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गोमती रिवर फ्रंट घोटाला- क्या अपने ही बुने जाल में फंस जाएंगे राहुल भटनागर

Rishi
Published on: 11 Aug 2017 2:11 PM GMT
गोमती रिवर फ्रंट घोटाला- क्या अपने ही बुने जाल में फंस जाएंगे राहुल भटनागर
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योगेश मिश्र

लखऩऊ। पूर्व मुख्य सचिव राहुल भटनागर अपने ही बुने जाल में उलझते नज़र आ रहे हैं। आलोक सिंह और खन्ना कमेटी मार्फत रिवर फ्रंट के मामले में अपने पूर्ववर्ती मुख्य सचिव आलोक रंजन को लपेटे में लेने के दांव से उपजी दिक्कतें अब उनके गले पड़ गयी हैं।

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आलोक सिंह कमेटी आंशिक रुप से ही सही आलोक रंजन का नाम रिवर फ्रंट के मामले में जिक्र भी किया था पर खन्ना कमेटी की रिपोर्ट ने तो आलोक सिंह कमेटी की उन सिफारिशों को गौर करने लायक भी नहीं समझा। बावजूद इसके आलोक रंजन के खिलाफ विभागीय जांच की संस्तुति करके केंद्र सरकार से अनुमति के लिए पत्र राहुल भटनागर ने भेज दिया था। लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी संस्तुति को मानने से इनकार कर दिया है। इस तरह एक तरफ आलोक रंजन को इस प्रकरण में फंसाने की उनकी कोशिश नाकामयाब हुई तो दूसरी तरफ इसकी सीबीआई जांच की सिफारिश ने सबसे अधिक दिक्कत राहुल भटनागर और दीपक सिंघल के सामने ही खड़ी की है।

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राहुल भटनागर इस प्रकरण से लगातार जुड़े रहने वाल इकलौते अफसर है। पहले उनकी संबद्धता प्रमुख सचिव वित्त के तौर पर तथा व्यय वित्त समिति के पदेन अध्यक्ष के नाते रही बाद में मुख्य सचिव बनने पर वे इस परियोजना के मानिटरिंग कमेटी के सर्वेसर्वा थे। आलोक रंजन की इस प्रकरण में संबद्धता सिर्फ मुख्य सचिव के रुप में मानिटरिंग कमेटी के सर्वेसर्वा के नाते थी। यही नहीं आलोक रंजन के कार्यकाल में व्यय हुई धनराशि से अधिक धनराशि राहुल भटनागर के मुख्य सचिव के छोटे से कालखंड में खर्च हुई।

भरोसेमंद सूत्रों की माने तो प्रमुख सचिव सिंचाई के पद पर रहते हुए दीपक सिंघल व्यय वित्त समिति में हर छोटे बड़े खर्च का ब्यौरा रखा था। समिति ने थोड़े बहत संशोधनों के साथ धनराशि व्यय करने की अऩुमति भी दे दी थी। आमतौर पर किसी भी सेवानिवृत अफसर की विभागीय जांच नहीं होती। कुछ इसी चतुर सुजान की समझ के चलते खन्ना कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में आलोक रंजन के खिलाफ शिथिल मानिटरिंग के कारण विभागीय जांच की सिफारिश की थी। खन्ना कमेटी की रिपोर्ट पर यकीन करें तो उसने कम से कम इतने दंड से राहुल भटनागर को भी बरी नहीं किया था।

सेवानिवृत अफसर के खिलाफ जांच अतिविशिष्ट स्थिति में तभी संभव है जब उस पर गबन के आरोप हो। इसके लिए बाकयदा केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय से अनुमति लेनी पड़ती है। राष्ट्रपति की सहमति की दरकार होती है। आलोक रंजन के खिलाफ भेजी गयी विभागीय जांच की अनुमति का पत्र पिछले दिनों कार्मिक मंत्रालय तमाम आपत्तियों के साथ खारिज कर दिया गया है।ऐसे में जब शुक्रवार को शुरुआती जांच के मद्देनजर जांच टीम जब गोमती तट पर पहुंची तो एक बार फिर आला हुकुमरानों के फंसने फंसाने के चर्चे तेज हो गये हैं।

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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