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योगी आदित्यनाथ के असर व गठबंधन के बल की परीक्षा

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Published on: 28 Dec 2018 12:08 PM IST
योगी आदित्यनाथ के असर व गठबंधन के बल की परीक्षा
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योगी आदित्यनाथ के असर व गठबंधन के बल की परीक्षा

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर। लोकसभा चुनाव को अब महज कुछ महीने ही बाकी है। गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ सीटें योगी इफेक्ट के चलते काफी अहम हैं। लोकसभा चुनाव की पिच पर उतरने से पहले सभी राजनीतिक दल होमवर्क करने में जुटे हुए हैं। जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवारों की तलाश के बीच योगी के जादू, गठबंधन के बल और कांग्रेसी दांव के बीच शिवपाल यादव की पार्टी काफी अहम हो गई है।

सपा-बसपा के गठबंधन की आहट के बीच भाजपा के पास गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ लोकसभा सीटों पर मोदी मैजिक को दुहराने की चुनौती है तो गठबंधन को यह बताने की चुनौती है कि गोरखपुर उपचुनाव में मिली जीत तीर-तुक्का नहीं थी। गठबंधन की तस्वीर साफ नहीं होने से कांग्रेसियों में भी बेचैनी है।

सपा-बसपा गठबंधन का सियासी टेस्ट गोरखपुर और फूलपुर के चुनाव में हो चुका है। बसपा की सक्रिय भूमिका के बिना मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के गढ़ में मिली जीत को दिग्गज सटीक फार्मूला मान रहे हैं, लेकिन जानकारों की मानें तो उपचुनाव और आम चुनाव के राजनीतिक माहौल में मेल करना सियासी भूल होगी। बहरहाल, सपा-बसपा गठबंधन के कयासों के बीच जो बातें छनकर आ रही हैं, उसके मुताबिक 2014 चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने वाली पार्टी के उम्मीदवार को टिकट मिल सकता है। गोरखपुर में उपचुनाव की जीत के चलते तस्वीर दूसरी है, लेकिन गोरखपुर-बस्ती मंडल की अन्य 8 सीटों पर दूसरे नंबर पर रहने वाली पार्टी के नेता खुद की दावेदारी मजबूत मान रहे हैं। आठ सीटों पर बसपा की दावेदारी मजबूत दिख रही है। बसपा बांसगांव, महराजगंज, देवरिया, संतकबीर नगर, डुमरियागंज और सलेमपुर में दूसरे स्थान पर थी तो गोरखपुर, बस्ती सीट पर सपा प्रत्याशी जीते प्रत्याशी के नजदीकी मुकाबले में थे। वहीं कुशीनगर में पूर्व केन्द्रीय मंत्री कुंवर आरपीएन सिंह नजदीकी मुकाबले में हारे थे। गठबंधन के फार्मूले से कांग्रेस बाहर रहती है तो यहां भी बसपा की दावेदारी दिख रही है। कुल मिलाकर कयासों के मुताबिक सीट बंटवारा हुआ तो गोरखपुर और बस्ती मंडल की 9 सीटों में से 7 बसपा और दो सपा को मिल सकती हैं।

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शिवपाल यादव की पार्टी बिगाड़ेगी कई लोगों का खेल

सूबे के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक परिवार में टूट के बाद शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया नाम से पार्टी बना ली है। शिवपाल विपक्ष के गठबंधन में शामिल नहीं हुए तो पूर्वांचल की सीटों पर बसपा-सपा को खासा नुकसान पहुंचाएंगे। दरअसल, गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ सीटों में से 7 पर पिछले चुनाव में बसपा दूसरे नंबर थी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नजदीकी हार वाले प्रत्याशी को तरजीह मिली तो सपा को दोनों मंडलों में सिर्फ दो सीटें ही मिलेंगी। ऐसे में सपा के टिकट पर तैयारी कर रहे दिग्गजों के लिए शिवपाल की पार्टी उम्मीद की किरण बनकर उभरेगी। टिकट नहीं मिलने की स्थिति में कुशीनगर में पूर्व मंत्री राधेश्याम सिंह, देवरिया में बालेश्वर यादव, महराजगंज में कुंवर अखिलेश सिंह और अजीत मणि त्रिपाठी, संतकबीर नगर में भालचंद यादव, बस्ती में राज किशोर सिंह शिवपाल की पार्टी से चुनाव लड़ते दिखें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। राजनीति की समझ रखने वालों का कहना है कि बसपा-सपा के गठबंधन में बसपा का वोट को सपा को आसानी से शिफ्ट हो जाएगा, लेकिन बसपा उम्मीदवारों को यादवों का समर्थन मिलना आसान नहीं होगा। ऐसे में सपा-बसपा गठबंधन से सपा भले ही फायदे में रहे, बसपा को नुकसान झेलना पड़ सकता है।

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आसान नहीं होगा गोरखपुर में योगी को हराना

प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ के गढ़ में गठबंधन के पास उपचुनाव का जादू बरकरार रखना आसान नहीं है। तब की परिस्थिति और अब के बदले हालात को देख गोरखपुर की सीट खुद योगी आदित्यनाथ के लिए प्रतिष्ठा की सीट होगी। अति आत्मविश्वास में पार्टी की हार का मुंह देखने वाले योगी आदित्यनाथ इस बार विरोधियों को कोई छूट देने नहीं देना चाहते हैं। योगी गोरखपुर सीट से खुद लड़ें या फिर किसी दूसरे को मैदान में उतारें, भाजपा प्रत्याशी की जीत या हार का सेहरा मुख्यमंत्री के सिर ही बंधना हैं। वैसे देश के मुद्दों पर होने वाले इस चुनाव में योगी आदित्यनाथ को मात देना आसान नहीं होगा, भले ही गठबंधन में कांग्रेस भी क्यों न शामिल हो जाए। विपक्ष के सामने फिलहाल कोई चेहरा भी नजर नहीं आ रहा है। उपचुनाव में जीत हासिल करने वाले सपा सांसद प्रवीण निषाद की विभिन्न मुद्दों पर निष्क्रियता उनकी कार्यशैली और दावेदारी पर सवाल खड़े कर रही है।

बांसगांव में कमलेश की गुमशुदगी को लेकर लगे पोस्टर

बांसगांव लोकसभा सीट से भाजपा सांसद कमलेश पासवान के जीत की हैट्रिक के दावों के बीच स्थानीय जनता सांसद की गुमशुदगी के पोस्टर से लेकर पुतला दहन का कार्यक्रम कर रही है। जमीन की धोखाधड़ी का मुकदमा झेल रहे कमलेश को लेकर मुश्किल में फंसा भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बांसगांव में कोई नया चेहरा न उतार दे तो आश्चर्य नहीं होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कमलेश की पहले जैसी नजदीकियां भी नहीं रह गई हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने वाली बसपा यहां से टिकट की दावेदारी कर रही हैं। पूर्व मंत्री सदल प्रसाद टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल होती है तो युवा चिकित्सक डॉ.संजय कुमार भी चेहरा हो सकते हैं।

महराजगंज में पंकज का छक्का मारना आसान नहीं

महराजगंज लोकसभा सीट से पांच जीत हासिल कर चुके भाजपा के दिग्गज पंकज चौधरी की छठी जीत आसान नहीं होगी। दिग्गज कांग्रेसी हर्षवर्धन के निधन के बाद अब विधानपरिषद के पूर्व उपसभापति गणेश शंकर पांडेय और सपा के पूर्व सांसद अखिलेश सिंह के रूप में पंकज के समक्ष कठिन विरोधी हैं। लोकसभा सीट पर दूसरे नंबर के प्रत्याशी का फार्मूला चला तो महराजगंज से गणेश शंकर पांडेय का गंठबंधन उम्मीदवार बनना तय हैं। गणेश बसपा के पूर्व उम्मीदवार काशीनाथ शुक्ला के मैदान छोडऩे के बाद महराजगंज में पूरी तरह सक्रिय हैं। उधर, कुंवर अखिलेश सिंह भी जनसंपर्क और गन्ना भुगतान जैसे मुद्दों को उठाकर खुद को सक्रिय बता रहे हैं। कांग्रेस की तरफ से हर्षवर्धन के करीबी शरद कुमार सिंह के साथ ही युवा चेहरे राकेश गुप्ता टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।

देवरिया में टिकट को लेकर भाजपा में घमासान

देवरिया सदर से भाजपा सांसद कलराज मिश्र को पत्रकारिता छोड़ राजनीति में कूदे शलभ मणि त्रिपाठी से चुनौती मिल रही है। पिछले दो साल से शलभ देवरिया में सक्रिय हैं। भाजपा एमएलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह और गोरखपुर की पूर्व महापौर डॉ.सत्या पांडेय की भी महत्वाकांक्षा देवरिया लोकसभा सीट को लेकर कुलांचे मार रही हैं। पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने वाले बसपा के नियाज अहमद के टिकट को लेकर इस बार संशय बना हुआ है। जानकार मान रहे हैं कि बसपा गठबंधन में सीट मिलने की स्थिति में यहां उम्मीदवार बदल सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा के टिकट पर बालेश्वर यादव ने दावेदारी की थी, इस बार उन्हें अपनी ही पार्टी के पूर्व मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी से चुनौती मिल रही है। कांग्रेस ने पिछले बार सभा कुंवर को टिकट दिया था, लेकिन बदले हालात में कांग्रेसी दिग्गज अखिलेश सिंह को कांग्रेस मैदान में उतार सकती है।

सलेमपुर में ओमप्रकाश राजभर हैं अहम फैक्टर

पिछले लोकसभा चुनाव में वर्तमान में भाजपा के बागी तेवर दिखा रहे ओमप्रकाश राजभर ने तीसरा स्थान हासिल कर जोरदार चुनौती दी थी। मोदी लहर और वोटों के बंटवारे के चलते भाजपा के रविन्द्र कुशवाहा यह सीट जीतने में सफल हुए थे। ओमप्रकाश राजभर के बागी तेवर देखते हुए जानकार कुछ भी भविष्यवाणी करने से बच रहे हैं। भाजपा राजभर को मनाने में सफल रहती है तो वह एनडीए के उम्मीदवार हो सकते हैं। राजभर का सपा-बसपा गठबंधन की तरफ झुकाव होता है तो भी वह विरोधी गठबंधन के भी उम्मीदवार हो सकते हैं। बलिया की विधानसभा सीटों के चलते यहां पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के परिवार का दबदबा है। यहां से पिछली बार सपा के टिकट पर चुनाव लडऩे वाले रवि शंकर सिंह एक बार फिर गठबंधन के उम्मीदवार बनने के लिए दावेदारी पेश कर रहे हैं।

कुशीनगर में सभी आरपीएन सिंह से ही लड़ेंगे

अमेठी और रायबरेली के बाद कुशीनगर सीट पर कांग्रेस का मजबूत दखल माना जाता है। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बाद भी भाजपा के राजेश पांडेय को काफी पसीना बहाना पड़ा था। सपा और बसपा मिलकर भी कांग्रेस के बराबर वोट नहीं हासिल कर सके थे। कुंवर आरपीएन सिंह बदले हुए सियासी माहौल में क्षेत्र में सक्रिय नजर आ रहे हैं। बसपा ने संगम मिश्रा को चुनाव के कुछ महीने पहले ही उतारा था। इस बार उनके टिकट पर संशय बना हुआ है। पूर्व मंत्री राधेश्याम सिंह क्षेत्र में सक्रिय हैं। बसपा और सपा का गठबंधन हुआ तो राधेश्याम सिंह मजबूत दावेदार होंगे।

डुमरियागंज में आसान नहीं पाल की डगर

पिछले लोकसभा चुनाव के ऐन पहले कांग्रेस का पट्टा उतारकर भगवा धारण करने वाले जगदम्बिका पाल एक बार फिर पूरी दमदारी से लगे हुए हैं। सिद्धार्थनगर में मेडिकल कॉलेज से लेकर रेल की सुविधा का हवाला देकर वह एक बार फिर लोकसभा पहुंचने का दावा कर रहे हैं। हालांकि इस बार उनकी डगर आसान नहीं दिख रही है। पाल और बसपा के बीच पिछले चुनाव में करीब एक लाख वोटों का अंतर था। डुमरियागंज में गठबंधन का फार्मूला चला तो दूसरे स्थान पर रहने वाले मोहम्मद मुकीम मजबूत साबित होंगे। हालांकि धनबली आफताब आलम भी बसपा का झंडा लेकर पिछले दो वर्षों से क्षेत्र में भ्रमण कर रहे हैं। डुमरियागंज में मुस्लिम वोट निर्णायक हैं। विपक्ष इनके बिखराव को रोकने के कामयाब रहता है तो भाजपा की राह आसान नहीं होगी। अखिलेश सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे माता प्रसाद त्रिपाठी और पीस पार्टी के अध्यक्ष मोहम्मद अयूब भी सीट के मजबूत चेहरे हैं।

बस्ती में पुराने दिग्गजों की प्रतिष्ठा लगेगी दांव पर

बस्ती लोकसभा सीट पर मोदी मैजिक के सहारे युवा चेहरे हरीश द्विवेदी ने जीत हासिल कर सभी को चौंकाया था। पांच साल बाद उनके दिग्गज विरोधी नये सिरे से घेरने में जुटे हुए हैं। पिछले चुनाव में सपा और बसपा अगल-अलग चुनाव लड़ी थी। भाजपा के मुकाबले सपा और बसपा के वोटों को जोड़ दें तो उसे काफी अधिक वोट मिले थे। सपा में इस बार समीकरण बदला हुआ नजर आ रहा है। पूर्व कैबिनेट मंत्री राजकिशोर सिंह के रिश्ते अखिलेश यादव से मुलायम सिंह की तरह नहीं है। उनके भाई बृज किशोर सिंह उर्फ डिम्पल भी लोकसभा चुनाव और एमएलसी चुनाव हार चुके हैं। सपा-बसपा गठबंधन में बस्ती सीट से बसपा के पुराने दिग्गज राम प्रसाद चौधरी की दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही है। उधर, भाजपा के हरीश द्विवेदी मुंडेरवा चीनी मिल के चालू होने और जिले में हुए फोरलेन निर्माण के सहारे इस बार भी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं।

संतकबीर नगर में भाजपा की राह में मुश्किलें

संतकबीर नगर सीट पर भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ.रमापतिराम त्रिपाठी के बेटे शरद त्रिपाठी ने मोदी लहर में सपा के दिग्गज भालचंद यादव और बसपा के भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी को पटखनी देकर सभी को चौंकाया था। शरद के ही निमंत्रण पर पिछले दिनों पीएम मोदी मगहर पहुंचे थे जहां उन्होंने मगहर के विकास को लेकर कई घोषणाएं की थीं। बसपा और सपा का गठबंधन होता है तो यहां से भीष्म शंकर की दावेदारी मजबूत होगी। हालांकि भालचंद यादव भी सपा के पुराने दिग्गज हैं। वह पूरे क्षेत्र में काफी सक्रिय भी बने हुए हैं। शरद को भरोसा है कि पीएम मोदी के मगहर दौरे के दौरान हुई घोषणाओं और कल्याणकारी योजनाओं के सहारे जीत हासिल कर लेंगे। उधर, कांग्रेस के टिकट पर पिछली बार चुनाव में भाग्य आजमाने वाले रोहित पांडेय एक बार फिर पूरी मजबूती से लडऩे की तैयारी में जुटे हैं।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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