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Ghosi Bypoll Result: घोसी में दलित भी सपा के साथ, दारा सिंह जितने वोटो से जीते थे उसके करीब दोगुने से हारे, अखिलेश का PDA फार्मूला कर गया काम

Ghosi Bypoll Result 2023 Highlights: घोसी विधानसभा क्षेत्र में 95 हजार मुस्लिम मतदाताओं के बाद सबसे ज्यादा 90 हजार दलित मतदाता हैं। मुस्लिम मतदाताओं का तो पूरा समर्थन सपा प्रत्याशी के पक्ष में दिखा है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 9 Sept 2023 10:15 AM IST (Updated on: 9 Sept 2023 10:16 AM IST)
Ghosi Bypoll Result: घोसी में दलित भी सपा के साथ, दारा सिंह जितने वोटो से जीते थे उसके करीब दोगुने से हारे, अखिलेश का PDA फार्मूला कर गया काम
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Ghosi Bypoll Result 2023 Highlights: मऊ की घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान की हार के कई बड़े कारण माने जा रहे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर होने के बावजूद दारा सिंह चौहान ने सपा के टिकट पर 22,000 वोटो से जीत हासिल की थी मगर इस बार उन्हें 42,759 वोटो से हर का मुंह देखना पड़ा। इस तरह उन्हें 2022 की जीत की अपेक्षा करीब दोगुने वोटो से शिकस्त झेलनी पड़ी है।

इस उपचुनाव के दौरान बसपा प्रत्याशी के न होने के कारण सबके दिलों दिमाग में यही सवाल उठ रहा है कि आखिरकार बसपा मुखिया मायावती का वोटर किधर गया। पिछले विधानसभा चुनाव में बहन जी के प्रत्याशी ने 54,000 वोट हासिल किए थे। इस बार सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह को मिली बड़ी जीत के बाद माना जा रहा है की बहनजी की नोटा का बटन दबाने की अपील का असर नहीं दिखा है और दलित मतदाताओं का समर्थन भी सपा प्रत्याशी के पक्ष में रहा है। ऐसे में अखिलेश यादव का पीडीएफ फार्मूला घोसी के सियासी रण में कामयाब होता दिखा है।

सपा के पक्ष में शिफ्ट हुआ बहनजी का वोटर

घोसी विधानसभा क्षेत्र में 95 हजार मुस्लिम मतदाताओं के बाद सबसे ज्यादा 90 हजार दलित मतदाता हैं। मुस्लिम मतदाताओं का तो पूरा समर्थन सपा प्रत्याशी के पक्ष में दिखा है। भाजपा का पसमांदा मुसलमान को लुभाने का प्रयास घोसी में विफल साबित हुआ है। घोसी के चुनाव नतीजे को देखते हुए सियासी जानकारों का मानना है कि बसपा प्रत्याशी न होने के कारण दलित मतदाताओं का समर्थन भी सपा प्रत्याशी के पक्ष में गया है।

पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा ने वसीम इकबाल को चुनाव मैदान में उतारा था और वे 54,248 वोट पाने में कामयाब रहे थे। पिछली बार बसपा को करीब 21 फ़ीसदी मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ था मगर इस बार माना जा रहा है कि यह वोट बैंक सपा प्रत्याशी के पक्ष में शिफ्ट हो गया। इसी कारण सपा भाजपा के खिलाफ बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रही है।

नोटा का बदन दबाने वालों में मामूली बढ़ोतरी

इस बार का चुनाव के दौरान दलित मतदाताओं की भूमिका इसलिए महत्वपूर्ण हो गई थी क्योंकि बसपा ने भाजपा और सपा दोनों प्रत्याशियों से दूरी बना ली थी। बसपा ने दोनों में से किसी भी प्रत्याशी को समर्थन न देने का ऐलान किया था। पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को संदेश दिया था कि वे या तो घर बैठें और यदि बूथ तक जाएं तो फिर नोटा का बटन दबाएं। वैसे बहन जी का यह दांव घोसी के सियासी रण में चलता हुआ नहीं दिखा।

2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान घोसी में नोटा का बटन दबाव होने वाले मतदाताओं की संख्या 1249 थी। इस बार नोटा का बटन दबाने वालों की संख्या में मामूली बढ़ोतरी हुई है क्योंकि 1725 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया है। इस तरह अपने मतदाताओं को मतदान से दूर करने का बहनजी का सियासी दांव घोसी में फेल हो गया है जिसका सपा प्रत्याशी को बड़ा सियासी फायदा मिला है।

सपा प्रत्याशी के वोटों में भारी बढ़ोतरी

2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के टिकट पर उतरे दारा सिंह चौहान ने एक लाख आठ हजार 430 मत हासिल किए थे। यह कुल वोटो का 42.21 फीसदी था। इस बार समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने कुल एक लाख 24 हजार 427 वोट हासिल किए हैं और यह 57.19 फीसदी है। इस तरह समाजवादी पार्टी के वोटो में काफी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ऐसे में माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी को ऐसे वर्गों का भी समर्थन हासिल हुआ है जो अभी तक समाजवादी पार्टी से दूर बने हुए थे।

अखिलेश का पीडीए फार्मूला कर गया काम

2022 के विधानसभा चुनाव में झटका खाने के बाद अखिलेश यादव ने पीडीए फार्मूले की चर्चा शुरू कर दी थी। अब वे पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक के इस फार्मूले के जरिए चुनावी समीकरण साधने की कोशिश में जुटे हुए हैं। घोसी के सियासी रण में अखिलेश यादव का पीडीए फार्मूला काम करता हुआ दिखा है। पिछड़े और अल्पसंख्यक मतदाताओं के साथ ही दलित मतदाताओं का समर्थन भी सपा प्रत्याशी को हासिल हुआ है।

अपने इस फार्मूले को कारगर बनाने के लिए अखिलेश यादव ने पिछले दिनों स्वामी प्रसाद मौर्य को आगे करके दलित और पिछड़े वर्ग के समीकरण को साधने की कोशिश की है। यद्यपि स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयानों के कारण उन्हें भाजपा के तीखे हमले भी झेलने पड़े हैं मगर इसके बावजूद अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य को विवादित बयानों से नहीं रोका। हालांकि चुनावी रणनीति के लिहाज से अखिलेश ने मौर्य को घोसी के चुनावी अखाड़े में नहीं उतारा।

अब घोसी के चुनाव नतीजे के बाद सपा प्रत्याशी को पीडीए फार्मूले का लाभ मिलना भी बड़ा कारण माना जा रहा है। घोसी में मिली चुनावी जीत के बाद अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया से भी यह बात साबित होती है। अखिलेश यादव ने कहा है कि इंडिया टीम है,पीडीए रणनीति। जीत का हमारा यह नया फार्मूला सफल साबित हुआ है। अब माना जा रहा है कि अखिलेश यादव इस फार्मूले पर और मजबूती के साथ काम करेंगे और इस कारण 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।



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