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गोंडा देश में सबसे गंदा, सीवर लाइन स्वच्छता और सडक़ें मुद्दा

raghvendra
Published on: 24 Nov 2017 3:51 PM IST
गोंडा देश में सबसे गंदा, सीवर लाइन स्वच्छता और सडक़ें मुद्दा
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तेज प्रताप सिंह

गोंडा। भारत सरकार द्वारा 434 शहरों व नगरों में कराए गए स्वच्छता सर्वेक्षण में गोंडा सबसे आखिरी पायदान पर है। जबकि बीते पांच साल में शहर को सजाने-संवारने के नाम पर 100 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर दिए गए। पर शहर की सूरत नहीं बदल सकी। इतना बड़ा बजट कहां खर्च हो गया। यह सोचनीय है। शहर के लगभग सभी मोहल्लों में नाली चोक है, तो कहीं नाले का ही पता नहीं है। शहर में न तो कचरे के भंडारण की कोई जगह है और न ही उसके निस्तारण की व्यवस्था। शहर में सीवर लाइन न होने से जल निकासी का मुकम्मल इंतजाम नहीं है। सडक़ों के मामले में तो इस जिले की स्थिति सबसे दयनीय है।

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नगर पालिका गोंडा में तैनात 204 नियमित व 168 ठेके के सफाईकर्मियों के वेतन पर हर महीने तकरीबन 66 लाख रुपये खर्च होते हैं। बावजूद इसके शहर की साफ-सफाई की व्यवस्था लोगों को मुंह चिढ़ाती नजर आती है। इन सफाईकर्मियों में 50 से अधिक ऐसे है, जो अफसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा लगाने से लेकर खाना बनाने तक का काम करते हैं।

स्थानीय निकाय के बीते दो कार्यकालों के दौरान 10 में से 8 साल तक नगर पालिका की जिम्मेदारी बतौर प्रशासक एडीएम के ही हाथ में रही है। इस दौरान नगर विकास के जो भी फैसले हुए, वह एडीएम ने ही किए। लेकिन गोंडा शहर के लोगों के लिए यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि दोनों कार्यकालों में उनके शहर को साफ-सुंदर बनाने का कोई एक काम नगर पालिका प्रशासन नहीं कर सका।

27 वार्डों में 10 साल पहले तक दो दर्जन बड़े नाले हुआ करते थे। इनसे शहर का सारा गंदा पानी तालाबों के मार्फत बिसुही नदी में चला जाता था। लेकिन आज ज्यादातर नालों पर दुकान व मकान खड़े हो गए हैं। नतीजतन घरों का गंदा पानी सडक़ों पर ही भरने लगता है।

शहर से गंदे पानी के निकासी की कोई व्यवस्था न होने से आज भी यहां मैला खुली नालियों में बहता है। ज्यादातर मोहल्लों में लोगों ने घरों में सेप्टिक टैंक नहीं बनवाए हैं। इसलिए उनके घरों से निकलने वाला मैला नालियों के रास्ते ही नालों में जाता है।

पांच साल पहले जहां सूबे की सत्ता पर समाजवादी पार्टी का राज था, तो वहीं अब भाजपा काबिज है। लेकिन दोनों ही सरकारों में रहे जिले के जनप्रतिनिधियों की भूमिका शुरू से ही स्वच्छता मिशन के प्रति उदासीन ही रही है। फिर चाहे वह सूबे की सरकार में पंडित सिंह रहे हों या फिर केन्द्र सरकार में कीर्तिवर्धन सिंह, बृजभूषण शरण सिंह। हालांकि, अब सूबे की सरकार में गोंडा की सातों सीटों पर भाजपा का कब्जा है। बावजूद इसके स्वच्छता अभियान को लेकर कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहा।

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा गोंडा में सीवर लाइन के लिए 325 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट बनाकर नीति आयोग के पास भेजा गया था। सूत्रों के मुताबिक इस प्रोजेक्ट पर अगले कुछ दिनों में नीति आयोग फैसला कर सकता है। बावजूद इसके इस प्रोजेक्ट को लेकर न तो अधिकारी संजीदा हैं, न ही हमारे जिले के जनप्रतिनिधि।

जिले की सडक़ों का तो और भी बुरा हाल है। किसी ओर से यहां आएं जिले की सीमा में घुसते ही खस्ताहाल रोड गोंडा जिले का एहसास करा देतीं हैं। सर्वाधिक दयनीय स्थिति गोंडा लखनऊ मार्ग की है। कभी टूलेन कभी फोर लेन के सब्जबाग दिखाकर सरकारें जनमानस को छलने का काम कर रहीं हैं। यह सडक़ कब बनेगी यह बता पाना प्रशासनिक अफसरों के लिए भी कठिन है। इसके साथ ही जनपद में जर्जर सडक़ों की लम्बी फेहरिस्त है।

सांसद निधि की स्थिति

सांसद गोंडा-कीर्तिवर्धन सिंह-2014 से अब तक मिले 15 करोड़ में से 80 फीसदी खर्च

सांसद कैसरगंज-बृज भूषण शरण सिंह-2014 से अब तक मिले 15 करोड़ में से 85 फीसदी खर्च

विधायक निधि की स्थिति

सभी विधायकों को 1.50 करोड़ मिले हैं, जिसमें मनकापुर के विधायक रमापति शास्त्री ने 70 फीसदी तथा अन्य सभी ने औसतन 50 फीसदी खर्च किया है।

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जिले के पिछड़ेपन पर जनप्रतिनिधि ओर नागरिकों के बोल

जिले के पिछड़ेपन पर सांसद और विधायकों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से गैर भाजपा सरकारों की उपेक्षा और लूअ खसोट के चलते ही अपेक्षित विकास नहीं हो पाया।

अब जब केन्द्र में नरेन्द्र मोदी और प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा सरकार तेजी से विकास कर रही है। तो जल्द ही गोंडा जिले का विकास हो जाएगा और यहां के लोगों को सडक़, सीवर और स्वच्छता समेत अनेक समस्याओं से निजात मिलेगी। जबकि जिले के आम जनमानस का कहना है कि हर बार जनप्रतिनिधि और सरकारों द्वारा वादा खिलाफी कर जन विश्वास को छला जाता है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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