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ऐसे तो नहीं सुधरेगी गंगा की हालत

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Published on: 22 Jun 2018 11:56 AM IST
ऐसे तो नहीं सुधरेगी गंगा की हालत
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ऐसे तो नहीं सुधरेगी गंगा की हालत

आर.बी. त्रिपाठी

लखनऊ: 'न मुझे किसी ने भेजा है और न मैं अपने से आया हूं। मुझे मां गंगा ने बुलाया है। नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में चार साल पहले चुनाव लड़ते समय जब यह जुमला कहा तो देश भर के लोगों में यह विश्वास जागा कि उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद गंगा का उद्धार जरूर हो जाएगा। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साल भर के भीतर जब सरकार ने सुनामित परियोजना नमामि गंगे की घोषणा की तो इस पर चतुर्दिक हर्षघोष हुआ। उल्लास जागा कि वाकई सरकार गंगा की निर्मलता के लिए बहुत कुछ करने की व्यापक तैयारी में है, लेकिन इसके कुछ ही महीनों बाद विज्ञान के जाने माने अध्येता और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठतम नेता डॉ मुरली मनोहर जोशी ने यह कहकर गंगा स्वच्छता अभियान की सच्चाई सामने रखी कि जो हालात हैं, ऐसे में तो गंगा सौ साल तक साफ नहीं होगी तो गंगा की सफाई की खुशफहमी पाले लोगों के पांवों तले जमीन खिसकती महसूस हुई। गंगा तट और इसके आसपास बसने वाली तकरीबन 45 करोड़ आबादी के जीवन-मरण का प्रश्न है। गंगा का प्रदूषण खत्म न हुआ तो इतनी बड़ी आबादी का वजूद खतरे में आने से कोई रोक नहीं पाएगा।

नदियों की स्वच्छता के लिए बनाए गए मंत्रालय की तत्कालीन मंत्री उमा भारती ने भले ही डॉ जोशी के पास पहुंचकर सफाई पेश की, लेकिन सब जान चुके थे कि गंगा की सफाई में वाकई गड़बड़ चल रही है। गंगा साफ नहीं हो पाएगी। मोदी सरकार को काम करते चार साल हो गए। गंगा में प्रदूषण वहीं का वहीं हैं, बल्कि यूं कहा जाए कि हालत और खराब हुई है तो गलत नहीं होगा।

हिमालय से लेकर गंगासागर तक देश के पांच राज्यों से होते हुए तकरीबन 2525 किलोमीटर की यात्रा तय करने वाली देवनदी गंगा में प्रदूषण इस हद तक बढ़ गया है कि इसका जल छूने मात्र से कई जगह त्वचा की बीमारियां संभव हैं। पीने से पेट की बीमारियां होनी तय है। यह कोई आम लोगों की बात नहीं, गंगा पर 30 साल से अधिक समय से शोध करने वाले वैज्ञानिकों का दावा है। जिस नदी को पतित पावनी कहा जाता है, जिसकी पवित्रता की सौगंध खायी जाती है, उसकी इस दुर्दशा के लिए सरकार और सिस्टम ही सबसे बड़ा जिम्मेदार है। लालफीताशाही असल समस्या पर ध्यान केंद्रित करने बजाय उस पर अपनी नजरें गड़ाए रहती है कि सरकारी कोष का मुंह कैसे खुले।

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सरकारी सिस्टम गंगा की स्वच्छता के लिए वास्तविक काम करने के बजाय पक्के घाटों के निर्माण में लगा हुआ है। गंगा किनारे पेड़ लगाने की बात की जा रही है, लेकिन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वनस्पतिशास्त्र के प्रोफेसर और पिछले 39 सालों से गंगा स्वच्छता के लिए जागरूकता अभियान चलाने वाले डॉ.दीनानाथ शुक्ल कहते हैं कि सरकार और सिस्टम गंगा की सफाई के नाम पर जो कर रहा है, उससे गंगा कभी साफ नहीं होने वाली। पूरी दुनिया की विपुल संपदा और जनशक्ति का प्रयोग करके भी इस तरह से गंगा को साफ नहीं कर सकते, जब तक कि उसमें पर्याप्त मात्रा में पानी न छोड़ा जाए। यह पानी बांधों के जरिए रोक रखा गया है। उत्तर प्रदेश राज्य गंगा समिति इस बारे में मौन है। उसके पास इस सवाल का जवाब है ही नहीं कि गंगाजल की अविरलता कैसे बनी रहे। उसका जोर गंगाजल निर्मलीकरण पर है। लेकिन जब गंगाजल के नाम पर धारा में सिर्फ गंदगी बह रही है तो उसे साफ कैसे किया जा सकता है, यह सवाल यथावत बना हुआ है। सरकार इस सवाल पर मौन है।

नाले रोकने का प्रयास नहीं

अगले साल जनवरी में दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन इलाहाबाद में कुंभ मेले के रूप में होने जा रहा है। यह आयोजन गंगा के नाम पर ही है। सरकार बड़े-बड़े दावे कर रही है कि गंगा का प्रदूषण रोकने के लिए हम उपाय कर रहे हैं। गंदे नालों को गंगा में गिरने से रोकने के प्रभावी उपाय किए जा रहे हैं,लेकिन हकीकत यह है कि यह आंख मुंदाने वाली बात है।

स्नान क्षेत्र में नाले जरूर रोक दिए जाते हैं, लेकिन आगे चलकर वही नाले गंगा में गिरा दिए जाते हैं। इलाहाबाद से पहले कानपुर के गंदे नाले और चमड़ा फैक्टरियों का गंदा पानी यूं ही गंगा में बहाया जा रहा है। हाईकोर्ट की फटकार के बाद भी टेनरियों का कचरा गंगा में गिर रहा है तो इसे क्या कहा जाए। प्रदूषण रोकने के सारे दावे हवा हवाई ही साबित हो रहे हैं।

निर्मलीकरण से ज्यादा जरूरी अविरलता : प्रो.त्रिपाठी

उत्तर प्रदेश राज्य गंगा समिति के विशेषज्ञ और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन प्रोफेसर बी.डी. त्रिपाठी ने भी गंगा पर बहुत काम किया है। वह कहते हैं कि गंगा को लेकर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने भी सवाल रख चुके हैं। समाधान का उपाय भी बता चुके हैं, लेकिन हल नहीं निकल पा रहा है। वह मानते हैं कि केवल राजनीतिक कारण हैं जिनकी वजह से गंगा साफ नहीं हो पा रही है। वजह कि उस स्तर से असल योजनाओं पर काम ही नहीं हो रहा है। एक योजना बनती है, तब तक दूसरी सरकार आ जाती है। वह पुरानी योजना में बदलाव करके कुछ नया करने लगती है और असल समस्या जहां की तहां रह जाती है।

प्रो.त्रिपाठी बताते हैं कि गंगा का जल कम होने के चार कारण हैं। उत्तराखंड में भागीरथी, मंदाकिनी और अलकनंद ही आगे चलकर गंगा के रूप में बढ़ती हैं। इन्हीं नदियों का पानी बांध बनाकर रोक लिया गया। आगे चलकर बैराज बना दिए गए हैं। फिर लिफ्ट कैनाल से पानी निकाला जा रहा है और इसके बाद पूरे गंगा बेसिन में बेतहाशा जल दोहन किया जा रहा है। गंगा में पानी कम होने के लिए यही चार प्रमुख बातें जिम्मेदार हैं और इन्हीं के लिए कोई योजना नहीं बनाई जाती है।

प्रोफेसर बी.डी. त्रिपाठी का मानना है कि गंगा नदी जगह-जगह टूट रही है। नदी अगर तालाब में बदल गई तो क्या होगा। गंगा में जल कम हो चुका है। नहरों से पानी छोड़ा नहीं जा रहा है। असल सवाल गंगा की अविरलता बनाए रखने का है। अगर गंगा अविरल रहे तो निर्मल अपने आप हो जाएगी। बात केवल निर्मलीकरण की हो रही है। अविरलता पर तो सरकार काम ही नहीं कर रही है। पिछले 32 सालों से यही तो हो रहा है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने से क्या होगा, जब गंगा में जल ही नहीं है। प्रदूषण का स्तर तो बढ़ेगा ही जब जल कम होगा और गंदा पानी बढ़ता जाएगा। इसलिए निर्मलता से ज्यादा जरूरी है अविरलता। गंगा अविरल रहेगी तो 60 से 70 प्रतिशत समस्या का समाधान अपने आप हो जाएगा।

गंगा का पानी रोक देने से हिमालय में भूकंप का खतरा : प्रो.शुक्ल

केंद्रीय गंगा प्राधिकरण के गठन से 4 साल पहले से इलाहाबाद और आसपास के इलाके में गंगा प्रदूषण निवारण के लिए लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ दीनानाथ शुक्ल गंगा की दुर्दशा को लेकर बेहद चिंतित व व्यथित हैं। कहते हैं कि सरकारें गंगा के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। जिस तरह से स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है उससे गंगा कभी साफ नहीं होगी, चाहे पूरी दुनिया की दौलत लाकर गंगा में डाल दी जाए। सफाई के लिए असल मामला गंगा जल बढ़ाने का है जो कोई सरकार नहीं कर रही है। गंगा की दशा और गंगा स्वच्छता अभियान जैसे मसले पर प्रोफेसर शुक्ल से विस्तार से बातचीत की गई। पेश हैं बातचीत के अंश-

  • गंगा की स्वच्छता को लेकर जो काम चल रहा है, उसे आप किस रूप में देखते हैं?

    काम तो कुछ हो ही नहीं रहा। काम जो बताया जा रहा है वह है घाटों के निर्माण का,गंगा किनारे पेड़ लगवाने का। आप क्या समझते हैं कि क्या इससे गंगा साफ हो जाएगी। यह मजाक है मजाक। जिस तरीके से गंगा सफाई हो रही है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि पूरे विश्व का पैसा लाकर गंगा में लगा दिया जाए तो भी प्रदूषण कम नहीं होने वाला।

  • प्रदूषण की मूल वजह आप क्या मानते हैं?

    गंगा जल की कमी ही प्रदूषण की मूल वजह है। गंगा के जल में ऐसे अनेक तत्व हैं जिनकी वजह से वह स्वयं प्रदूषण खत्म करने की क्षमता रखता है,लेकिन पहले वह जल आने तो दिया जाए। गंगा में तो नाले गिराए जा रहे हैं। टेनरियों का जहरीला पानी छोड़ा जा रहा है। आखिर इसे रोकने के उपाय होने चाहिए जो पिछले 32-35 सालों में नहीं हो पाए।

  • गंगा में जल की कमी की वजह क्या मानते हैं?

    गंगा जल रोकने के लिए बांध बना दिए गए हैं। नहरें निकाल दी गई हैं। टेहरी में कई बांध है। इसके बाद हरिद्वार और नरोरा बांध बना दिए गए। नहरों के जरिए सिंचाई के लिए पानी रोक लिया गया। इसके बाद आखिर गंगा जल बचा ही कहां। जब मर्ज यानी प्रदूषण रोकने का इलाज ही यही है तो वही करना पड़ेगा।

  • बांध बनाने से पर्यावरण के असंतुलन का खतरा भी तो बताया जा रहा है?

    भयावह खतरा है। पूरे हिमालय क्षेत्र का पर्यावरण बिगड़ रहा है। हिमालय एकवलीय पर्वत है। इसकी ऊंचाई अब भी बढ़ रही है। इसके आसपास पृथ्वी की आंतरिक सतह अब भी गरम है। पानी रोकने से तो भूकंप का सबसे बड़ा खतरा है। हिमालय हिला तो हमारे देश का कितना नुकसान होगा, इसका आंकलन करना मुश्किल है। चोटियां इधर से उधर हुईं तो हवा बाहर चली जाएगी। फिर तो पानी भी न बरसेगा। पूरा भूभाग मरुस्थल में तब्दील हो जाएगा।

  • आप तो गंगा पर बरसों से काम कर रहे हैं, कभी सरकार को चेताया नहीं?

    आप चेताने की बात कर रहे हैं। एक नहीं, अनेक बार लिखकर भेजा। समय-समय पर इस बारे में आयोजित होने वाली बैठकों में खुलकर बोला, लेकिन जब कोई सुने तब न। सिस्टम तो अपने तरीके से काम करता है। उसकी निगाह हमेशा इस पर रहती है कि सरकारी धन कैसे खर्च किया जाए। उसे न गंगा का प्रदूषण खत्म करने की चिंता है और न ही सही योजनाओं को लागू करने के बारे में सोचना है। अब इलाहाबाद में ही देखिए। 37 नाले गंगा में गिर रहे हैं और 23 नाले यमुना में। इन्हें रोकने के क्या उपाय किए गए। सरकारी अफसर खेल तमाशा करके खजाने का पैसा बर्बाद कर रहे हैं और कुछ नहीं। नमामि गंगे योजना का ज्यादातर पैसा घाटों के निर्माण में खर्च हो रहा है। पेड़ लगाने की बात हो रही है। इससे गंगा कहां साफ हो रही है।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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