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Mukhtar Ansari Death: ‘मुझे इस्तीफा के लिए किया मजबूर’, मुलायम चाहते थे...मुख्तार की मौत पर छलका पूर्व अधिकारी का दर्द

Mukhtar Ansari Death: पूर्व अधिकारी ने कहा कि बीते 17 वर्षों तक मुझे सुनियोजित तरीके प्रताड़ित किया गया। साल 2017 में योगी सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री योगी जी ने हमारी सुध ही और हमारे खिलाफ सभी वापस ले लिए गए।

Viren Singh
Published on: 29 March 2024 12:06 PM IST
Mukhtar Ansari Death
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Mukhtar Ansari Death (सोशल मीडिया) 

Mukhtar Ansari Death: खूंखार माफिया एवं पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की 90 के दशक में पूर्वांचल सहित यूपी में दहशत का आलम यह था कि हवाएं अपना रुख मोड़ लिया करती थीं। उस समय जो भी उसके खिलाफ खड़ा हुआ वह या तो गायब हो गया या फिर मौत के घाट उतार दिया गया। सत्ता के साये में मुख्तार अंसारी ने अपराध की दुनिया में ऐसे ऐसे नए आयाम गढ़े, जिसने उसकी परिवार की छवि को धूमिल कर दिया। जिस अंसारी परिवार की अपने पूर्वजों के द्वारा देश के लिए किए गए कार्यों की वजह से क्या पूर्वांचल क्या उत्तर प्रदेश पूरे भारत में सामान के साथ चर्चा की जाती थी, उसको बर्बाद करने में मुख्तार ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। मुख्तार अंसारी भले ही इस दुनिया में अब नहीं हो, लेकिन अपराध, फिरौती, रंगदारी, हत्या के किस्सों की चर्चाएं उसके जिंदा होने पर भी होती थीं और उसके मौत के बाद भी हो रही हैं।

AK-47 की ऐसी कहानी जिसकी चपेट में आया अधिकारी

ऐसी ही एक कहानी है कि AK-47 गन से जुड़ी, जिसमें एक पूर्व अधिकारी को सत्ता और मुख्तार के गुर्गों द्वारा ऐसा प्रताड़ित किया गया कि उनसे अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी और मौत के डर के कई वर्षों तक छिपकर रहना पड़ा। वह आज भी उस दिन को याद करते हैं उनकी आंखे भर जाती हैं। इस कहानी की कड़ी कृष्णानंद राय की हत्या से जुड़ी थी।

दरअसल, कृष्णानंद राय ने मुख्तार अंसारी को सियासी मैदान में ऐसी पटखनी दी कि उसके चूहले तक हिल गए थे। गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधासभा सीट अंसारी बंधुओं की अभेद्य किला रही। कई वर्षों से यह विस सीट मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी के पास रही है, लेकिन साल 2002 के चुनाव में इस अभेद्य किले में भाजपा के कृष्णानंद राय ने छेद कर दिया और यह सीट अंसारी बंधु से छीनकर अपने पास कर ली। यही बात मुख्तार अंसारी की नागावर गुजरी और उनसे कृष्णानंद राय की हत्या की ऐसी पटकथा लिखी, जिससे पूरा प्रदेश हिला ही, साथ ही एक आईपीएस अधिकारी भी इसकी चपेट में आ गया। भारतीय सेना का भी नाम अंसारी से जुड़ा।

हत्या के लिए खरीदी AK 47

मोहम्मदाबाद विधासभा सीट से 1985 से लेकर 1996 तक पांच बार अफजाल अंसारी विधायक बने आए। लेकिन साल 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में यह सीट कृष्णानंद राय ने जीत ली और वह यहां से भाजपा के विधायक कहलाने लगे। राय अपनी विधायकी के दो साल भी पूरे नहीं कर पाए थे कि उनके मौत के घाट उतार दिया गया। उनकी मौत ऐसी की गई कि जब यह घटना सामने आई तो यूपी की सत्ता में बैठीं मायावती से लेकर पूरा देश हिला गया। दरअसल, कृष्णानंद राय की हत्या के लिए AK 47 राइफल का इस्तेमाल किया गया, यह राइफल उस समय से भारतीय सेना की अहम हिस्सा थी और इसको मुख्तार अंसारी ने सेना के भगोड़े सिपाही से उस समय 1 करोड़ रुपये में खरीदा था।

चलाई गईं 500 गोलियां

इसी AK 47 राइफल से मुख्तार के गुर्गों ने कृष्णानंद राय पर उस समय हमला किया, जब क्षेत्र में एक क्रिकेट टुर्नामेंट का उद्धाटन कर लौट रहे थे। राय के साथ काफिला था। उसको अंसारी के गुर्गों ने ऐसी जगह घेरा जहां से कभी मुडने का रास्त नहीं था। अंसारी के शूटर्स ने कृष्णानंद राय की कार को घेरकर AK 47 से 500 से अधिक गोलियां चलाई थीं। इसमें राय समेत 6 लोगों की मौत हुई थी। हालांकि जब इसी घटना की अंजाम दिया, उस समय मुख्तार अंसारी जेल था, फिर इसको इस घटना में नामाजद किया गया। मुख्तार के पास AK 47 राइफल का जांच का मामला उस समय पूर्व डीएसपी और समय वाराणसी में एसटीएफ चीफ रहे शैलेंद्र कुमार सिंह को सौंपा गया।

मुख्तार से ऐसे जुड़ा पूर्व डीएसपी अधिकारी का नाम

दरअसल, प्रदेश की मुलायम सरकार ने माफिया मुख्तार अंसारी और बीजेपी नेता कृष्णानंद राय के बीच होने वाले गैंगवार पर नजर रखने के लिए पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह को जिम्मेदारी सौंपी थी। शैलेंद्र सिंह ने बताता था कि सरकार ने मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय पर नजर बनाए रखने की जिम्मेदारी एसटीएफ को दी थी। वह दोनों पूर्वांचल से थे और मैं भी पूर्वांचल के चंदौली से हूं। ऐसे में मुझे दोनों पर निगरानी रखने के लिए भेजा गया। दोनों ने फोन टैप किये जा रहे थे, तभी AK 47 राइफल की चर्चा सुनाई दी। फोन टैपिंग यह बात सामने आई कि सेना का भगोड़ा बाबूलाल मुख्तार से कह रहा था कि मेरे पास सेना से चुराई हुई लाइट मशीन गन है जो कि राष्ट्रीय राइफल से चुराई गई थी और उससे लेकर आया हूं। दोनों में डील भी हुई। शैलेंद्र सिंह से तब बताई थी, जब मुख्तार अंसारी को एक केस के मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई थी।

हालांकि शैलेंद्र सिंह ने ये भी कहा था कि मुलायम सिंह सरकार AK 47 के केस में बचाना चाहती थी और उसको बचाया भी। उन्होंने बताया कि अंसारी की फोन रिकॉर्डिंग और एलएमजी बरामदगी ने पुलिस टीम का हौसला बढ़ा दिया था। सबको लग रहा था कि इतने संगीन अपराध में उसे सख्त से सख्त सजा होनी तय थी और उसके दिन लद गए। पुलिस ने आर्म्स एक्ट के साथ मुख्तार पर पोटा भी लगा दिया था। जब यह बात मुख्तार अंसारी को पता चली तो उनसे मुलायम सिंह के दबाव बनाकर केस ही रद्द करवा दिया, क्योंकि उसके समर्थक से मुलायम सरकार बनी थी।

अंसारी की मौत के बाद 29 मार्च, 2024 शुक्रवार को पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह फिर वही कहानी बयां करते हुए भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह की सरकार अंसारी को बचाना चाहती थी और मुझे इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। 20 साल पहले, 2004 में मुख्तार अंसारी का साम्राज्य चरम पर था। वह उन इलाकों में खुली जीप में घूमता था जहां कर्फ्यू लगा हुआ था। उस समय मैंने एक लाइट मशीन गन बरामद की थी, इससे पहले या उसके बाद कोई बरामदगी नहीं हुई थी। मैंने उन पर पोटा भी लगाया, लेकिन मुलायम सरकार उन्हें किसी भी कीमत पर बचाना चाहती थी.

मुलायम सिंह ने अधिकारियों पर डाला था दबाव

शैलेंद्र सिंह ने दावा किया कि उन्होंने अधिकारियों पर दबाव डाला, आईजी-रेंज, डीआईजी और एसपी-एसटीएफ का तबादला कर दिया गया, यहां तक कि मुझे 15 दिन के भीतर इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन मैंने अपने इस्तीफे में अपना कारण लिखा और जनता के सामने रखा कि यह वही सरकार है जिसे आपने चुना था, जो माफियाओं को संरक्षण दे रही है और उनके आदेश पर काम कर रही है। मैं किसी पर एहसान नहीं कर रहा था, यह मेरा कर्तव्य था।

योगी जी, ने समझी हमारी पीड़ा

उन्होंने कहा कि बीते 17 वर्षों तक मुझे सुनियोजित तरीके प्रताड़ित किया गया। कई सरकारें आईं और गईं लेकिन किसी ने हमारी सुध नहीं ली। मगर साल 2017 में योगी सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री योगी जी ने हमारी सुध ही और हमारे खिलाफ सभी वापस ले लिए गए। 17 साल हम लोगों का कीमती समय जब बर्बाद होता है न तो कोई नहीं पूछता है, किस परिस्थिति में हम लोग जीते हैं। मुझे नौकरी छोड़ने का दर्द नहीं है लेकिन किस परिस्थिति में हम लोग जीते हैं, हम लोग ही जानते हैं किस तरह से जान बची है।



Viren Singh

Viren Singh

पत्रकारिता क्षेत्र में काम करते हुए 4 साल से अधिक समय हो गया है। इस दौरान टीवी व एजेंसी की पत्रकारिता का अनुभव लेते हुए अब डिजिटल मीडिया में काम कर रहा हूँ। वैसे तो सुई से लेकर हवाई जहाज की खबरें लिख सकता हूं। लेकिन राजनीति, खेल और बिजनेस को कवर करना अच्छा लगता है। वर्तमान में Newstrack.com से जुड़ा हूं और यहां पर व्यापार जगत की खबरें कवर करता हूं। मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई मध्य प्रदेश के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्विविद्यालय से की है, यहां से मास्टर किया है।

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