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बुन्देलखण्ड के लिए लहू से कितने और खत
मयंक शर्मा
महोबा। वैसे तो बुन्देलखण्ड के लिए आंदोलन बरसों बरस से चल रहे हैं। राजा बुंदेला जैसे कई लोग इस विषय पर आगे आये और फिर थक हार कर अपनी दुनिया में वापस लौट गए। लेकिन एक बुन्देलखण्डी योद्धा 2014 में पत्रकारिता जैसे पेशे को छोड़कर छाड़कर बुन्देलखण्ड के प्रति समर्पित हो गया। बुन्देलखण्ड के महोबा जिले में जन्मे और पले बढ़े तारा पाटकर ने लखनऊ विश्विद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की और वहीं से पत्रकारिता का अध्ययन भी किया। देश कई प्रमुख पब्लिकेशंस के लिए बरसों बरस उन्होंने काम भी किया, लेकिन बुन्देलखण्ड की सरकारों द्वारा अवहेलना उन्हें रास नहीं आई और एक दिन वे सब कुछ त्याग कर बुन्देलखण्ड की सेवा के लिए लौट गए।
तारा पाटकर
बुन्देलखण्ड के लिए तारा पाटकर का संघर्ष
तब से वे लगातार बुंदेलखण्ड की समस्यायों के लिए लड़ रहे हैं और महोबा से अपने अभियान को आगे बढ़ाने में जुटे हैं। इस दौरान तारा पाटकर से राहुल गाँधी, अखिलेश यादव, दिनेश शर्मा जैसे बहुत से राजनेता मिले भी, उन्हें आश्वासन भी मिले। लेकिन फिर भी तस्वीर को कुछ अधिक बदल न सकी। तारा पाटकर इस सब के बावजूद न कभी थके और न कभी रुके। वे अपने स्तर पर जो कुछ भी कर सकते हैं करते रहे। उन्होंने महोबा से ही रोटी बैंक की शुरुआत की, जिसकी संकल्पना बाद में देश भर में फ़ैल गई। स्वच्छ भारत से सम्बंधित कई अभियान भी उन्होंने बुन्देलखण्ड में चलाये। और सबसे महत्वपूर्ण सत्याग्रह जो उनका रहा वह क्षेत्र में एम्स जैसे एक अस्पताल की एक मांग रही है। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यहाँ से लाखों खत लिखवाये, राखियाँ भिजवाईं और भी बहुत कुछ किया, जो कि वो कर सकते। केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग की एक टीम भी पिछले दिनों महोबा आई थी, लेकिन दो महीने होने को आये अभी तक कोई जवाब केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग की ओर से नहीं आया है। पिछले कई वर्षों में बहुत से राज्यों एवं शहरों में नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा एम्स की घोषणायें भी की गईं और बहुतों पर काम भी चल रहा है। लेकिन बुन्देलखण्ड की सुध नहीं ली गई।
तारा पाटकर की पुकार पर क्षेत्र की लाखों बच्चियाँ हर बरस प्रधानमंत्री मोदी को राखी भेज रही हैं
तारा पाटकर से Newstrack की बातचीत
तारा पाटकर Newstrack से बात करते हुए बताते हैं, कि आज भी बुन्देलखण्ड क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ ही रह गया है। स्वास्थ्य सेवाएं यहाँ बदहाल हैं। सड़कों का यहाँ बुरा हाल है। कोई बहुत बीमार हो जाये तो या तो कानपूर भागे या फिर दूसरी तरफ से करीब झाँसी जाए। जिला अस्पतालों का क्षेत्र में बुरा हाल है, कई जिलों में तो बच्चों की डिलीवरी तक के लिए महिला स्टाफ उपलब्ध नहीं है। इन सभी समस्यायों के लिए मैं 2014 से लगातार संघर्षरत हूँ, पिछले 600 दिनों से मैं यहाँ महोबा में अनशन पर बैठा हुआ हूँ। आलम यह है कि महोबा का यह स्थल अब अनशन स्थल के ही रूप में जाना जाने लगा है। मैंने कितनी ही बार प्रधानमंत्री, मुख्य्मंत्री, सचिवों को अपने खून तक से खत लिखकर भेजे हैं। लेकिन आज तक कुछ आश्वासनों के सिवाय हमें कुछ मिला नहीं है।
अनशन स्थल, महोबा पर तारा पाटकर की प्रेस कॉन्फ्रेंस
उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव, राजेंद्र कुमार तिवारी को खून से लिखा खत
आज भी तारा पाटकर ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव, राजेंद्र कुमार तिवारी को बुंदेलखण्ड की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर अपने खून से एक खत लिखकर भेजा है। वो कहते हैं कि देखते हैं कि क्या जवाब आता है। राजेंद्र कुमार तिवारी जी खुद भी महोबा क्षेत्र के ही हैं, तो कम से कम उन्हें तो क्षेत्र की बदहाली की असलियत का भी ज्ञान है। मैं चाहता हूँ कि इस क्षेत्र के ही वाशिंदे होने के नाते कम से कम वे इस सन्दर्भ में कुछ करेंगे। मैं गृह मंत्री अमित शाह जी के सचिव राकेश मिश्र को भी लिखने की सोच रहा हूँ, वे भी इसी क्षेत्र से सम्बंधित हैं और मुझे उम्मीद है कि ये लोग कम से कम अपने क्षेत्र के विषय में कुछ न कुछ तो अवश्य सोचेंगे।
अनशन स्थल पर तारा पाटकर
स्वास्थ्य सेवाओं की है प्रमुख माँग
बरसों बरस से चल रहे इस आंदोलन और मिले मात्र आश्वासनों के बावजूद तारा पाटकर आज भी पूर्णतया सकारत्मक रहते हैं। वो चुप चाप अपने रास्ते पर चलते जा रहे हैं और कभी किसी राजनेता या अधिकारी के प्रति कोई गिला शिकवा भी नहीं करते हैं। उनका सिर्फ इतना ही कहना है कि मैं बुन्देलखण्ड की माटी के लिए अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ। कभी न कभी तो सरकार सुनेगी ही। ऐसा भी नहीं कि तारा पाटकर हर एक काम के लिए सरकार या संस्थाओं की राह ही जोहते रहते हैं, स्थानीय स्तर पर लोगों को इकठ्ठा कर छोटे मोठे फण्ड्स एकत्रित कर उन्होंने बहुत सारे कार्य कर डाले हैं।
लखनऊ, गाँधी प्रतिमा पर तारा पाटकर
महोबा में गोरखगिरि पर्वत पर स्थित सिद्ध बाबा का मंदिर का उन्होंने लोगों के श्रमदान के साथ लगभग जीर्णोद्धार सा कर दिया है। वहाँ के तालाब को ठीक ठाक करवाया। इस स्थान को उन्होंने अब महोबा के एक प्रमुख पर्यटन स्थल में परिवर्तित कर दिया है। महोबा शहीद स्थल पर वे हर बरस स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस पर ध्वजारोहण करवाते आ रहे हैं। वे महोबा एवं बुन्देलखण्ड क्षेत्र के वंचितों के लिए हर संभव मदद करने को तत्पर रहते हैं। बुन्देलखण्ड राज्य के लिए वे हर संभव प्रयास कर रहे हैं। अहिंसा, सत्याग्रह और सामाजिक पुनरुत्थान के लिए कार्य करने वालों की मिसालें जब इस देश में दी जायेंगी, तो तारा पाटकर का नाम लिए बिना शायद वो मिसालें भी अधूरी होंगीं।
सरकार चाहे वो केंद्र की हो या राज्य की हों, उन्हें भी उनकी सुननी अवश्य चाहिए, क्योंकि शिद्दत से संघर्ष कर रहा यह बन्दा आपसे बहुत कुछ नहीं बस क्षेत्र का उचित विकास और मूलभूत सुविधायें ही माँग रहा है, जो कि बुन्देलखण्ड वासियों का हक़ है।