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आजादी के नायकों की सेवाः 60 सालों से कर रहे धर्मवीर आर्य
धर्मवीर आर्य का कहना है कि आज लोग अपने बच्चों से ये उम्मीद रखते हैं कि उनकी संतान संस्कारी होने के साथ-साथ एक बेहतर इंसान भी बने और वह राष्ट्र के प्रति समर्पित भी हो। लेकिन वे बच्चों को स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में, शहीदों के बारे में, उनके बलिदानों के बारे में या उनके त्याग के बारे में एक शब्द भी नहीं बताते हैं।
तेज प्रताप सिंह
गोंडा। अंग्रेजों की गुलामी से देश को आज़ादी दिलाने के लिए असंख्य लोगों ने प्राणों की आहुति दी और सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। लेकिन आज़ादी के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के क्या हालात हैं, यह किसी ने जानने की कोशिश नहीं की। उपेक्षा का आलम यह है कि किसी स्वतंत्रता सेनानी के जन्म दिवस या पुण्य तिथि पर होने वाले कार्यक्रमों के आयोजन में शामिल होने वाले लोगों को ऊंगली पर गिना जा सकता है।
इस समस्या के समाधान के लिए एक समाज सेवी धर्मवीर आर्य ने बीते 60 सालों से मुहिम चला रखी है, जो न केवल स्वतंत्रता सेनानियों के गुमनाम परिवारों को पहचान दिलाते हैं, बल्कि उन्हें सरकारी पेंशन, दवा इलाज का खर्च आदि आर्थिक सहायता दिलाने के साथ सम्मान दिलाने का प्रयास करते हैं।
अपनी गाढ़ी कमाई खर्च कर इस आन्दोलन के जरिये स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को गरिमामयी जीवन दिलाने की कोशिश में दिन रात जुटे समाज सेवी धर्मवीर आर्य की जिले में अलग पहचान बन गई है।
नौकरी के साथ करते रहे सेवा
नगर के शहर के राजेन्द्र नगर नौशहरा मोहल्ले में 04 जून 1950 को जन्मे धर्मवीर आर्य के पिता देवकली प्रसाद आर्य और मां कमला देवी कट्टर आर्य समाजी थे। उनके बाबा बिन्देश्वरी प्रसाद अयोध्या से यहां आए थे और नगर पालिका के मुलाजिम थे। वे साहित्यिक अभिरुचि के थे और कविताओं से देश प्रेम जगाने के साथ-साथ स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए भी काम करते थे। इसलिए घर में हमेशा देश की आजादी की बात चलती रहती थी।
छात्र जीवन से ही वह आर्य समाज से जुड़ गए। चार भाइयों और एक बहन में तीसरे नंबर पर रहे धर्मवीर आर्य ने राधाकुंड मोहल्ले के गांधी विद्या मंदिर इण्टर कालेज से इण्टरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी और साल 1970 में गोंडा नगर पालिका परिषद में नौकरी कर ली।
नौकरी के दौरान भी उनका देश प्रेम नहीं छूटा और वे अपना काम निपटाने के बाद सेनानी और उनके परिवारों की सेवा में निरंतर लगे रहते। उनके सेनानी प्रेम को देखते हुए पालिका प्रशासन द्वारा उन्हें नगर पालिका के अधीन संचालित राजा देवी बख्श सिंह पुस्तकालय का प्रभारी बना दिया गया।
साल 2010 में कार्यालय अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्ति के बाद अब वे अपना पूरा समय सेनानी और उनके वंशजों की सेवा और देश के महापुरुषों की जन्म जयंती और निर्वाण दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन कर लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं।
तीन पुत्र व दो पुत्रियों के पिता धर्मवीर आर्य के एक भाई सत्यवीर रेलवे बोर्ड के डिप्टी डायरेक्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। जबकि उनके दो छोटे भाई अभी भी रेलवे में अच्छे पदों पर कार्यरत हैं।
ऐसे हुई सेवा की शुरुआत
धर्मवीर आर्य बताते हैं कि पांचवीं तक जबरिया स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के बाद 10 साल की आयु में जब वह गांधी विद्या मंदिर इंटर कालेज में कक्षा छह पढ़ाई करते थे, तभी उनकी मुलाकात कालेज के सामने रह रहे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बाबू ईश्वर शरण से हुई। बाबू ईश्वर शरण भी आर्य समाज से जुड़े थे और उनके यहां तमाम स्वाधीनता सेनानियों का आना जाना रहता था।
धर्मवीर के अनुसार वे अपना ज्यादातर समय उन्हीं के घर पर बिताने लगे। वे यहां अने वाले स्वतंत्रता सेनानियों उनकी सेवा में लग गए। सेनानियों को वह चाय पानी लाकर पिलाते थे। वह सेनानियों की हर लड़ाई को लड़ने के लिए तत्पर रहने लगे।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कल्याण परिषद का गठन किया गया, जिसमें उन्हें कार्यालय मंत्री बनाया गया। यहां पर रहकर वह स्वतंत्रता सेनानियों के सम्पर्क में आ गए। धर्मवीर को राजा देवी बख्श सिंह पुस्तकालय का पुस्तकालयाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी गई।
धर्म, संस्कृति और परम्परा के रक्षक
दुबला पतला शरीर सिर पर गांधी टोपी और कंधे पर झोला लटकाए मात्र पांच फिट के धर्मवीर आर्य धरती की सांस्कृतिक विरासत के इतिहास को संजोने और उनके अस्तित्व के लिए हर वक्त संघर्ष करने वालों में सबसे आगे हैं।
अब तक उन्होंने करीब डेढ़ सौ लावारिश शवों का अंतिम संस्कार आर्य समाज पद्धति से किया है।
स्वतंत्रता दिवस हो अथवा कोई अन्य राष्ट्रीय पर्व, गांधी, सुभाष, चन्द्र शेखर, भगत सिंह की जयंती, पुण्य तिथि हो या फिर लाहिड़ी, शहीद पुलिस अफसर केपी सिह का बलिदान दिवस वे कार्यक्रम आयोजित कर श्रद्धांजलि देना नहीं भूलते।
कार्यक्रम के दौरान उनके भारत माता की जय के उदघोष से वहां का पूरा वातावरण देश प्रेम से सराबोर हो जाता है। यही कारण है कि देश के स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े सभी रणबांकुरों और महापुरुषों की जीवन गाथा से वह भलीभांति परिचित है।
संभाल रहे जिम्मेदारी, मिला सम्मान
सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में विख्यात धर्मवीर आर्य वर्तमान में अखिल भारतीय स्वतंत्रता स्रग्राम सेनानी आश्रित वारिस परिवार कमेटी के जिलाध्यक्ष हैं।
इसके साथ ही वे आर्य समाज गोंडा एवं बलरामपुर के उपाध्यक्ष, महाराजा देवी बख्श सिंह स्मृति कमेटी के जिला मंत्री, शहीद केपी सिंह विद्यालय के अध्यक्ष, अखिल भारतीय बौद्ध महासभा के संरक्षक, गोंडा विकास मंच, कायस्थ महा सभा के उपाध्यक्ष तथा गोंडा महोत्सव समिति के सदस्य, जिला उद्योग व्यापार मंडल और कौमी एकता कमेटी के सक्रिय सदस्य के रुप में समाज को अपनी सेवाएं दे रह हैं।
सेनानियों के सम्मान के लिए किए जा रहे संघर्ष और विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट समाज सेवा के लिए उन्हें सैकड़ों बार सम्मानित भी किया जा चुका है।
लड़ रहे सेनानियों के हक की लड़ाई
स्वतंत्रता आन्दोलन के शहीदों के सपने का भारत बनाने के लिए कृत संकल्पित धर्मवीर आजादी की लड़ाई लड़ने वाले राजा देवी बख्श सिंह, राजा अशरफ बख्श खां, फजल अली, अमीर अली के साथ ही राजेंद्र नाथ लाहिड़ी से जुड़े स्थलों व उनकी स्मृतियों को संजोने में जुटे हुए हैं। चाहे वह लाहिड़ी की समाधि स्थल के निर्माण की बात हो या फिर अन्य कोई आयोजन, वह हर वक्त सेनानियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं।
आज भी उनका हर कदम आजादी की जंग से जुड़े हर आंदोलन की यादों को ताजा करने में आगे रहता है। उनका मानना है कि आजादी की लड़ाई में समाज के सभी वर्गों ने मिलकर योगदान दिया, परंतु आजाद भारत के राजनेताओं ने इसमें बिखराव ला दिया है। इन्हें एक रास्ते पर लाकर ही हमारा सपना साकार हो सकता है।
दर्जनों परिवारों को दिलाया पेंशन
धर्मवीर आर्य बताते हैं कि अविभाजित गोंडा जनपद में 400 से अधिक स्वतंत्रता सेनानी थे। बलरामपुर जिला बनने के बाद गोंडा जिले इनकी संख्या आधाी हो गई, जिन्हें भारत सरकार और राज्य की ओर से सम्मान के रुप में पेंशन मिलती थी।
दूसरी बार मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह यादव की सरकार में उन्होंने प्रयास करके सभी जीवित सेनानियों को बीमारी की दशा में दवा इलाज का खर्च भी दिलाया।
इसके अलावा गोंडा जिले के खोंड़ारे के मझौवा तोग निवासी स्वतंत्रता सेनानी राजाराम वर्मा, गोंडा नगर के पटेल नगर के राम प्रसाद आर्य की पत्नी द्रौपदी देवी, कर्नलगंज क्षेत्र के मोहम्मदपुर निवासी और आजाद हिन्द फौज के जांबाज सिपाही मो. युनुस की पत्नी जिन्नत बेगम एवं कटरा बाजार के राजाराम वर्मा समेत एक दर्जन से अधिक सेनानी परिवारों को राजनैतिक पेंशन और सम्मान दिलाकर नया जीवन देने का प्रयास किया।
लगवाईं प्रतिमाएं, बनवाए स्मारक
विगत 60 सालों से धर्म, संस्कृति और परम्पराओं की रखा के साथ आजादी के रणबांकुरों और उनके वंशजों की तन मन व धन से सेवा कर रहे धर्मवीर आर्य ने बताया कि उनके प्रयास से महान स्वतंत्रता सेनानी महराजा देवी बख्श सिंह के प्रतिमा पर छतरी का निर्माण और ड्यौढ़ी स्थल महराजगंज में स्मारक स्थल पर उनकी प्रतिमा लगवाने तथा उनके जन्म स्थान जिगना कोट में स्मारक स्थल का निर्माण हुआ।
भारत के प्रथम बलिदानी सपूत फजल अली की जन्म भूमि मोतीगंज के ग्राम पेड़ारन स्थित मिरजापुरवा की खोज, इंटियाथोक के पास सेनाननियों के बैठक स्थल पर गांधी चबूतरा का निर्माण, गोंडा के गांधी पार्क का सुन्दरीकरण एवं प्रतिमा पर छतरी का निर्माण कराया।
जिला चिकित्सालय का नाम अमर सेनानी पूर्व विधायक बाबू ईश्वर शरण के नाम पर कराकर परिसर में उनकी प्रतिमा की स्थापना, अमर शहीद राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी के मूल समाधि स्थल बूचड़ घाट पर स्मारक का निर्माण तथा नगर के पीपल चौराहे पर उनकी प्रतिमा की स्थापना करायी।
नमक सत्याग्रही अमर शहीद बाबू द्वारिका सिंह के ग्राम खजुरी में उनकी प्रतिमा की स्थापना, अंग्रेजों द्वारा जिंदा जलाए गए राजा अशरफ बख्श के निर्माण स्थल की खोज कर नवाबगंज के होलापुर तालिब गांव में उनकी मजार का निर्माण और स्वतंत्रता सेनानी गया प्रसाद पाण्डेय की इच्छानुसार बभनजोतिया रेलवे स्टेशन स्थापना का कार्य सम्पन्न हो सका।
साहित्यकार, शहीद पुलिस अफसर को दिलाया सम्मान
समाजसेवी धर्मवीर आर्य ने प्रयास कर जहां शास्त्री महाविद्यालय परिसर और चौराहे पर देश के प्रधानमंत्री रहे स्व. लाल बहादुर शास्त्री, शहीदे आजम भगत सिंह इण्टर कालेज में अमर शहीद भगत सिंह और जिलाधिकारी आवास के सामने लोहिया पार्क में समाजवाद के पुरोधा डा. राम मनोहर लाहिया जैसे अमर सेनानियों की प्रतिमा स्थापित कराया।
वहीं हिन्दी साहित्य के धुरंधर विद्वान हास्य सम्राट स्व. जीपी श्रीवास्तव उर्फ गंगा बाबू के स्मृति में गोंडा-बहराइच रेल मार्ग पर गंगाधाम रेलवे स्टेशन की स्थापना, गोंडा जंक्शन पर उनका परिचय पटल लगवाने के साथ ही मण्डल रेल कार्यालय में पुस्तकालय बनवाया।
देश और दुनिया भर में प्रसिद्ध शायर जिगर मुरादाबादी के मजार एवं स्थल का जीर्णोंद्धार तथा कर्तव्य परायणता की बलिवेदी पर प्राण न्यौछावर करने वाले माधवपुर कांड में शहीद युवा पुलिस उपाधीक्षक केपी सिंह के नाम पर विद्यालय खोलवाने में भी धर्मवीर आर्य की महती भूमिका रही है।
सेनानी भवन बनाने का सपना
धर्मवीर के मन में देशभक्ति की भावना इस कदर प्रबल हुई कि उन्होंने अपने को परिवार से भी अलग कर लिया और वह खुद की कमाई के सारे पैसे स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिजनों के सम्मान में ही लगाते हैं। उनके इस त्याग से प्रभावित होकर कुछ समाजसेवी से भी उनके काम में हाथ बंटाते हैं।
उनका सपना है कि जिंदगी में शहीद सेनानियों के परिवारों के लिए देवी पाटन मंडल के मुख्यालय पर एक सेनानी भवन बनवाएं, जहां सभी शहीदों के फोटो और नाम सहित उनकी पहचान अंकित कर सकें। इनके इस नेक कार्य और विचारों ने उन्हें तमाम सम्मान भी दिलाया है।
30 साल से उठा रहे मांग
सेनानियों के सम्मान के लिए अपना जीवन समर्पित कर चुके धर्मवीर आर्य की मांग है कि आजादी के प्रथम संग्राम 1857 के में शहीदों के परिवार को सम्मान राशि और अन्य सेनानियों की भंति सुविधाएं प्रदान की जाएं। तुलसीपुर की रानी ईश्वरी देवी की भी प्रतिमा मंडल मुख्यालय पर स्थापित की जाए।
अंग्रेज कलेक्टर कर्नल व्वायलू का सिर काटने वाले फजल अली को सेनानी का दर्जा एवं राजा अशरफ बख्श जहां जिंदा जलाए गए थे वहां उनकी भव्य मजार बने। इसके अलावा राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी का बलिदान स्थल होने के कारण यहां काकोरी भवन बनाया जाए और गोंडा कचहरी स्टेशन का नाम राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी के नाम पर हो। इन मांगों को लेकर वे वर्ष 1990 से प्रयासरत हैं और राष्ट्रपति से लेकर प्रधान मंत्री तक को पत्र लिख चुके हैं।
शुरू में लोग उड़ाते थे मज़ाक
धर्मवीर आर्य बताते हैं कि जब नौकरी के वेतन से घर के खर्च के बाद मेरे पास जो पैसे बचे होते थे उससे मैं सेनानियों की सेवा करता था तब लोग मेरा मज़ाक उड़ाते थे। लेकिन मुझे इस बात से कभी फर्क नही पड़ा और मैंने कभी सेनानियों से मुंह नहीं मोड़ा।
अब तो मैं अपने पेंशन का पूरा पैसा इसी काम में खर्च कर सेनानियों, राज नेताओं और महापुरुषों की जयंती, पुण्यतिथि मनाता हूं। लोग क्या कहते हैं इस पर कभी ध्यान नही देता, पर मैं अपनी सेवा से संतुष्ट हूं। लोग मौज के दिन बिताते है तो मैं उस इन सेनानियों के वंशजों का दुःखदर्द जानने में व्यस्त रहता हूं।
उनका कहना है कि आज लोग अपने बच्चों से ये उम्मीद रखते हैं कि उनकी संतान संस्कारी होने के साथ-साथ एक बेहतर इंसान भी बने और वह राष्ट्र के प्रति समर्पित भी हो। लेकिन वे लोग अपने बच्चों को स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में, शहीदों के बारे में, उनके बलिदानों के बारे में या उनके त्याग के बारे में एक शब्द भी नहीं बताते हैं।
इसी कारण से अपना गौरवशाली अतीत भूल नई पीढ़ी भटकाव के रास्ते पर है। ऐसे में देश के महापुरुषों और आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले महान विभूतियों के कुर्बानियों और जीवन आदर्शों से नई पीढ़ी को अवगत कराना होगा।
समाज भी ले शहीदों के वंशजों की जिम्मेदारी
धर्मवीर कहते हैं कि जब देश को आज़ादी मिली थी तब भारत की आबादी लगभग करोड़ थी। जबकि आज 135 करोड़ से भी अधिक है। यह देश और समाज का दुर्भाग्य ही है कि हमारी इतनी बड़ी आबादी भी काफी कम संख्या के बावजूद क्रान्तिकारियों, शहीदों के वंशजों को प्रतिष्ठित, सम्मानित जीवन नहीं दे सकती है और इसके लिए भी हम सरकार की ओर ऊंगली उठाते हैं।
उन्होंने कहा कि अगर ऐसे प्रयास को भारत के 135 करोड़ लोगों में से एक लाख लोग ही अपने कमाई से उन्हें मदद करते रहें तो आज़ादी के कुर्बानी देने वाले शहीदों का परिवार भूखा नहीं सोयेगा।