Gomti Riverfront Scam: आखिर क्या है रिवर फ्रंट घोटाला और क्यों हो रही है इसकी सीबीआई जांच

Gomti Riverfront Scam: 24 नवंबर 2017 को सीबीआई ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी ।

Shreedhar Agnihotri
Written By Shreedhar AgnihotriPublished By Dharmendra Singh
Published on: 5 July 2021 5:24 PM GMT
Gomti River Front Scam
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गोमती रिवर फ्रंट (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

Gomti riverfront scam: पिछली समाजवादी पार्टी की सरकार में कई घोटालों के मामले प्रकाश में आए जिनमें प्रमुख रूप से रिवर फ्रंट घोटाला सबसे बड़ा घोटाला कहा गया है। लखनऊ की गोमती नदी के किनारे बने रिवर फ्रंट को इंग्लैंड की टेम्स नदी के किनारे बने पार्क की तरह बनाया गया था पर इसके बनने के पहले करोड़ों की घोटाले की बात सामने आई जिसमें कई अधिकारियों के तबादले भी हुए।

CM योगी ने जांच के लिए किया आयोग का गठन

इस बीच प्रदेश में आम चुनाव हुए और अखिलेश यादव सत्त से पदच्युत हो गए। इसके बाद भाजपा की सरकार आई और प्रदेश की कमान योगी आदित्यनाथ के हाथ में आ गयी। सरकार बनने के बाद पहला काम योगी सरकार ने यही किया। उन्होंने रिटायर्ड जज आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग का गठन किया। आयोग ने इस मामले में अपनी जांच रिपोर्ट भेजी जिसमें पूरे मामले में कई कमियां पाई गयी। प्रदेश सरकार ने दो कमेटियों से इसकी जांच करायी। दोनों ही जांचों में गोमती रिवर फ्रंट में घोटाले का खुलासा हुआ। पहली जांच रिटायर्ड जस्टिस आलोक सिंह की न्यायिक समिति ने किया।

जांच में वित्तीय अनियिमतताओं के बाद सीबीआई जांच की सिफारिश

आयोगी की तरफ से गई जांच में वित्तीय अनियमितता का मामला सामने आने के साथ ही न्यायिक समिति ने दो आईएएस अधिकारियों सहित कई इंजीनियरों को दोषी ठहराया। इसके बाद आयोग की रिपोर्ट के आधार पर योगी सरकार ने पूरे मामले की सीबीआई जांच के लिए केंद्र को एक पत्र भेजा था। केन्द्र ने इसे स्वीकार करते हुए मामले की सीबीआई जांच कराने के आदेश दिए।

सीबीआई ने पहली एफआईआर 24 नवम्बर 2017 को दर्ज की

इसके बाद 24 नवंबर 2017 को सीबीआई ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी । पूरी जांच में कई अनियिमताएं पाई गयी। इस कथित घोटाले की जांच में यह बात सामने आई कि लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट के लिए तत्कालीन अखिलेश सरकार ने 1513 करोड़ मंजूर किए थे, लेकिन बाद में 1437 करोड़ रुपए जारी होने के बावजूद रिवर फ्रंट का काम पूरा नहीं किया। डिफाल्टर कम्पनियों ने काम पूरा नहीं किया बल्कि 60 प्रतिशत काम किया है। जांच में पाया गया कि ठेका एक डिफॉल्टर कंपनी को दे दिया गया। साथ ही टेंडर की शर्तों में बदलाव किया गया औरा पूरे प्रोजेक्ट में करीब 800 टेंडर निकाले गए थे।


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