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विधि और नैतिकता एक दूसरे के पूरक हैं, विपरीत नहीं - न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा "विधि, नैतिकता और समकालीन समाज' विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आज समापन हुआ। संगोष्ठी के संयोजक विधि संकाय के संकायाध्यक्ष प्रोफेसर जितेंद्र मिश्रा ने अतिथियों के स्वागत भाषण किया और संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुये कहा कि नैतिकता सामाजिक व्यवहार की संहिता है और उसका एक मापदंड है।
गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा "विधि, नैतिकता और समकालीन समाज' विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आज समापन हुआ। संगोष्ठी के संयोजक विधि संकाय के संकायाध्यक्ष प्रोफेसर जितेंद्र मिश्रा ने अतिथियों के स्वागत भाषण किया और संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुये कहा कि नैतिकता सामाजिक व्यवहार की संहिता है और उसका एक मापदंड है। उन्होंने उदाहरण देते हुये कहा कि "परहित सरिस धर्म नही भाई, परपीड़ा सम नही अधमाई" में "परहित" की बात ही नैतिकता है।
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समापन सत्र के अवसर पर अति विशिष्ट अतिथि उच्च न्यायालय इलाहाबाद के न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने कहा कि विधि और नैतिकता एक दूसरे के पूरक है विपरीत नहीं। विधि और नैतिकता का आपसी समन्वय ही एक आदर्श विधि का निर्माण करती है।नैतिकता की आवश्यकता विधि को प्रवर्तित कराने में पड़ती है। हमें नैतिक मूल्यों को बचाए रखना होगा और इसको यथासंभव कोशिश करनी होगी कि हम एक बेहतर समाज बनाने के लिए विधि एवं नैतिकता को आपसी समझ से सुदृढ़ करें।
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समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी लखनऊ के कुलपति प्रोफेसर एस. के. भटनागर ने कहा कि नैतिकता का कार्य समाज के व्यवस्थाओं को मजबूत बनाना होता है। यह समाज को बाध्य करते हैं चाहे वह हिंदू हो या किसी अन्य धर्म के। नैतिक नियम जब विधि द्वारा प्रवर्तित हो जाते हैं तो वह विधिक नियम बन जाते हैं। स्वच्छन्दता बहुत प्राचीन है। लीव इन रिलेशनशिप पर कुछ समाज में निश्चित ही रोक है परंतु कुछ समाज में यह औचित्यपूर्ण है। वह समय परिस्थिति व स्थान पर निर्भर करता है। इस समय सामाजिक नैतिकता व संवैधानिक नैतिकता में तनाव चल रहा है। यह समय की मांग है कि विधि और नैतिकता में सामंजस्य स्थापित किया जाय।
विशिष्ट अतिथि के रूप में गोरखपुर के महापौर सीताराम जायसवाल ने कहा कि भारत की संस्कृति में हमेशा से नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दिया गया है परंतु आज के समय मे नैतिकता का हास हुआ है, नैतिकता का हास मानवीय मूल्यों का हास है लेकिन अब जरूरत है ऐसे विधि को व्यवहार में लाये जिसमे नैतिकता का समावेश हो।नैतिकता ही समाज का मूल है। विधि दंड दे सकती है नैतिकता व्यक्ति के आचरण को बल देती है।
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समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग के प्रोफेसर श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि आमतौर पर निर्णय के दो आधार होते है - साक्ष्य और द्रष्टान्त। जब साक्ष्य और दृष्टांत दोनों निर्णय लेने में सहयोग नही करते है तब केवल विवेक सहयोग करता है और यही विवेक नैतिकता का सारतत्व है। कानून सबसे ज्यादा मान्य तब होता है जब उसके पीछे नैतिकता का प्रभाव होता है।
समापन सत्र का संचालन व आभार ज्ञापन आयोजन सचिव टी. एन. मिश्रा ने किया।
आयोजन सचिव डॉ. टी.एन. मिश्रा ने बताया कि विश्वविद्यालय के संवाद भवन में चलने वाले इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में उत्तर प्रदेश, दिल्ली व बंगाल आदि से जगहों से गणमान्य अतिथियों ने शिरकत किया व इस दौरान 543 शोध छात्र, विद्यार्थी व अध्यापकों ने रजिस्ट्रेशन कर अपनी प्रतिभागिता दर्ज कराई व इस दो दिवसीय संगोष्ठी के दौरान चलने वाले कुल 6 तकनीकी सत्रों में लगभग 100 लोगो ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये ।
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इस राष्ट्रीय संगोष्ठी को सफल बनाने में विधि विभाग के शिक्षक प्रोफेसर नसीम अहमद, प्रोफेसर चंद्रशेखर सिंह, डॉ. शैलेश सिंह, डॉ. अभय मल्ल, डॉ. आशीष शुक्ला, डॉ. हरिश्चंद्र पांडेय, डॉ. मनीष राय, डॉ. शिवपूजन सिंह, डॉ. ओ. पी. सिंह, डॉ. वेद प्रकाश राय, डॉ सुमन लता चौधरी, डॉ. वंदना सिंह, डॉ आलोक सिंह, डॉ रजनीश श्रीवास्तव, श्री अमित दुबे, श्री जेपी आर्या, श्री आर. के. त्रिपाठी आदि सहित का सक्रिय सहयोग रहा ।
इस अवसर पर प्रोफेसर उपेंद्र नाथ त्रिपाठी, प्रो. संजय बैजल, प्रो. सतीश चंद्र पांडेय आदि उपस्थित रहें।