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गोरखपुर में बच्चों की मौत का मामला: सिसकी, सियासत और सच्चाई

Gagan D Mishra
Published on: 18 Aug 2017 12:24 PM IST
गोरखपुर में बच्चों की मौत का मामला: सिसकी, सियासत और सच्चाई
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गोरखपुर में बच्चो की मौत का मामला: सिसकी, सियासत और सच्चाई

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: ऑक्सीजन की कमी से तड़प-तड़प कर काल की गाल में समाने वाले मासूमों के अभागे मां - बाप की सिसकी, नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप से मचे सियासी घमासान और अरबों खर्च के बाद बदहाल जमीनी हकीकत के बीच गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज एक बार फिर सुर्खियों में है। अपने ही घर के आंगन में मौतों से विचलित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्री जहां मौतों को मौसमी बताने पर तुले हैं तो विपक्ष को लगता है कि दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले इससे बेहतर मुददा शायद ही दूसरा मिले।

गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज वर्तमान में इलाज के सेंटर की बजाय सियासत का केंद्र नजर आ रहा है। सत्ताधारी भाजपा और सत्ता से बेदखल सपा और कांग्रेस के बीच सियासी माईलेज लेने की होड़ मची हुई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह कह रहे हैं कि ‘वर्ष 1996 से अबतक इंसेफेलाइटिस को लेकर सडक़ से लेकर संसद तक मैंने लड़ाई लड़ी है। यहां लापरवाही से बच्चों को मरने नहीं देंगे। दोषियों को ऐसी सजा देंगे जो मिसाल बनेगी।’

वहीं मेडिकल कॉलेज में सबसे पहले पहुंचने वाले राज्यसभा के विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद का कहना है कि ‘जिस 100 बेड के आईसीयू में लापरवाही से मौतें हुईं हैं वह यूपीए सरकार ने बनवाया है। यूपीए सरकार ने ही इंसेफेलाइटिस से लडऩे के लिए चिकित्सकीय और नगरीय सुविधाओं के लिए 4500 करोड़ रुपये का बजट पूर्वांचल को दिया है।’

वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का दावा है कि ‘मेडिकल कॉलेज में दो सौ बेड का अस्पताल सपा सरकार ने दिया। 500 बेड के बाल रोग विभाग की बिल्डिंग बनकर तैयार है। योगी सरकार इसे चालू नहीं करा रही है।’

फौरी तौर पर देखें तो सभी अपने दावों के करीब हैं लेकिन सवाल उठता है कि जब इतना कुछ सभी ने किया तो मासूमों की मौतें क्यों नहीं थम रही है। इंसेफेलाइटिस क्यों चार दशक से ‘कातिल मेहमान’ बना हुआ है। इसी साल जनवरी से 15 अगस्त तक क्यों सिर्फ मेडिकल कॉलेज में 144 मासूमों की मौतें इंसेफेलाइटिस से हो चुकी हैं।

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कमाई का औजार है इंसेफेलाइटिस

जमीनी पड़ताल बताती है कि इंसेफेलाइटिस सभी सरकारों के लिए भ्रष्टाचार का एक औजार बना हुआ है। मेडिकल कॉलेज में चिकित्सक कमीशन के खेल से लेकर प्राइवेट प्रैक्टिस से मोटी कमाई में लगे हुए हैं। जबकि प्रशासनिक अफसर योजनाओं के मद में आने वाले करोड़ों रुपये की लूट-खसोट में जुटे दिखते हैं। सरकारों के दावों की हकीकत जानने के लिए ‘अपना भारत’ की टीम शहर से बमुश्किल तीन किमी दूर स्थित बाघागाड़ा गांव पहुंची। यहां पिछले सप्ताह तीन मौतें हुईं थीं। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी इसी गांव में मृतक मासूमों के परिवारीजनों से मिलने पहुंचे थे।

गांव के बाहर ही ओवरहेड टंकी नजर आती है। एईएस प्रभावित गांव बाघागाड़ा में केन्द्र सरकार की मदद से सपा सरकार में तत्कालीन मंत्री अरविन्द सिंह गोप ने तीन साल पहले 194 लाख रुपये की पेयजल योजना का लोकार्पण किया था।

योजना के लोकार्पण को तीन वर्ष का लंबा समय गुजर चुका है लेकिन एक भी घर में नल से पानी नहीं पहुंचा है। गांव की सनवारी बताती हैं कि ‘चार जगह पानी की सार्वजनिक सप्लाई है। लेकिन वहां टोंटी नहीं लगी है। सुबह 7 से 10 बजे तक पंप चलता है। पानी खुले में बहता है।’ पंप आपरेटर जय सिंह दो टूक जवाब देते हैं कि ‘मेरा काम पंप चलाना है। पानी कहां जाता है, कहां गिरता है, इससे मेरा कोई मतलब नहीं है।’

ओवरहेड के ठीक बगल में होम्योपैथिक अस्पताल और प्राथमिक स्कूल के दो इंडिया मार्का हैंड पंप खराब पड़े हैं। गांव में कूड़ा इधर-उधर फेंका हुआ दिखता है। ड्रेनेज का कोई इंतजाम नहीं है। गांव की बुजुर्ग झिनकी बताती हैं कि बमुश्किल 90 घरों में शौचालय है। लोग बाहर ही शौच के लिए जाते हैं।

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अधूरी है करोड़ों की योजनाए

वर्ष 2005 में दो हजार से अधिक मौतों के बाद यूपीए सरकार ने चिकित्सकीय सुविधाओं के साथ स्वच्छ पानी की आपूर्ति के लिए 4500 करोड़ रुपये पूर्वांचल के जिलों के लिए जारी किये थे। गोरखपुर और आसपास के जिलों में दो दर्जन से अधिक पेयजल योजनाएं शुरू हुईं। दावा किया गया कि सभी घरों में नल से पानी की सप्लाई होगी। बांसगांव में ओवरहेड पता बताने के काम आ रहा है। पिपरौली ब्लाक में पाइप लाइन बिछा दी गई लेकिन ओवरहेड नहीं बन सका।

दरअसल, गोरखपुर और आसपास के जिलों में 400 करोड़ की पेयजल योजनाएं शुरू हुईं। लेकिन बजट के अभाव में 80 फीसदी योजनाएं अधूरी पड़ी हैं। 200 करोड़ रुपये से अधिक खर्च के बाद 500 परिवारों तक भी स्वच्छ पानी नहीं पहुंच सका है। सपा सरकार में 500 बेड का बाल रोग अस्पताल भवन का निर्माण करीब 400 करोड़ खर्च करके किया गया है। चुनाव से ऐन पहले इसका लोकार्पण भी कर दिया गया। बावजूद बिल्डिंग सफेद हाथी बनी हुई है।

चरम पर सियासी घमासान

मासूमों की लाश पर कमोबेश सभी राजनीतिक दल सियासी रोटियां सेंकने को आतुर हैं। प्रदेश सरकार जहां मौतों को रूटीन बताकर मामले को दबाने में जुटी है तो विपक्षी इस मुददे को शांत नहीं होने देना चाहते। तभी तो 11 अगस्त की घटना के दूसरे ही दिन राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर, संजय सिंह और प्रमोद तिवारी गोरखपुर मेडिकल कॉलेज पहुंच गए। गुलाम नबी ने इसे सामूहिक हत्या बताते हुए योगी को देश से माफी मांगने की नसीहत दे डाली।

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मृतकों के परिवारीजनों के बीच पहुंच गए। पूर्व मुख्यमंत्री ने ऑक्सीजन की कमी से मरे सभी मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा कर दी। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष लालजी वर्मा के नेतृत्व में पहुंचे नेताओं ने भी योगी सरकार को कटघरे में खड़ा किया। प्रदेश सरकार के दोनों स्वास्थ्य मंत्री सिद्घार्थ नाथ सिंह और आशुतोष टंडन के मेडिकल कॉलेज पहुंचने के दूसरे दिन स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नडडा का पहुंचना संकेत करता है कि भाजपा मुददे पर विपक्ष को सियासी नफा लेने से रोकने को पूरी तरह तत्पर है।

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ऑक्सीजन की कमी ने छीन ली खुशी

बिछिया जंगल तुलसी राम में रहने वाले जाहिद की पांच वर्षीय बेटी खुशी की मौत भी 11 अगस्त को ऑक्सीजन की कमी से हुई थी। जाहिद के घर सपा नेता पहुंचे लेकिन कोई अफसर नहीं आया। मेडिकल कालेज में मीडिया के जमावड़े के बीच जाहिद को बेटी की लाश देकर पिछले दरवाजे से जाने का फरमान सुना दिया गया था। मोहल्ले में सभी नटखट खुशी को जानते हैं। जाहिद के घर पहुंचने के लिए कूड़े और नाली के पानी के बीच से होकर चलना मजबूरी है। जाहिद पानी का जार साइकिल पर बांध कर ले जाते हुए मिलते हैं। कहते हैं कि ‘वाटर सप्लाई नहीं है। आरओ का पानी लेना मजबूरी है। बेटे की जिंदगी बचानी जरूरी है।’ जाहिद 11 की रात को भूलना चाहते हैं। वह बताते हैं कि एक नर्सिंग होम में बेटी को भर्ती कराया था। चंद घंटों में 10 हजार खर्च हो गए। उसके बाद डाक्टर ने कहा मेडिकल कॉलेज लेकर जाओ। मेडिकल कालेज में भर्ती के बाद कुछ सुधार हुआ था। लेकिन 11 अगस्त की सुबह ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित हो गई। डाक्टरों ने एम्बुबैग देकर चलाने को कहा। लगातार एम्बुबैग चलाया। शाम 7 बजे बेटी का शरीर ठंडा पड़ गया। डाक्टरों से पूछा कि बेटी जिंदा है या मर गई। डाक्टरों ने डांट कर भगा दिया। बोले, एम्बुबैग चलाओ। रात 10 बजे बोले, तुम्हारी बेटी मर गई है। पिछले दरवाजे से निकल जाओ।’ दरअसल, ये दर्द सिर्फ ब्रह्मदेव या जाहिद का ही नहीं है। ऑक्सीजन की कमी से तड़पते बच्चों को देखने वाले बेबस मां - बाप की सुनने वाला कोई नहीं हैंं।

छिन गये मुरादों से पाये बच्चे

गांव में ब्रह्मदेव यादव के घर घुटने भर पानी में घुसकर पहुंचना पड़ा। ये वही ब्रह्मदेव यादव हैं जिनके जुड़वा बच्चों ने ऑक्सीजन की कमी से मेडिकल कॉलेज में दम तोड़ दिया था। बीते 14 अगस्त को इनके घर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ढांढस बंधाने पहुंचे थे। ब्रह्मदेव बताते हैं कि 2011 में उनकी शादी हुई थी। काफी दवा और दुआ के बाद पहली अगस्त को जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ। पीलिया की शिकायत पर 5 अगस्त को मेडिकल कालेज में बेटे को दिखाया। डाक्टरों ने बेटी को भी यह कहते भर्ती कर लिया कि इसकी भी तबियत ठीक नहीं है। 10 अगस्त की शाम बेटे की तो 11 अगस्त की सुबह बेटी की मौत हो गईं।

बच्चों को खोने के बाद सुधबुध खो चुकीं मां सुमन कहती हैं कि दोनों बच्चों की सांसों को अपनी आंखों के सामने उखड़ते देखा है। काफी दवा और दुआ के बाद बच्चे हुए थे, ऑक्सीजन की कमी से दोनों को छीन लिया गया। कभी दुबारा मां बन पाउंगी या नहीं। इतना कहते ही फफक कर रो पड़ती है। ब्रह्मदेव बताते हैं कि बेटे और बेटी की लाश को दफन किया है। मेरी मांग है कि दोनों का पोस्टमार्टम हो। तभी साफ होगा कि बच्चे ऑक्सीजन की कमी से मरे या नहीं। ब्रह्मदेव सवाल खड़ा करते हैं कि पूरी रात एम्बुबैग चलाने का निर्देश चिकित्सक दे रहे थे। गांव के प्रधान अंगद निषाद बताते हैं कि टोंटी से पानी सप्लाई के लिये जलनिगम के अफसरों से कई बार गुहार की गयी है। शौचालय का पैसा मिले तब तो निर्माण कराया जाए।

क्या कहा राजनेताओं ने

अखिलेश यादव, पूर्व मुख्यमंत्री: मुख्यमंत्री मासूमों के मौतों के जिम्मेदारों के नाम बताएं। हालांकि सरकार की जांच पर भरोसा नहीं किया जा सकता। वह पहले ही ऑक्सीजन की सप्लाई ठप होने से हुई मौतों को नकार रही है। सपा सरकार द्वारा बनाए गए 500 बेड के वार्ड को जरुरी सुविधाएं देकर जल्द चालू कराएं।

गुलाम नबी आजाद, राज्यसभा में नेता विपक्ष: यूपीए सरकार द्वारा किये गए कार्य ही मेडिकल कॉलेज में दिख रहे हैं। पूर्वांचल को 4500 करोड़ यूपीए ने दिया है। मुख्यमंत्री को मासूमों की मौतों को लेकर हुई लापरवाही को स्वीकारते हुए देश से माफी मांगनी चाहिए। निष्पक्ष जांच के लिए संसदीय कमेटी का गठन किया जाए।

योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री: मीडिया सही तस्वीर प्रस्तुत करे, फेक रिपोर्टिंग से बचे। इंसेफेलाइटिस को लेकर मुझसे अधिक कौन संवेदनशील है? वर्ष 1996 से सडक़ से लेकर संसद तक लड़ रहा हूं। मुख्य सचिव की जांच रिपोर्ट आने दीजिये, दोषियों को मिलने वाली सजा मिसाल बनेगी।



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