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गाजीपुर : बहुत पिछड़ गया जातिवाद की राजनीति में जकड़ा जिला

raghvendra
Published on: 24 Nov 2017 5:18 PM IST
गाजीपुर : बहुत पिछड़ गया जातिवाद की राजनीति में जकड़ा जिला
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आशुतोष कुमार सिंह

गाजीपुर : पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस जिले को वीरों की भूमि भी कहा जाता है। इसी जिले ने अब्दुल हमीद जैसा वीर सपूत दिया तो गहमर जैसा गांव भी इसी बसता है, जहां हर परिवार का एक नौजवान सेना का जवान है। लेकिन विडंबना देखिए विकास के लिहाज से ये गांव आज भी पिछड़ा हुआ है।

शिक्षा,रोजगार, चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाओं से इस जिले का अधिकांश हिस्सा महरूम है। जातिवाद की इस राजनीति में जकड़े इस जिले पिछड़ेपन के बहुत से कारण है। नेताओं ने यहां की जनता को हर बार सिर्फ छलने का काम किया है। इच्छाशक्ति और विजन के अभाव में ये जिला प्रदेश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले कोसो दूर है।

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मुश्किल में आलू किसान

इस जिले में लोगों के रोजगार का मुख्य पेशा कृषि है। अधिकांश लोग रोजी रोटी के लिए खेती पर निर्भर है, लेकिन संसाधनों के अभाव में यहां की खेती चौपट होने के कगार पर पहुंच चुकी है। प्रदेश में फर्रुखाबाद के बाद गाजीपुर में आलू की सबसे ज्यादा पैदावार होती है। लेकिन पिछले कुछ सालों से आलू की खेती दम तोडऩे लगी है। हर साल उम्मीदों के साथ किसान आलू की फसल लगाते हैं लेकिन सीजन आते-आते उनकी उम्मीदें दम तोड़ देती है।

आलू की अधिक पैदावार के कारण फसल की लागत भी नहीं मिल पाती। सरकार भी उदासीन बनी हुई है। किसानों ने धान और गेंहू की तरह क्रय केंद्र खोलने की मांग की लेकिन अब तक बात नहीं बनी। यही नहीं आलू रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की भी व्यवस्था नहीं है। लिहाजा आलू किसान बदहाल है। यही हाल गन्ना किसानों का भी है। सरकार के लचर रवैये के चलते किसानों का गन्ने को लेकर मोहभंग होने लगा है। जिले की अधिकांश चीनी मिले बंद होने लगी है।

लिहाजा किसानों ने अब गन्ना बोना बंद कर दिया है। इसके अलावा रोजगार के दूसरे साधनों में अंग्रेजों के जमाने से चल रही अफिम फैक्ट्री को सरकार ने बंद करने का फरमान जारी कर दिया। लिहाजा एक झटके में सैकड़ों लोग सडक़ पर

आ गए।

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मनोज सिन्हा से जगी उम्मीद !

हालांकि मनोज सिन्हा के रेलमंत्री बनने के बाद जिले में वॉसिंग फैक्ट्री लगाई जा रही है। उम्मीद है कि इसकी वजह से कुछ नौजवानों को रोजगार मिलेगा। जिले के पिछड़ेपन की सबसे प्रमुख समस्या नेताओं में इच्छाशक्ति की कमी है। एक दशक से इस जिले में समाजवादी पार्टी का बोलबाला रहा। लेकिन विकास की कोई बड़ी योजना यहां साकार नहीं हुई।

ऐसा नहीं है कि इस जिले के प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक और मंत्री सियासी तौर पर कमजोर थे, बावजूद इसके विकास नहीं हुआ। इस बीच मनोज सिन्हा के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद कुछ प्रोजेक्ट ने जरूर रफ्तार पकड़ी है। बरसों से विकास का थमा हुआ पहिया फिर से चल पड़ा है।

ये हैं जनप्रतिनिधि

अगर विधायकों की बात करें तो गाजीपुर सदर से संगीता बलवंत, मुहम्मदाबाद से अलका राय, सैदपुर से सुभाष पासी, जंगीपुर से वीरेंद्र यादव, जमानियां से सुनीता सिंह, जहूराबाद से ओमप्रकाश राजभर और सादात से त्रिवेणी राम है। इसके अलावा जिले के सांसद मनोज सिन्हा हैं। अब मुद्दों की बात करें तो लगभग हर चुनाव में जिले में विश्वविद्यालय की मांग और स्वास्थ्य व्यवस्था सबसे प्रमुख मुद्दा बनता है। इसके अलावा चीनी मिल और आलू के लिए कोल्ड स्टोरेज बनाने की मांग भी प्रमुखता से उठाई जाती है, लेकिन हर चुनाव के बाद लोग अपने को ठगा महसूस करते हैं।

क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि और लोग ?

जिले के विकास का जिक्र छिड़ते ही लंका निवासी सुजीत सिंह आपा खो देते हैं। उनके मुताबिक केंद्रीय मंत्री और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद ये जिला पिछड़ा हुआ है। रोजगार के साधन अब भी जीरो है। हर पार्टियों ने लोगों को ठगने का काम किया है। सपा नेता अमित सिंह के मुताबिक जिले में जो भी विकास के कार्य हुए हैं वह अखिलेश राज में ही हुए। चाहे गोराबाजार में नया अस्पताल हो या फिर सडक़ों की मरम्मत का काम।

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सदर विधायक संगीता बलवंत कहती हैं कि योगी राज में विकास के कई कार्य चल रहे हैं। हमारी प्राथमिकता है कि लोगों को स्वास्थ्य , पेयजल और सडक़ जैसी बुनियादी सुविधाएं तुरंत मिले। बिजली के क्षेत्र में भी काफी सुधार हुआ है। सकलेनाबाद के गोपी सिंह कहते हैं कि आज किसानों के सामने कई समस्याएं खड़ी हैं। सरकार के पास किसानों की बदहाली दूर करने के लिए अभी तक कोई ठोस प्लान नहीं है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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