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गंगा की राह पर वरुणा नहीं बचा पानी, कॉरिडोर पर उठ रहे हैं सवाल

raghvendra
Published on: 6 July 2018 12:12 PM IST
गंगा की राह पर वरुणा नहीं बचा पानी, कॉरिडोर पर उठ रहे हैं सवाल
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: देश के अधिकांश हिस्सों में मानसून ने दस्तक दे दी है। झमाझम हो रही बारिश ने सूरज की तपिश से धधकती धरती को राहत दी है तो लोगों के चेहरे भी खिल उठे हैं। हर ओर छाई हरियाली सुकून दे रही है। नदियां फिर से हिलोरे मारने लगी हैं, लेकिन बनारस के लोग इस मनभावन मौसम में भी मायूस हैं। शहर की पहचान पर खतरे का साया साफ दिख रहा है। खतरा अस्तित्व का है। गंगा के बाद अब वरुणा नदी की हालत भी दयनीय हो गई है। आलम ये है कि बारिश के मौसम में भी नदी सूखने के कगार पर पहुंच चुकी है। नदी में नाम मात्र का पानी बचा है। ये सबकुछ तब हो रहा है जब इस नदी को बचाने के लिए राज्य सरकार पानी की तरह पैसा बहा रही है। वरुणा कॉरिडोर के नाम पर अब तक करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि न तो वरुणा का भला हुआ है और न ही ये कॉरिडोर बन पाया है। नतीजा ये है कि मौजूद दौर में वरुणा नदी भ्रष्टाचार, लापरवाही और अफसरों के नकारेपन की सबसे बड़ी नजीर बन चुकी है।

डूब क्षेत्र अवैध निर्माणों की भरमार

नदी में पानी की कमी के लिए इसके प्राकृतिक स्वरूप से की गई छेड़छाड़ और मनमाने निर्माण को जिम्मेदार बताया जा रहा है। भू-माफिया, नगर निगम, वीडीए और प्रशासनिक अधिकारियों के गठजोड़ से नदी के डूब क्षेत्र में अवैध निर्माणों की भरमार हो गई है। स्थानीय प्रशासन ने नदी के पचास मीटर के दायरे में बन रहे मकानों और अन्य इमारतों को गिराने के निर्देश दिए, लेकिन अभी तक वीडीए कार्रवाई करने से हिचक रहा है। उच्चाधिकारियों की लापरवाही से वरुणा के डूब क्षेत्र में सैकड़ों अवैध निर्माण हो गए हैं। इन अवैध निर्माणों ने वरुणा के प्रवाह को बाधित किया है।

वरुणा किनारे अवैध निर्माण कराने वाले 762 भवन स्वामियों को वीडीए और 30 लोगों को सिंचाई विभाग ने डेढ़ साल पहले नोटिस दिया था। तब से अब तक कार्रवाई के नाम पर सिर्फ लीपापोती हुई। राजस्व और सिंचाई विभाग के रिकॉर्ड में वरुणा किनारे से 40 से 80 मीटर तक का दायरा डूब क्षेत्र है। लेकिन भूमाफियाओं ने मनमानी करते हुए नदी के मुहाने तक निर्माण करा लिए हैं। हैरानी इस बात की है कि कोर्ट के आदेश के बाद भी वीडीए और नगर निगम की टीम अतिक्रमण को हटाने के लिए आगे नहीं आ रही है। बताया जा रहा है कि इन भूमाफियाओं को स्थानीय नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त है। यही कारण है कि स्थानीय प्रशासन भी इनके आगे नतमस्तक हो जाता है।

वरुणा कॉरिडोर पर उठ रहे हैं सवाल

वरुणा की शक्लो-सूरत दुरुस्त करने के लिए सपा सरकार ने बड़ा फैसला किया था। गोमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर वरुणा कॉरिडोर की शुरूआत हुई। लगभग 14 किमी के दायरे में नदी के किनारे 201 करोड़ रुपए की लागत से कॉरीडोर का निर्माण होना है। इसके तहत वरुणा के किनारे चार घाट बनाए जाने हैं। इसके अलावा इसमें ड्रेजिंग, कंस्ट्रक्शन, रेलिंग, चौड़ीकरण व ज्ञानपुर पम्प कैनाल से गंगा के पानी का प्रवाह शामिल है। यही नहीं नदी के दोनों तरफ लंबा प्लेटफॉर्म बनना है, जिस पर लोगों के बैठने की सुविधा होगी। दोनों तरफ पाथवे और लाइटिंग भी लगेगी। घाट की सुंदरता के लिए कचहरी स्थित दोनों पुल के बीच फाउंटेन लगाया जाना है, लेकिन भ्रष्टाचार की मजबूत जड़ों ने इस योजना को भी खोखला बना दिया है।

निर्माण के साथ ही ये कॉरिडोर विवादों में रहा है। आलम ये है वरुणा कॉरिडोर की साइट में दो बार रहस्यमय तरीके से आग लगने की घटना हो चुकी है। हर बार स्थानीय अधिकारी जांच का हवाला देते हैं और मामले को रफा-दफा करने में लग जाते हैं। बताया जा रहा है कि वरुणा कॉरिडोर को बनाने का जिम्मा पूर्व मंत्री शिवपाल यादव के एक करीबी की कंपनी को मिला था। जबकि स्थानीय स्तर पर इसकी जिम्मेदारी सिंचाई विभाग और कार्यदायी संस्था यूपीपीसीएल के अधिकारियों पर थी। निगरानी का जिम्मा जहां सिंचाई विभाग के बंधी प्रखंड के हवाले था, वहीं क्रियान्वयन की जिम्मेदारी यूपीपीसीएल के कंधों पर थी। भ्रष्टाचार और लापरवाही का आलम ये है कि सरकार बदलने के बाद भी सिंचाई विभाग के अफसरान बेफिक्र है। दो साल के दौरान काम पूरा करने के लिए तीन बार से अधिक समय सीमा बढ़ाई गई, लेकिन नतीजा सिफर रहा। अभी तक सिर्फ 50 फीसदी ही काम पूरा हुआ है।

घाट और पाथवे बनाने का काम धीमा

वरुणा कॉरिडोर निर्माण के फस्ट फेस में भीमनगर के पास से आदिकेशव घाट तक नदी के दोनों किनारों पर पाथवे, रेलिंग और पांच घाट बनाए जाने हैं, लेकिन अभी तक सिर्फ तीन घाट का ही निर्माण कार्य पूर्ण हो पाया है। साथ ही पाथवे बनाने का कार्य सलारपुर तक पहुंचा है। छह किमी तक पाथवे अभी तक पक्का नहीं हो पाया है। रास्ते में 50-50 मीटर ग्रीन लैंड और रंगीन लाइटें लगाकर सुंदरीकरण होना है।

ग्रीन लैंड का कार्य शुरू हो चुका है,लेकिन लाइटें अभी तक नहीं लगी हैं। जानकारों के मुताबिक कॉरिडोर के काम में देरी की असली वजह नदी किनारे अतिक्रमण है। कोर्ट ने साफ कह दिया है कि नदी किनारे 50 मीटर के दायरे के अतिक्रमण को तत्काल हटाया जाए। वीडीए ने कॉरिडोर के क्षेत्र में आने वाले 50 से अधिक अतिक्रमण चिन्हित किए हैं। इसमें दर्जनों होटल और गेस्ट हाउस है, लेकिन अभी तक अतिक्रमण हटाया नहीं किया जा सका है। हालांकि कुछ दिनों पहले कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने अभियान चलाकर अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है।

लोगों का बढऩे लगा है गुस्सा

बारिश के मौसम में वरुणा की हालत देखकर स्थानीय लोग गुस्से में हैं। कॉरिडोर निर्माण के साथ लोगों को उम्मीदें थीं कि वरुणा को भी साबरमती की तरह भव्य रूप मिलेगा, लेकिन दो साल गुजर जाने के बाद अब तो नदी ही लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। नदेसर के रहने वाले आतिफ कहते हैं कि हमारा बचपन इस नदी के किनारे ही बीता है, लेकिन आज तक हमने नदी का ये रूप नहीं देखा। ऐसा लग रहा है कि अप्रैल-मई की गर्मी में हम नदी के किनारे खड़े हैं। वरुणा के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे लोकचेतना के केके उपाध्याय कहते हैं कि नदी के प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ की गई जिसका नतीजा हम सबके सामने हैं। जब तक नदी में पानी नहीं होगा, इसकी भव्यता कैसे मिलेगी। अगर यही हालात रहें तो असि नदी की तरह वरुणा का भी हाल हो जाएगा।

नाले की तरह दिख रही वरुणा नदी

मान्यता है कि वाराणसी शहर का नाम वरुणा और असि नदियों के कारण पड़ा। इन दो नदियों के बीच बसे शहर को ही वाराणसी कहा जाता है, लेकिन मौजूदा दौर में ये दोनों नदियां अंतिम सांसें गिन रही हैं। असि नदी तो पहले ही नाले का शक्ल ले चुकी है। अब असि की राह पर वरुणा नदी भी चल पड़ी है। बारिश के मौसम में भी वरुणा नदी सूखने के कगार पर है। दोनों किनारों के बीच की दूरियां सिमट गई हैं। नदी के अधिकांश हिस्सों में पानी सिर्फ नाम मात्र का है। आमतौर पर इस मौसम में नदी में भरपूर पानी रहता था, लेकिन वरुणा की इस भयावह तस्वीर ने लोगों को डरा दिया है। वरुणा नदी में पानी की कमी से सैकड़ों गांवों में फसलों की सिंचाई का संकट खड़ा हो गया है।

शहर क्षेत्र में वरुणा में दिखने वाला पानी मलजल है। जगह-जगह उगी जलकुंभी वरुणा की दुर्दशा को बयां कर रही है। दरअसल इलाहाबाद में फूलपुर के नजदीक मैल्हन झील उद्गम स्थल से ही वरुणा में पानी नहीं है। जरूरत के हिसाब से भदोही जिले के ज्ञानपुर के पास गंगा से पानी लिफ्ट कर इसमें डाला जाता है, लेकिन वरुणा कॉरिडोर के निर्माण कार्य के चलते इस बार ऐसा नहीं किया गया है। नतीजा ये है कि नदी अब नाले की तरह दिखने लगी है। जहां पानी दिखता भी है वह इसमें गिरने वाले नालों का सीवर होता है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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