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Gazipur News : शीत लहर ने बढ़ाई गलन, फिर याद आई नब्बे के दशक की गाती, जानिए आखिर ये है क्या?

Gazipur News : नब्बे के दशक का गाती वो जैकेट था, जिसे अम्मा, पापा, नाना, नानी बच्चे की नाक बहने यानी जुकाम होने पर तुरंत बांध दिया करते थे। इसी गाती को देख शहरी लोग देहाती भुच्चड़, अनपढ़ गंवार कहते थे।

Rajnish Mishra
Published on: 17 Dec 2024 4:59 PM IST
Gazipur News : शीत लहर ने बढ़ाई गलन, फिर याद आई नब्बे के दशक की गाती, जानिए आखिर ये है क्या?
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Gazipur News : उत्तर प्रदेश में भीषण ठंड ने अपना सितम दिखाना शुरू कर दिया है। शीत लहर के कारण गलन और बढ़ गई है, जिससे बचने के लिए लोगों ने अपने तन को गर्म कपड़ों से ढकना शुरू कर दिया है। ठंड के मौसम में नब्बे के दशक में गांव- देहात में पहनी जाने वाली ठंड प्रूफ जैकेट यानी गाती कौन भूल सकता है, ये गांवों में आज भी दिखाई पड़ जाती है। हालांकि शहरों में भी किसी न किसी को पहने देखा जा सकता है। बता दें कि नब्बे के दशक का गाती वो जैकेट था, जिसे अम्मा, पापा, नाना, नानी बच्चे की नाक बहने यानी जुकाम होने पर तुरंत बांध दिया करते थे। इसी गाती को देख शहरी लोग देहाती भुच्चड़, अनपढ़ गंवार कहते थे।

सर्दी का मौसम दशहरा से ही शुरू हो जाता है, लेकिन इसका प्रकोप दीपावली से देखने को मिलता है। नब्बे के दशक में दीपावली की सुबह यानी भोरे भोरे गाती बांध सुप से दलिदर खेदते देखा जाता था। माघ-पूष की सर्दी में गाती बांध और नाक बहाते हुए बच्चे धूप के इंतजार में अम्मा बाबु जी के पास बैठे दिखाई देते थे। नब्बे के दशक में गांवों में वीसीआर पर सिनेमा दिखाया जाता था, तो बच्चे क्या जवान भी गाती के ही सहारे पूरी रात काट देते थे।

कौन सी बला है गाती?

21वीं सदी के लोग जब ये खबर पढ़ेंगे तो सोचेंगे अब ये कौन सी बला गाती आ गई। तो अब हम बताते हैं कि ये गाती कौन सी बला है। नब्बे के दशक में गांवों के लोगों को सर्दी से बचाने के लिए ये आसान तरीका है, जिसे बांधने का तरीका उस समय अम्मा बाबु जी को ही पता था। कड़कड़ाती ठंड में जब बच्चों की नाक बहने लगती थी तो उसे देख अम्मा बाबु जी, चाचा, अईया कोई भी एक साल या बड़ी बहन का दुपट्टा लेकर एक कोने को पकड़ कर सिर पर रख के पीछे घुमाकर बांध दिया जाता था, जिससे ठंड पूरे शरीर को छू तक नहीं पाती थी।

बड़े-बूढ़े भी बांधते थे गाती

बात यहीं तक सीमित नहीं थी। गाती तो छुकन से लेकर जवानी की दहलीज पर पैर रखने वाले भी बांधते थे। गाती बांधे-बांधे दूसरे गांवों में नाच, नौटंकी, बिरहा, कव्वाली तक सुनने चले जाते थे। गांवों में जब नया नया वीसीआर आया था तो लोग सर्द रात में खुले में बैठ कर इसी गाती के सहारे पूरी रात सिनेमा देखते थे। अगर पता लग जाए कि फलां गांव में वीसीआर पर रामायण दिखाई जा रही है, फिर तो गाती और कसते, अम्मा बांधती और बाउ जी के चोरी चुप्पे भेजती थीं। साथ में संदेश भी होता था, गाती खुले न और बाऊ जी के जागने से पहले आ जईओ। यानी गाती सर्दी से बचने की पूरी गरंटी थी।

गाती के साथ यदि बोरसी (सर्दी में आग सेंकने का मिट्टी का बना साधन) के पास बैठी दादी या दादा की गोद मिल जाए तो उसके सामने इंद्र का सिंहासन भी फेल है। खैर अब तो बोरसी की जगह हीटर और रूम हीटर ने ले ली है और गांती की जगह तरह-तरह के गाउन आ गए हैं। गाती तो अब गरीब और निपट गंवार की निशानी मानी जाती है। अब तो मोबाइल देखकर खाना खाने वाले बच्चे गाती के नाम और उसके काम से अनभिज्ञ हैं। यही नहीं, कान में हेड फोन लगा कर गैस पर रोटियां सेंकने वाली अम्मा से मम्मी बनी माताएं भी गाती की ताकत से अंजान हैं। उन्हें नहीं पता कि इस गाती में सर्दी को क्या भूत भी निकट नहीं आ सकता है।



Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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