उत्तराखंड हादसे की चौथी बरसी, कई लोगों को अब तक नहीं मिला मुआवजा

Sanjay Bhatnagar
Published on: 16 Jun 2016 8:37 AM GMT
उत्तराखंड हादसे की चौथी बरसी, कई लोगों को अब तक नहीं मिला मुआवजा
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गोरखपुर: उत्तराखंड त्रासदी की गुरुवार को चौथी बरसी मनाई गई। इन 4 बरसों के बाद भी कई परिवारों के जख्म हरे हैं। किसी को परिजनों के शव नहीं मिले, तो किसी को मुआवजा नहीं मिला। गोरखपुर के सत्य प्रकाश भी ऐसे ही लोगों में हैं। लाख भागदौड़ के बाद न मां मिली, न मां का शव मिला और न यूपी सरकार से मुआवजा मिला।

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हादसे में खोया परिवार

-गोरखपुर के मियां बाजार निवासी 45 वर्षीय सत्यप्रकाश मोदनवाल ने उत्तराखंड त्रासदी में अपने कई परिजन खो दिए।

-70 वर्षीया मां फूलमती 3 जून 2013 को बेटी और दामाद के साथ बस्ती में उनके घर से केदारनाथ दर्शन के लिए निकली थीं।

uttarakhand tragedy-victim family-bereave compensation हादसे में लापता फूलमती

-मां और बहन-बहनोई से सत्य प्रकाश की आखिरी बात 14 जून को रामबाड़ा से हुई थी।

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uttarakhand tragedy-victim family-bereave compensation नहीं हो सका अंतिम संस्कार

-हादसे के बाद बस में सवार 45 लोगों में से 30 लोग आज तक न जिंदा मिले न उनके शव मिल सके।

-इन्ही में सत्य प्रकाश की मां और बहन-बहनोई भी शामिल थे।

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uttarakhand tragedy-victim family-bereave compensation पेचीदगियों में फंसा है मुआवजा

मुआवजे में पेचीदगी

-सत्य प्रकाश ने हरिद्वार जाकर मां और बहन-बहनोई के लापता होने की एफआईआर दर्ज करवाई।

-उत्तराखंड सरकार ने मां फूलमती को मृतक मान कर उन्हें 5 लाख मुआवजा सौंप दिया।

-लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार से मुआवजे की राशि के वह 4 साल से अब तक भागदौड़ कर रहे हैं।

आगे की स्लाइड्स में पढ़िए मृत्यु प्रमाणपत्र का पेंच...

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uttarakhand tragedy-victim family-bereave compensation रह गईं सिर्फ यादें

-गोरखपुर डीएम ऑफिस ने उनकी मां फूलमती को लापता सूची में नहीं रखा।

-मां, बहन और बहनोई के मृत्यु प्रमाणपत्र बस्ती भेज दिए गए।

-बस्ती डीएम ऑफिस ने गोरखपुर निवासी होने के चलते फूलमती का प्रमाणपत्र वापस शासन को भेज दिया।

आगे की स्लाइड्स में पढ़िए कौन सा दर्द सालता है आज...

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uttarakhand tragedy-victim family-bereave compensation हादसे ने मां, बहन और बहनोई को छीन लिया

काश! अंतिम संस्कार हो पाता

-वह कहते हैं कि यदि केंद्र और उत्तराखंड सरकारों ने तत्परता दिखाई होती, तो कपड़ों-सामानों से लाशों की शिनाख्त हो सकती थी।

-अंतिम संस्कार का हक नहीं मिलने का दर्द आपदा पीड़ित परिवार को आज भी सालता है।

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Sanjay Bhatnagar

Sanjay Bhatnagar

Writer is a bi-lingual journalist with experience of about three decades in print media before switching over to digital media. He is a political commentator and covered many political events in India and abroad.

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