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किसान पौध के लिए ऐसे खेत चुने जहां सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो: डॉक्टर राव
धान का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसानों को अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित किस्मों का चयन करना चाहिए
अयोध्या। धान का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए स्वस्थ एवं निरोगी पौध तैयार करना अति आवश्यक है। इसके साथ ही अनुकूलतम आयु की पौध की रोपाई करके धान की फसल से भरपूर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज ने किसानों के लिए जानकारी प्रदान किया है। जिसमें साधारणतया संकर धान की नर्सरी 18-21 दिन मेें तथा सामान्य प्रजातियों की नर्सरी 22-25 दिन में तैयार हो जाती है। नर्सरी के 12 से 14 दिन पर यदि रोपाई कर दी जाय तो पौधों में कल्लों की संख्या अधिक बनती है, जो उत्पादन बढ़ाने में सहायक होती है। यहां यह कहना आवश्यक है कि नर्सरी की उम्र जितनी कम होगी, कल्लों की संख्या में उतनी ही अधिक वृद्धि होगी। यह तथ्य धान की प्रगाढ़ता तकनीक (श्री पद्धति) से बिलकुल साफ हो गया है। इस पद्धति में 10-12 दिन की पौध का प्रयोग किया जाता है, कल्लों की संख्या में आशातीत बढ़ोत्तरी होती है और उत्पादन में भी 30-50 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
विश्वविद्यालय के प्रसार निदेशक डॉक्टर ए पी राव ने बताया कि एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए सामान्य प्रजातियों के लिए 650-700 वर्ग मीटर तथा संकर प्रजातियों के लिए 800-850 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की नर्सरी की आवश्यकता होती है। पौध (नर्सरी) तैयार करने के लिए ऐसे खेत का चुनाव करें जहां पर सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो। दो दिन के अंतराल पर दो सूखी जुताई करें, इसके बाद पानी भरकर जुताई करें ताकि खेत में लेव बन जाय जो कि पौधे को रोपाई के लिए उखाड़ने में मदद करता है तथा जड़ को नुकसान नहीं पहुचता है। सड़ी गोबर की खाद या हरी खाद जो भी उपलब्ध हो पहली या दूसरी जुताई करते समय अच्छी तरह खेत में मिला देना चाहिए। अंतिम जुताई के समय 650-700 वर्ग मीटर नर्सरी क्षेत्र में 4.0 किग्रा0 यूरिया, 10.0 किग्रा0 सिंगल सुपर फास्फेट, 5.0 किग्रा0 म्यूरेट आॅफ पोटाश तथा 2.0 किग्रा0 जिंक सल्फेट को मिला देना चाहिए।
क्षेत्र विशेष के अनुसार बीज शोधन कार्य नर्सरी डालने से पहले करें। जहां जीवाणु झुलसा व जीवाणु धारी रोग की समस्या हो वहां पर 25 किग्रा0 बीज के लिए 4.0 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या 40.0 ग्राम प्लान्टोमाइसिन को 45 लीटर पानी में मिला कर रात भर भिगो दें। दूसरे दिन छाया में सुखाकर नर्सरी में डालें। शाकाणु झुलसा की समस्या होने पर 25 किग्रा0 बीज को रात भर पानी में भिगोने के बाद दूसरे दिन निकाल कर अतिरिक्त पानी निकल जाने के बाद 75 ग्राम थाइरम या 50 ग्राम कार्बेन्डाजिम को 10 लीटर पानी में घोलकर बीज में मिला दें। इसके बाद छाया में सुखाकर अंकुरित करके नर्सरी डालें। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई के लिए महीन धान का 30 किग्रा0, मध्यम धान का 35 किग्रा0 तथा मोटे धान का 40 किग्रा0 बीज पौध तैयार करने हेतु पर्याप्त होता है। बीज को कम से कम 12 घंटे तक पानी में थैली सहित भिगों दे, अतिरिक्त पानी निकल जाने के बाद उपर्युक्तानुसार बीज शोधन कार्य अवश्य कर लेना चाहिए। तत्पश्चात बीज को छायाकार स्थान पर रख दें। उसके ऊपर टाट को भिगोकर ढक दें तथा थोड़े-थोड़े अंतराल पर नमी देते रहें। 15-20 घंटे बाद बीज अंकुरित हो जायेगा, उसके बाद नर्सरी बेड में बुवाई करें, तथा 2-3 सेमी0 पानी भर कर रखें। ध्यान रहे कि बीज की बुवाई सायं 4 बजे के बाद करें ताकि यदि तापमान एवं धूप बहुत अधिक हो तो दिन में नर्सरी में पानी भरा न रहने दें। यदि पानी गर्म होगा तो अंकुरण नष्ट हो जायेगा तथा जमाव प्रभावित होगा, परन्तु खेत में नमी का रहना नर्सरी के लिए आवश्यक है।
तीन-चार पत्तियों वाली पौध रोपाई के लिए उपयुक्त होती है। किसानों को चाहिए कि रोपाई के समयानुसार अलग-अलग समय में नर्सरी की बुवाई की योजना बनायें। नर्सरी तैयार होने के 6-7 दिन के भीतर रोपाई अवश्य कर लें। एक स्थान पर 2-3 पौध लगायें। प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल में 50 हिल अवश्य हो। स्वस्थ एवं निरोगी पौधों की रोपाई कर अपने खेतों से भरपूर पैदावार लेने की आधारशिला रखें। जिन क्षेत्रों में झूठा कण्डुआ रोग (अगिया रोग) गत वर्ष अधिक प्रभावित किया हो, वहां रोपाई से पूर्व पौध को कार्बेन्डाजिम अथवा प्रोपीकोनाजोल फफूंदनाशी नामक रसायन से पौध को उपचारित अवश्य कर लें।
फसल उत्पादन में उन्नतशील प्रजातियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। किसान जानकारी के अभाव में सही बीज का चुनाव नहीं कर पाते हैं, इससे खेती की लागत में वृद्धि तो होती ही है, साथ ही उत्पादन पर असर भी पड़ता है। किसान दुकानदार के कहने पर ही धान के प्रजाति चुनता है, जबकि प्रदेश में अलग-अलग क्षेत्र के हिसाब से विभिन्न संस्थानोंध्विश्वविद्यालयों द्वारा शोध के उपरान्त धान की किस्मों को विकसित किया जाता है, क्योंकि हर जगह की मृदा, जलवायु अलग तरह का होता है। किसानों को अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित किस्मों का चयन करना चाहिए, जिससे सही उपज मिल पाए। क्षेत्र की जलवायु, प्रक्षेत्र की मृदा एवं सिंचाई जल की उपलब्धता के आधार पर रोग प्रतिरोधी धान की किस्मों का चयन करना चाहिये। रोगरोधी किस्मों में रोग नहीं लगते है जिससे उनके नियंत्रण के लिये रासायनिक दवाओं की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिये दवाओं के दुष्प्रभाव एवं अतिरिक्त खर्च से भी बचत होती है उपरिहार प्रक्षेत्रों पर शीघ्र पकने वाली किस्में जैसे-नरेन्द्र धान 97, नरेन्द्र धान 118, आई आर 36, पन्त धान 12, शुष्क सम्राट, नरेन्द्र लालमती, जो कि 90 से 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं, का चुनाव करें।
सामान्य प्रक्षेत्रों पर मध्यम अवधि की किस्में सरजू 52, नरेन्द्र 359, नरेन्द्र धान 8002, पन्त धान 4, पी.एन.आर. 381, नरेद्र धान 2026, नरेद्र धान 2064, नरेन्द्र धान 2065, नरेन्द्र धान 3112-1 आदि, जो कि 120 से 140 दिन में पक कर तैयार हो जाती है, का चुनाव करें। निचले प्रक्षेत्रों में लम्बी अवधि की प्रजातियाॅ जैसे सॉभा महसूरी (बी0पी0टी0 5204), स्वर्णा (एम0टी0यू0 7029), स्वर्णा सब-1, सॉभा सब-1, इम्प्रूव्ड सॉभा महसूरी, जल लहरी, नरेन्द्र धान 8002, नरेन्द्र नारायणी, नरेन्द्र मयंक, एन.डी.जी.आर. 201 आदि प्रजातियों का चुनाव करें। सुगन्धित धान की क्षेत्र हेतु प्रजातियां टा 3, बासमती 370, पूसा बासमती 1, हरियाणा बासमती, नरेन्द्र लालमती, वल्लभ बासमती, मालवीय सुगन्ध 43, मालवीय सुगन्ध 105, नरेन्द्र सुगन्ध प्रमुख है। ऊसरीली भूमि हेतु धान की प्रजाति ऊसर धान 1, सी.एस.आर. 13, सी.एस.आर. 10, नरेन्द्र ऊसर धान 2008 एवं नरेन्द्र ऊसर धान 2009 प्रमुख हैं। पूर्वी उत्ती प्रदेश हेतु विकसित संकर धान की प्रजातियाॅ पन्त संकर धान 1, नरेन्द्र संकर धान 2, पी.एच.बी. 71, प्रो एग्रो 6201 एराइज, प्रो एग्रो 6444 एराइज, सवा 127, पी.ए.सी. 835, 837, नरेन्द्र ऊसर संकर धान 3, सहयाद्रि 4, एच.आर.आई. 157, एराइज प्राइमा, यू.एस. 312, एराइज 6644 गोल्ड, 27 पी. 63 एवं 27 पी. 31 प्रमुख हैं।
किसानों को अपने क्षेत्र के अनुसार विकसित किस्मों का चयन करना चाहिए, जिससे सही उपज प्राप्त हो सके। चयनित किस्मों का प्रमाणित बीज हमेशा किसी विश्वसनीय संस्थान से ही खरीदना चाहिए। आचार्य नरेन्द्र देव कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति विजेंद्र सिंह नेे बताया पूर्वी उत्तर प्रदेश हेतु विकसित संस्तुत प्रजातियों का बीज बिक्री हेतु उपलब्ध है एवं बीज गोदामों से विक्रय किया जा रहा है। पूर्वान्चल के समस्त कृषि विज्ञान केन्द्रों, राष्ट्रीय एवं राज्य संस्थानों एवं कृषि विभाग के बीज गोदामों पर क्षेत्र के हिसाब से धान की प्रजातियों के बीज उपलब्ध है, जहां से किसान भाई बीज क्रय कर धान की उत्पादकता में वृद्धि कर आय संवर्धन कर सकते हैं।