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Gorakhpur Loksabha Election 2024: गोरखपुर लोकसभा सीट जातीय गणित में उलझा, सीएम योगी के गढ़ में कितना सफल होगा सपा का दांव
Gorakhpur Me Kaun Jeet Raha Hai: साढ़े तीन दशक से गोरक्षपीठ की परंपरागत सीट होने की वजह से पीठ का खड़ाऊं लेकर चुनावी मैदान में उतरने वाले रवि किशन उसी आभा मंडल के सहारे दूसरी बार भी संसद जाने के प्रयास में लगे हुए हैं। लेकिन काजल निषाद कड़ी टक्कर दे रही हैं।
Gorakhpur Loksabha Election 2024: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गोरखनाथ मंदिर की वजह से चर्चा में रहने वाली गोरखपुर लोकसभा सीट पर वर्तमान सांसद रवि किशन दूसरी बार चुनावी मैदान में उतरें हैं। लेकिन इस बार उनको इंडिया गठबंधन की ओर से चुनावी मैदान में उतारीं सपा उम्मीदवार काजल निषाद कड़ी चुनौती दे रहीं हैं। बसपा ने कोर मतदाताओं के साथ अल्पसंख्यक को साधने के लिए जावेद सिमनानी को उम्मीदवार बनाया है। साढ़े तीन दशक से गोरक्षपीठ की परंपरागत सीट होने की वजह से पीठ का खड़ाऊं लेकर चुनावी मैदान में उतरने वाले रवि किशन उसी आभा मंडल के सहारे दूसरी बार भी संसद जाने के प्रयास में लगे हुए हैं। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यहां कई ताबड़तोड़ रैलियां और जनसभा करके रवि किशन के पक्ष में माहौल तैयार कर रहे हैं। इतना ही नहीं, गोरखपुर में 29 मई को गृहमंत्री अमित शाह का बड़ा रोड शो होगा। करीब 8 किलोमीटर के इस रोड शो में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा के कई दिग्गज नेता शामिल होंगे। अमित शाह गोरखपुर से भाजपा प्रत्याशी सांसद रवि किशन के पक्ष में वोट की अपील करेंगे। गृहमंत्री अमित शाह के कार्यक्रम की कमान सीएम योगी खुद संभाल रहे हैं।
सपा और बसपा की यह है रणनीति
सपा हर बार निषाद बहुल लोकसभा क्षेत्र गोरखपुर से निषाद उम्मीदवारों के जरिये ही दांव आजमाती रही है। हालांकि आम चुनाव में यह हमेशा बेअसर ही साबित हुआ है। पिछली बार निषाद उम्मीदवार रामभुआल निषाद को रवि किशन से मिली करारी हार के बाद एक बार फिर सपा ने पुरानी रणनीति अपनाते हुए काजल निषाद को चुनाव मैदान में उतारा है। सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने यहां एक बड़ी रैली की। ये दोनों नेता गोरखपुर में अपने सपा उम्मीदवार काजल निषाद के पक्ष में वोट करने की अपील की। कांग्रेस और सपा की संयुक्त रैली की कमान संभालने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव सत्यनारायण पटेल खुद गोरखपुर में डेरा डाले हुए थे। वहीं बसपा उम्मीदवार जावेद सिमनानी को यहां के 10 प्रतिशत मुस्लिम और 12 प्रतिशत दलित आबादी पर भरोसा है। कुल 22 प्रतिशत मतदाता के साथ बसपा पिछड़ा वर्ग के बीच भी सक्रिय दिख रही है, फिर भी यहां के लोग बसपा को फाइट में नहीं मानते हैं। लेकिन बसपा सुप्रीमों मायावती ने भी यहां जनसभा करके अपने उम्मीदवार के पक्ष में माहौल बनाया है।
गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र में ये हैं मुद्दे
गोरखपुर के लोग सीएम योगी के कार्यकाल में प्रदेश में स्थापित लॉ एंड ऑर्डर से खुश हैं। लेकिन महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त हैं। उनका का कहना है कि भाजपा के पास हिंदू-मुस्लिम के अलावा कोई खास मुद्दा नहीं है। वोट भी मंदिर के नाम पर मांग रही है। भाजपा से नाराजगी भी है, मगर हमारे सामने कोई ऐसा दमदार उम्मीदवार नहीं है, जिसके लिए भाजपा को वोट ना देकर उसे चुने। कुछ भी हो लेकिन भाजपा सरकार में काम बहुत हुए हैं। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि आम मतदाता को सिर्फ खुद के फायदे के लिए वोट नहीं देना चाहिए। बल्कि देश अगर मजबूत हो रहा है तो इस बात का ध्यान रखकर ही अपना वोट देना चाहिए। जब भी देश मजबूत होगा तो कुछ चुनौतियां जरूर आएंगी। महंगाई, बेरोजगारी जैसे छोटे मसलों को सोचकर अगर दूसरी पार्टियों को वोट दे भी दिया जाए तो फिर से देश में आतंकी हमले, घोटाले जैसी चीजें आम हो जाएंगी। भाजपा ने 500 साल से टेंट में पड़े रामलला को मंदिर में पहुंचा दिया। ऐसे में आखिर भाजपा को क्यों ना वोट दिया जाए?
इंडिया गठबंधन को ऐसे हो सकता है फायदा
गोरखपुर लोकसभा सीट पर 2018 के उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। उस समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में भी भाजपा के उम्मीदवार को जीत हासिल नहीं करा सकी थी। सपा और बसपा का गठबंधन सभी समीकरणों पर भारी रहा था। उस वक्त भी उम्मीदवार निषाद समुदाय से था। वैसा ही कुछ इस बार भी आम लोगों की चर्चा में सुनने को मिल रहा है। सपा की उम्मीदवार फिल्म अभिनेत्री काजल निषाद यहां से कई चुनाव भी लड़ चुकी हैं। उन्हें पहचान की भी कोई कमी नहीं है। वह खुद को यहां की बहुरिया बताती हैं। उनके पति निषाद समुदाय से हैं और यहां के लोकल निवासी भी है। ऐसे में साढ़े चार लाख से ज्यादा निषाद मतदाता यदि अपना रुख बदलते हैं तो उनका साथ निभाने के लिए 2 लाख 25 हजार यादव और 1 लाख 50,000 से अधिक मुस्लिम पूरी तरह से तैयार हैं। जिनकी संख्या भी मिलाकर निषाद समुदाय से कम नहीं है, यदि यह फैक्टर सटीक बैठ गया तो पासा पलट भी सकता है, पूरा इंडिया गठबंधन इसी फैक्टर को साधने में लगा हुआ है। हालांकि, भाजपा और एनडीए के पाले में बैठे निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद निषादों में एक अच्छी पैठ रखते हैं और निषाद वोट बैंक को डाइवर्ट करने की क्षमता रखते हैं। भाजपा के कोर वोटर में 3 लाख ब्राह्मण-ठाकुर हैं। भूमिहार और वैश्य मतदाता भी करीब 1.50 लाख हैं। यह बिरादरी ज्यादातर भाजपा के उम्मीदवार को चुनती है। बता दें कि गोरखपुर लोकसभा सीट पर आज तक हुए 19 चुनाव में 6 बार कांग्रेस, 8 बार भाजपा, 1 बार सपा, 2 बार निर्दलीय, 1 बार हिंदू महासभा और 1 बार जनता पार्टी ने जीत का स्वाद चखा है। ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार यहां की राजनीति 4 जून को किस करवट लेती है।