TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

धर्म की नगरी में गंगा पुत्र अब गुस्से में, सामने है रोजी रोटी का संकट

Newstrack
Published on: 5 Jan 2018 2:32 PM IST
धर्म की नगरी में गंगा पुत्र अब गुस्से में, सामने है रोजी रोटी का संकट
X

आशुतोष सिंह

वाराणसी: धर्म की नगरी काशी में गंगा पुत्र कहे जाने वाले नाविक अब गुस्से में हैं। उनके सामने अब रोजी रोटी का संकट खड़ा होने लगा है। गंगा की लहरों के बीच चलने वाले चप्पू अब खामोश होते जा रहे हैं। आंदोलन की पटकथा लिखी जा रही है। बैठकों का दौर जारी है। मतलब साफ है कि अब गंगा पुत्र आरपार की लड़ाई का मन बना चुके हैं। नाविकों के गुस्से की वजह यह है कि कुछ निजी कंपनियां गंगा में अपनी नावों का बेड़ा उतारने जा रही है। स्थानीय नाविक इसका विरोध कर रहे हैं। नाविकों ने अब स्थानीय जिला प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए हड़ताल का ऐलान कर दिया है।

नाविकों के सामने रोजी रोटा का संकट : नाविकों को चिंता इस बात की है कि अगर निजी कंपनी गंगा में अपनी नाव उतारती है तो उनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। नाविक नहीं चाहते कि स्थानीय मल्लाहों के अलावा कोई दूसरी कंपनी गंगा में नाव उतारे। नाविकों के मुताबिक जिला प्रशासन ने पहले ही कछुआ सेंचुरी के नाम पर तमाम बंदिशें लगा रखी है। गंगा में खनन के अलावा मछली मारने पर पूरी तरह प्रतिबंध है। अगर ऐसे में नाव संचालन का काम भी उनसे छीन लिया जाएगा तो फिर उनके सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी। निषाद समाज के अध्यक्ष विनोद निषाद कहते हैं कि जेटी की वजह से नाविक पहले ही परेशान हैं। अब जिला प्रशासन की यह कोशिश उनके कारोबार को ठप कर देगी।

नए साल का मजा किरकिरा : नए साल पर काशी के प्रसिद्ध घाटों का दीदार करने के लिए लाखों की संख्या में देसी और विदेशी सैलानी वाराणसी पहुंचे हुए हैं। इस बीच नाविकों की हड़ताल के चलते इन सैलानियों का मजा किरकिरा हो गया। गंगा में नौका विहार की हसरत अधूरी रह गई। नावों का संचालन न होने से सैलानी निराश दिखे। बताया जा रहा है कि मौजूदा वक्त में सिर्फ 25 फीसदी ही नावें गंगा में चल रही हैं। इन नावों की बुकिंग काफी पहले ही हो गई थी। बुकिंग की मियाद खत्म होते ही नावों का संचालन पूरी तरह ठप कर दिया जाएगा।

नाव के सहारे चलती है हजारों की जिन्दगी : काशी के विश्व प्रसिद्ध गंगा घाटों पर नौकायन करना हर किसी को भाता है। लगभग सात किमी लंबी घाटों की शृंखला को देखने के लिए हर साल तकरीबन चार लाख विदेशी और पंद्रह लाख देसी सैलानी बनारस पहुंचते हैं। एक अनुमान के मुताबिक लगभग चार हजार नाविक सीधे तौर पर नाव संचालन से जुड़े हुए हैं। नाव संचालन से होने वाली आमदनी से ही उनके घर का खर्च चलता है। नाविकों के परिवार में बुजुर्ग से लेकर बच्चे की जिंदगी इन नावों पर ही कटती है। ये लोग दशकों से गंगा में नाव चला रहे हैं। नाविकों के मुताबिक गंगा में निजी कंपनियों को नाव संचालन का आदेश देकर जिला प्रशासन उनके पेट पर लात मारने का काम कर रहा है। इसके पहले भी सरकार ने प्रदूषण को रोकने के लिए ई-बोट गंगा में उतारी थी,लेकिन उनका क्या हश्र हुआ, यह हर कोई देख चुका है। ये सभी नावें रखरखाव में लापरवाही और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयीं।



\
Newstrack

Newstrack

Next Story