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Gonda News: दुनिया में बज रहा जिस योग का डंका, उनके जन्मदाता का ऐसा हाल

Gonda News : योग एक ऐसी विधा है जिसका अभी तक धार्मिक आधार पर कोई बटवारा नहीं है।

Mahendra Tiwari
Report Mahendra TiwariPublished By Shraddha
Published on: 21 Jun 2021 12:38 PM IST (Updated on: 22 Jun 2021 7:57 PM IST)
धार्मिक आधार पर कोई बटवारा नहीं है
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योग जनक महर्षि पतंजलि 

Gonda News: योग एक ऐसी विधा है जिसका अभी तक धार्मिक (Religious) आधार पर कोई बटवारा नहीं है। लगभग सभी जाति धर्म (caste religion) के लोग इसका हिस्सा बन चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के आवाहन के बाद लोगों में इसका तेजी से असर हुआ है । फिर भी प्रशासनिक उपेक्षाओं के चलते ऐसी विधा के जनक महर्षि पतंजलि (Father Maharishi Patanjali) की जन्मस्थली आज भी उपेक्षित है । यही नहीं बल्कि उनके नाम पर बना एक बड़ा सा चबूतरा खंडहर में तब्दील होता जा रहा है । बगल में एक छोटा सा मंदिर भी विद्यमान है । करीब 10 वर्ष पूर्व जनपद के शहीदे आजम सरदार भगत सिंह इंटर कॉलेज के प्रांगण में एक योग शिविर का उद्घाटन करने आए योग गुरु बाबा रामदेव को जब लोगों द्वारा बताया गया कि वजीरगंज कस्बा स्थित कोडर झील के पास महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली है ।

मान्यता है कि योग के जनक महर्षि पतंजलि पर्दे के पीछे से यहां पर अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे । योग गुरु वहां जाना चाहते थे लेकिन कुछ अड़चन पड़ जाने के कारण वह नहीं जा सके । पतंजलि जन्मभूमि न्यास के संस्थापक डॉ स्वामी भागवताचार्य ने बताया उस समय बाबा रामदेव ने 70 × 40 का एक बड़ा सा हाल बना कर उसमें महर्षि पतंजलि की प्रतिमा स्थापित करने की बात कही थी । लेकिन योग गुरु यह बात भूल गए ।

उन्होंने कहा कि वह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र संघ के अध्यक्ष सहित प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर महर्षि पतंजलि के जन्मस्थली का पर्यटन विकास व अंतरराष्ट्रीय योग विश्वविद्यालय खोलने की मांग उठाई थी । उनके पत्र पर प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा गंभीरता से लेते हुए आयुष मंत्रालय को अंतरराष्ट्रीय योग विश्वविद्यालय का मसौदा तैयार करने के लिए कहां गया था । बाद में मंत्रालय ने उन्हें पत्र भेजकर यह कहकर मामले को टाल दिया की उनके यहां विश्वविद्यालय खोलने का कोई प्रावधान नहीं है ।

जनक महर्षि पतंजलि

इस समय पूरी दुनिया ने योग के महत्व को स्वीकार किया है। वहीं योग को पूरे समग्र विश्व में विख्यात करने वाले महर्षि पतंजलि की भूमि त्राहि त्राहि कर रही है। दुनिया के सभी देशों में योग का डंका बजाने वाले कि जन्मस्थली आज भी योग और विकास से महरूम है और अगर इस पावन धरती तक पहुंचना है तो दर्शनार्थियों को बीहड़ रास्तो को पार कर इस जगह पर आना पड़ता है। सबसे चौकाने वाली बात तो यह है कि जिस योग के नाम पर व पतंजलि ऋषि के नाम पर बाबा रामदेव हजारों करोड़ का व्यापार कर रहे हैं। उन महात्मा की पुण्य भूमि को उत्तर प्रदेश सरकार पर्यटन स्थल भी घोषित न कर सकी ।

कैसे हुआ जन्म

ऋषि पतंजलि की माता का नाम गोणिका था। इनके पिता के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पतंजलि के जन्म के विषय में ऐसा कहा जाता है कि यह स्वयं अपनी माता के अंजुली के जल के सहारे धरती पर नाग से बालक के रूप में प्रकट हुए थे। माता गोणिका के अंजुली से पतन होने के कारण उन्होंने इनका नाम पतंजलि रखा। ऋषि को नाग से बालक होने के कारण शेषनाग का अवतार भी माने जाता है।

गोंडा के कोडर गांव में जन्मे थे योग के जनक

बताते चलें कि महर्षि पतंजलि सिर्फ सनातन धर्म ही नहीं आज हर धर्मो के लिए पूज्य हैं। जिनके बताए योग के सूत्र से आज कितने लोगों ने असाध्य रोगों से मुक्ति पा ली और जिस अमृत को देवताओं ने अपने पास सम्भाल के रखा उस अमृत स्वरूपी योग को पूरी दुनिया में बांटने वाले महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली जनपद के वजीरगंज विकासखंड के कोडर गांव में स्थित है। महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली का साक्ष्य धर्मग्रंथों में भी मौजूद है। इस बात का प्रमाण पाणिनि की अष्टाध्यायी महाभाष्य में मिलता है। जिसमें पतंजलि को गोनर्दीय कहा गया है जिसका अर्थ है गोनर्द का रहने वाला। और गोण्डा जिला गोनर्द का ही अपभ्रंश है। महर्षि पतंजलि का जन्मकाल शुंगवंश के शासनकाल का माना जाता है। जो ईसा से 200 वर्ष पूर्व था। महर्षि पतंजलि योगसूत्र के रचनाकार है इसी रचना से विश्व को योग के महत्व की जानकारियां प्राप्त हुई। ये महर्षि पाणीनी के शिष्य थे।

एक जनश्रुति के अनुसार महर्षि पतंजलि अपने आश्रम पर अपने शिष्यों को पर्दे के पीछे से शिक्षा दे रहे थे । किसी ने ऋषि का मुख नहीं देखा था। लेकिन एक शिष्य ने पर्दा हटा कर उन्हें देखना चाहा तो वह सर्पाकार रूप में गायब हो गये। लोगों का मत है की वह कोडर झील होते हुए विलुप्त हुए। यही कारण है कि आज भी झील का आकार सर्पाकार है। योग विद्या जिसको आज अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिल चुकी है फिर भी योग के प्रेरणा स्त्रोत पतंजलि की जन्मस्थली गुमनाम है। बताया जाता है कि जन्मस्थली के नाम पर सिर्फ एक चबूतरा विद्यमान है। महर्षि पतंजलि अपने तीन प्रमुख कार्यो के लिए आज भी विख्यात हैं व्याकरण की पुस्तक महाभाष्य, पाणिनि अष्टाध्यायी व योगशास्त्र कहा जाता है कि महर्षि पतंजलि ने महाभाष्य की रचना का काशी में नागकुआँ नामक स्थान पर इस ग्रंथ की रचना की थी। आज भी नागपंचमी के दिन इस कुंए के पास अनेक विद्वान व विद्यार्थी एकत्र होकर संस्कृत व्याकरण के संबंध में शास्त्रार्थ करते हैं महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ है परंतु इसमें साहित्य धर्म भूगोल समाज रहन सहन से संबंधित तथ्य मिलते है।

बताया जाता है सवा दो बीघा जमीन मंदिर के नाम पर है। इस पर भी कई जगहों पर अतिक्रमण है। यहाँ के पुजारी रमेश दास इस मंदिर की देख रेख व पूजा पाठ करते हैं। उनके मुताबिक इस स्थल की शासन प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक ने इसके लिए कोई आवाज नहीं उठाई। विगत कुछ वर्षों पूर्व वर्तमान के योग गुरु कहे जाने वाले बाबा रामदेव के गोंडा आगमन पर कुछ विद्वानों ने पतंजलि जन्मस्थली की विषय में बताया था। जबकि उनकी संस्था पतंजलि योगपीठ आज उन्ही के नाम पर विश्वविख्यात है और स्वदेशी के नाम पर अरबो रुपये का व्यापार भी होता है। फिर भी जन्मस्थली का कोई पुरसाहाल लेने वाले नहीं है। पतंजलि जन्मभूमि न्यास के संस्थापक इस स्थली को जागृत रखने के लिए वह प्रति वर्ष अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर इस स्थल पर विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन करते है। ताकि महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि हमारी युवा पीढ़ी भूल न जाये।



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