मुझे और जमीनों पर फूल उगाने की इजाजत दे दी। 2009 तक मेरे पास अपनी और अपने रिश्तेदारों की मिलाकर मेरे पास 15 एकड़ जमीन थी और मैंने बड़े पैमाने पर फूलों की खेती शुरू कर दी।

पहली बार शुरू की पाली हाउस तकनीक

मोइनुद्दीन का दावा है कि उसी साल मैंने प्रदेश में पहली बार पाली हाउस तकनीक की शुरुआत की। ये इजराइल की तकनीक है और इसका पता मुझे इंटरनेट पर सर्फिंग करते वक्त चला। मैंने इस पर गहन शोध किया और कुछ शुरुआती मुश्किलों के बाद मैंने इसे अपनाया। इस तकनीक को अपनाने के बाद मैंने ग्लेडीयोलस के साथ जुर्बरान जैसे विदेशी फूल और गेंदा, गुलाब जैसे स्वदेशी फूल उगाने शुरू किए। मोइनुद्दीन का कहना है कि शुरुआत में गांव वाले और किसान मेरा मजाक उड़ाते थे और कहते थे कि तू फूल उगा और मजार पर दुकान लगा। लेकिन आज ये आलम है कि आसपास के लगभग 25 बड़े किसान और 1500 छोटे किसान मेरे साथ जुड़े हैं और फूलों की खेती कर रहे हैं। धीरे-धीरे किसानों की समझ में आ गया है कि फूलों की खेती में दूसरी परंपरागत फसलों से ज्यादा मुनाफा होने के साथ ही मेहनत भी कम है।

दूर-दूर के शहरों तक भेजते हैं फूल

फूलों की मार्केटिंग के बारे में मोइनुद्दीन ने बताया कि शुरुआत में मुझे अपने फूलों को दूसरे शहरों और बाजारों में भेजने में दिक्कत हुई। मैंने अपनी फसल ट्रक और ट्रांसपोर्टरों के द्वारा भेजना शुरू मगर इसमें काफी दिक्कतें हुईं। फूल बड़ी मात्रा में खराब हो जाते थे। समय पर डिलीवरी नहीं होती थी मगर मैंने इसका भी समाधान निकाला और रेलवे के अधिकारियों से एक मीटिंग की। उन्हें मैंने एक प्रेजेंटेशन दिया और मेरे प्रयासों से खुश होकर उन्होंने मेरे फार्म से करीब 9 किलोमीटर दूर फतेहपुर रेलवे स्टेशन पर कुछ ट्रेनों का स्थायी हाल्ट बना दिया। इससे मुझे ज्यादा फायदा हुआ और मेरे फूल बिना खराब हुए अपने गंतव्य पर समय से पहुंचने लगे। पहले मैंने अपने फूल लखनऊ में बेचने शुरू किये और धीरे-धीरे अब मेरे फूल दिल्ली, मुंबई, गुजरात, कोलकता और अन्य मेट्रो शहरों में जाते हैं। हाल में ही मैंने कुछ खाड़ी देशों में भी फूल भेजना शुरू किया है और कुछ और देशों के व्यापारियों से भी बातचीत चल रही है। कुछ धार्मिक शहरों जैसे अयोध्या, देवा शरीफ, वाराणसी के थोक सप्लायर भी मेरे स्थायी ग्राहक हैं और उनके लिए मैं गुलाब, गेंदा और धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल होने वाले दूसरे देशी फूलों की खेती अलग से करता हूं।

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फूलों की खेती के अलावा अब मोइनुद्दीन फूलों की खेती के तरीकों पर कार्यशाला और ट्रेनिंग प्रोग्राम का भी आयोजन करते हैं।

किसानों के अलावा उन्होंने पिछले साल 100 बैंक अफसरों के लिए भी एक कार्यशाला का आयोजन किया था। अभी कुछ महीने पहले भी उन्होंने 100 अफसरों के एक बैच के लिए भी कार्यशाला का आयोजन किया था। मोइनुद्दीन को कई राजकीय और राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं। मोइनुद्दीन के मुताबिक 2013 में जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने मुझे सवश्रेष्ठ किसान का पुरस्कार दिया था। 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम मेरे फार्म पर आए थे और मुझे गुणवत्ता का सर्टिफिकेट दिया था। उन्होंने मुझे राष्ट्रपति भवन भी बुलाया और वहां अपने बगीचे के स्टाफ के लिए एक कार्यशाला का आयोजन करवाया।

अब किसानों को देते हैं प्रशिक्षण

मोइनुद्दीन का कहना है कि धीरे-धीरे अब फूलों की खेती का प्रचार दूसरे राज्यों में भी हो रहा है और अब मैं लगभग हर महीने किसी न किसी राज्य के किसानों को प्रशिक्षण देने जाता रहता हूं।

अपने फार्म पर मैंने एक छोटी सी प्रयोगशाला और डिस्प्ले सेंटर भी बनाया हुआ है और लगभग हर 10-15 दिन पर किसी स्कूल या किसी विभाग की टीम यहां प्रशिक्षण लेने आती रहती है। फूलों की खेती करने वाले दूसरे किसान भी इस काम में मदद करते हैं। मोइनुद्दीन के मुताबिक मेरे गांव के अलावा आसपास के लगभग 25 गांवों के किसान अब फूलों की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं और दूसरों को भी फूलों की खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

फूलों में आलू व धान से ज्यादा मुनाफा

मोइनुद्दीन का कहना है कि अगर आप एक एकड़ में ग्लेडीयोलस और जुर्बरान उगते हैं तो आपको हर साल शुद्ध मुनाफा 25 लाख होगा। वहीं दूसरी तरफ अगर आप इतनी ही जमीन में आलू या धान उगाते हैं तो आपका मुनाफा केवल 75 हजार प्रति वर्ष होगा। आज हालत यह है कि मैं अपनी 25 एकड़ जमीन पर फूलों की खेती करता हूं और इसके अलावा लगभग 100 एकड़ में दूसरे किसान फूलों की खेती करते हैं।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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