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Gomti River Front Scam: Newstrack Exclusive- आलोक रंजन व दीपक सिंघल के खिलाफ जाँच की माँग, राहुल भटनागर पर सीबीआई की चुप्पी ने पर उठाये सवाल

Lucknow: गोमती रिवर फ़्रंट घोटाले की जांच कर रही सीबीआई की टीम ने आलोक रंजन व दीपक सिंघल के खिलाफ जांच करने की मंज़ूरी मांग कर इस मामले को लेकर कई नये सवाल खड़े कर दिए हैं।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 26 Jun 2022 8:36 PM IST
Lucknow News In Hindi
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गोमती रिवर फ़्रंट घोटाले। (Social Media)

Lucknow: गोमती रिवर फ़्रंट घोटाले(Gomti River Front Scam) की जांच कर रही सीबीआई की टीम (CBI Team) ने राज्य सरकार से दो पूर्व मुख्य सचिवों-आलोक रंजन (Alok Ranjan) व दीपक सिंघल (Deepak Singhal) के खिलाफ जांच करने की मंज़ूरी मांग कर इस मामले को लेकर कई नये सवाल खड़े कर दिए हैं। सीबीआई की जांच की मांग यह चुग़ली कर रही है कि उसकी जाँच जस्टिस आलोक सिंह (Justice Alok Singh) की अगुवाई में हुई जाँच के नक़्शे कदम पर चल रही है। रिवर फ़्रंट घोटाले के दौरान आलोक रंजन के पास बतौर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री की स्वप्निल परियोजनाओं के अनुश्रवण का काम था। दीपक सिंघल ज़रूर बतौर सिंचाई महकमे के चीफ़ व मुख्य सचिव दोनों स्तरों पर इस परियोजना से जुड़े रहे। पर रिवर फ़्रंट परियोजना के शुरू होने से ख़त्म हो पाने के ठीक पहले तक राहुल भटनागर (Rahul Bhatnagar) दो महत्वपूर्ण पदों पर रहे पर उनके सवाल पर सीबीआई चुप है?

परियोजना में राहुल भटनागर के कार्यकाल में 8 सौ करोड़ रुपये पर हुए व्यय

इस परियोजना की सारी धनराशि व्यय वित्त समिति से अनुमोदित हुई थी। इस समिति के अध्यक्ष प्रमुख सचिव वित्त होते हैं। उन दिनों राहुल भटनागर (Rahul Bhatnagar) इस पद पर क़ाबिज़ थे। दस्तावेज बताते हैं कि रिवर फ़्रंट परियोजना का एक एक आइटम इस समिति से पास हुआ है। दस्तावेजी स्तर पर यह पुख़्ता काम कराने में दीपक सिंघल व तत्कालीन एलडीए उपाध्यक्ष सत्येंद्र यादव ने बड़ी चतुराई से काम लिया। जिस अस्सी करोड़ रूपये के फ़व्वारे को लेकर हाय तौबा मचाई गयी। उसका बजट भी व्यय वित्त समिति ने पास किया है। यही नहीं, इस परियोजना का अनुश्रवण राहुल भटनागर ने बतौर मुख्य सचिव सात माह तक किया। राहुल भटनागर के इस कार्यकाल में 8 सौ करोड़ रुपये इस परियोजना पर व्यय हुए। जबकि आलोक रंजन ने 16 महीने इसका अनुश्रवण किया। इनके समय में इस परियोजना में तकरीबन 650 करोड़ रूपये खर्च हुए थे।

आम तौर पर किसी भी परियोजना के लिए टेक्निकल ऑडिट कमेटी (Technical Audit Committee) बनाई जाती है। जो कार्यों का परीक्षण करती है। पर इस परियोजना के लिए ऐसी कमेटी नहीं गठित की गयी। हद तो यह है कि परियोजना के लिए आवंटित 95 फीसदी धनराशि खर्च होने के बाद भी मात्र 60 फीसदी काम पूरा हो पाया। हर परियोजना में 6.87 फीसदी सेंटेड चार्ज लिए जाने के नियम को भी इस परियोजना में ताक पर रखा गया, जिससे सरकारी खजाने को 100 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाय़ा गया। सेंटेड चार्ज माफ़ करने के लिए सिंचाई विभाग की तरफ़ से दिये गये प्रस्ताव को शासन ने निरस्त कर दिया था। बावजूद इसके केवल 14.42 करोड़ रूपये ही इस मद में जमा हो सके। गैमन इंडिया को फ़ायदा पहुँचाने के लिए कंपनी की अहर्ता को परियोजना के काबिल बनाने के लिए सिमिलर (समान) शब्द हटा दिया गया।

साल 2007 में हिमाचल में ज्वाइंट वेंचर में साथ किया काम

गैमन इंडिया लिमिटेड व पटेल इंजीनियर दो ही फ़र्मों ने टेंडर डाले। जबकि कम से कम तीन टेंडर ज़रूरी है। दोनों कंपनियाँ मुंबई की हैं। साल 2007 में दोनों ने हिमाचल में ज्वाइंट वेंचर में साथ काम किया है। गैमन इंडिया लिमिटेड पश्चिम बंगाल, दिल्ली व राजस्थान में काली सूची में डाल दी गयी थी। यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध थी पर इसकी अनदेखी की गयी। कंपनी को लाभ पहुँचाने के लिए 115.6 करोड़ रूपये की परफ़ॉर्मेंस गारंटी ली ही नहीं गयी। इंटर सेप्टिंग ड्रेन की टेंडर प्रकिया में भी ग़लत तरीक़े आज़माये गये। यह केके स्पन प्राइवेट लिमिटेड को मिला। दूसरा टेंडर ब्रांड ईगल लोगियान का था। जिस कंपनी को काम मिला, उसका पंजीकरण 7 सितंबर, 2015 को हुआ। जबकि टेंडर ख़रीदने की तारीख़ 3 से 5 सितंबर, 2015 थी।

1513.51 करोड़ रुपये के बजट में से 1437.83 करोड़ हो गया खर्च: रिपोर्ट

नियम के मुताबिक 10 फीसदी से अधिक इजाफे में व्यय वित्त समिति से अनुमति लेनी थी जिसके अध्यक्ष तत्कालीन मुख्य सचिव राहुल भटनागर बतौर प्रमुख सचिव वित्त थे। रिपोर्ट के 25 नंबर पेज पर स्पष्ट रूप से अंकित है कि व्यय वित्त समिति ने डायफ्राम वाल के काम के लिए 433.90 करोड़ का बजट आवंटित किया था।

रिपोर्ट बताती है कि 1513.51 करोड़ रुपये के बजट में से 1437.83 करोड़ खर्च हो गया है। सिर्फ 75 करोड़ रुपये बचे हैं जबकि सेंटेज चार्जेज के मद में 71 करोड रूपये की देनदारियाँ है। छह काम जो परियोजना में शुरू ही नहीं किये गये उसके लिए आवंटित 114.58 करोड़ रूपये कहाँ गये यह पता ही नहीं है। परियोजना के गड़बड़ियों की फ़ेहरिस्त तैयार की जाये और सीबीआई ठीक से जाँच करे तो इस में किसी भी अफसर व ठेका लेने वाली कंपनी के बचने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।



Deepak Kumar

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