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पीएम साहब, सुन लीजिए गंगा की पीड़ा
वाराणसी: पतित पावनी मां गंगा की पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं है। काशी के विश्वप्रसिद्ध घाटों से मां गंगा रूठने लगी हैं। नदी के बीच में रेत के टीले दिख रहे हैं। आक्सीजन की मात्रा लगातार कम होती जा रही है। गंगा के जलीय जीवों पर भी खतरा मंडराने लगा है। ये हाल तब है जब देश के प्रधानसेवक यानी प्रधानमंत्री और काशी के सांसद नरेंद्र मोदी ये दावा करते हैं कि उन्हें मां गंगा ने यहां बुलाया है। गर्मियों में गंगा का यह हाल आज तक किसी ने नहीं देखा था। अस्सी घाट पर गंगा लगभग 60 फीट तक दूर चली गई हैं। दरअसल सर्दियों में गंगा का सिकुड़ते हुए देखा गया था और अंदेशा लगाया गया था कि अगर गंगा में पानी नहीं छोड़ा गया तो गर्मियों में हालात और बदतर होंगे। हुआ भी कुछ ऐसा ही। अप्रैल, मई महीने में ही सूखती हुई गंगा की हकीकत सामने आ गई है। गंगा में पानी न होने की वजह से उसमे प्रवाह भी नहीं है।
गंगा के जलस्तर में घटाव जारी
गंगा के हाल को देखकर एक महीने पहले ही जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्र ने सिंचाई विभाग को आगाह किया था। उन्होंने खत लिखकर गंगा में पानी का प्रवाह बढ़ाने की गुजारिश की थी, लेकिन उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया। दरअसल भीषण तपिश के बीच जलस्तर में लगातार गिरावट से हालात बेहद चिंताजनक हैं। प्रवाह थमने के कारण बढ़ते प्रदूषण से स्थितियां ऐसी हैं कि अधिकतर घाटों पर जल आचमन और स्नान योग्य भी नहीं रह गया है। जलस्तर खिसकने से गंगा का पाट भी सिमटता जा रहा है। आलय ये है कि गंगा का जलस्तर आठ साल के न्यूनतम स्तर पर है। गंगा में जलस्तर में कमी का असर रामनगर से राजघाट के बीच दिखने लगा है। काशी के धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए गंगा में जल की कमी गंभीर चिंता का विषय है।
जानकारों का कहना है कि इस कमी को यथाशीघ्र दूर किया जाना चाहिए अन्यथा आने वाले दिनों में पीने के पानी का संकट गहरा जाएगा। केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक 2015 में गंगा का न्यूनतम जलस्तर 58.67 मीटर था, जबकि 2016 में इसमें और गिरावट दर्ज हुई और गंगा का जलस्तर 58.52 मीटर रिकॉर्ड किया गया। 2017 में यह घटकर 58.27 मीटर रह गया। जबकि 24 अप्रैल 2018 को वाराणसी में गंगा का जलस्तर आठ सालों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया और वाटर लेवल 58.1 मीटर रिकॉर्ड हुआ। जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्र कहते है कि जल का प्रवाह कैसे बढ़े, उसके लिए सभी चिंतित हैं। काशी आने वाले श्रद्घालुओं और पर्यटकों में अधिकांश गंगा के तट पर भ्रमण के लिए, गंगा में बोटिंग व स्नान करने के लिए आते हैं। इस कारण शासन से अनुरोध किया गया है कि गंगा में अतिरिक्त जल भेजा जाए। इसके लिए कानपुर बैराज, हरिद्वार से या नरौरा से पानी भेजा जाए।
गंगा का रूप देखकर श्रद्धालु भी हैरान
गंगा के घटते जलस्तर पर सिर्फ जिलाधिकारी ही नहीं बल्कि यहां आने वाले पर्यटक भी चिंतित हैं। वाराणसी के दशाश्वमेघ घाट पर अपने परिवार के साथ पूजा करने आई पूजा के मन में बनारस के घाटों पर लहराती गंगा को लेकर बहुत उत्सुकता थी, लेकिन यहां उन्होंने गंगा का जो हाल देखा, उससे वो बेहद दुखी हुईं। पूजा कहती हैं कि बहुत बुरा लगा। सरकार कह रही है कि गंगा की दशा को सुधारने के लिए मुहीम चलाई जा रही है, लेकिन मुझे नहीं लग रहा है कुछ हो रहा है। दरअसल बनारस के सभी घाटों का अगर जायजा लें तो गंगा का घाट की सीढिय़ों से दूर जाने की भयावह स्थिति अस्सी घाट से दिखनी शुरू हो जाती है। यहां गंगा सीढिय़ों से तकरीबन 60 फुट दूर बह रही हैं। गंगा प्रेमियों को यकीन नहीं हो रहा है कि जहां कुछ दिन पहले गंगा की लहर नजर आती थी आज उस जगह सिल्ट नजर आ रहा है। गंगा का अस्सी से लेकर आदिकेशव घाट तक किनारों से उनका दूर होना ऐसे ही खतरे की ओर इशारा कर रहा है। मौजूदा हालात यह हैं कि कहीं 30 तो कहीं 60 फुट तक घाटों से गंगा दूर हो गई है।
काशी में सिकुडऩे लगी गंगा
बनारस में गंगा की चौड़ाई कभी 800 मीटर हुआ करती थी जिसे तैर कर पार करना मुश्किल था। आज गंगा की चौड़ाई सिर्फ 200 मीटर रह गई है। इसके अलावा बनारस में लोग गंगा का पानी पीते थे, लेकिन आज प्रदूषण इतना है कि आचमन तक नहीं करते। बनारस में ताजा आंकड़ों के मुताबिक गंगा में जो बीओडी 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होना चाहिये वो तुलसी घाट पर 6.8 मिलीग्राम, शिवाला घाट पर 6.4 मिलीग्राम, राजेंद्र प्रसाद घाट पर 5.2 मिलीग्राम, त्रिलोचन घाट पर 6 मिलीग्राम और वरुणा नदी के पास 52 मिलीग्राम पाया गया। इसी तरह फोकल कोलीफॉम काउन्ट जो 500 से कम होना चाहिये वो तुलसी घाट पर 70000, शिवाला घाट पर 63000, आरपी घाट पर 41000, त्रिलोचन घाट पर 57000 के पास पाया गया है। प्रदूषण के इस स्तर का कारण गंगा में गिरते सीधे नाले है। बनारस के घाटों पर गंगा का जो जल दिख रहा है वो सीवेज के पानी का है।
प्रदूषण रोकने का काम सिर्फ कागजों पर
ऐसा नहीं है कि गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए काम नहीं हो रहा है। काम तो जरूर हो रहा है कि लेकिन सिर्फ कागजों पर। सरकार दावा करती है कि गंगा को बचाने के लिए जीरो टॉलरेस की नीति अपनाई गई है। अलग मंत्रालय बनाया गया है, लेकिन ये सभी कोशिशें नाकाफी दिख रही हैं। वाराणसी में नगर निगम और जल प्रदूषण विभाग की खींचतान में गंगा का बेड़ागर्क हो रहा है। मौजूदा वक्त में गंगा में एक-दो नहीं बल्कि सौ से अधिक छोटे-बड़े नालों का गंदा पानी हर वक्त गिरता है। सबकुछ जानने के बाद भी नगर निगम के अफसर मौन रहते हैं। पतित पावनी का ये रूप देखकर गंगा महासभा के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद भी हैरान हैं। वे कहते हैं कि हरिद्वार से नीचे गंगा का एक बूंद भी जल नहीं आ रहा है। हरिद्वार में गंगा का पानी चार नहरों में बांट दिया गया है जो दिल्ली की प्यास और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के सिंचाई के उपयोग में लाया जा रहा है। काशी तक तो पानी पहुंच ही नहीं पा रहा है।