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Gorakhpur News: राम मंदिर आंदोलन के लिए शैव-वैष्णव विवाद खत्म करने के साथ सभी पंथों के धर्माचार्यों को एक मंच पर लाए थे महंत अवेद्यनाथ
Gorakhpur News: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु और गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर रहे ब्रह्मलीन महंत अवेद्य नाथ ने भेद भाव को खत्म करने के लिए बनारस के डोम राजा के आवास से लेकर गांव-गांव दलितों के साथ सहभोज का आयोजन किया।
Gorakhpur News: राम मंदिर के आंदोलन को एक समय जाति-पाति से लेकर शैव-वैष्णव के विवाद में उलझा कर साजिशें हो रही थीं, इन साजिशों को खत्म कर आंदोलन को तीव्रता देने वाले संत का नाम महंत अवेद्यनाथ है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु और गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर रहे ब्रह्मलीन महंत अवेद्य नाथ ने भेद भाव को खत्म करने के लिए बनारस के डोम राजा के आवास से लेकर गांव-गांव दलितों के साथ सहभोज का आयोजन किया। आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया। महंत अवेद्यनाथ इसके आजीवन अध्यक्ष रहे।
1980 में सामाजिक समरसता के जरिए हिन्दू समाज की एकता के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया था। लगातार कोशिश करते-करते 1984 में देश के शैव-वैष्णव, सभी पंथों के धर्माचार्यों को एक मंच पर लाने में वह सफल रहे। आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया। महंत अवेद्यनाथ इसके आजीवन अध्यक्ष रहे। उन्होंने राममंदिर आंदोलन के लिए संतों को आमजन से जोड़ दिया। कर्नाटक के उडुपी में 31 अक्टूबर और एक नवम्बर 1985 को धर्मसंसद का दूसरा अधिवेशन हुआ। इसमें 175 सम्प्रदायों के 850 धर्माचार्य शामिल हुए।
महंत अवेद्यनाथ के प्रयास से हुए धर्म संसद में निर्णय हुआ कि भक्तों के लिए ताला नहीं खुला तो 9 मार्च 1986 से देश के कोने-कोने के हजारों धर्माचार्य अपने लाखों शिष्यों के साथ सत्याग्रह करेंगे। जिसके बाद 51 प्रमुख धर्माचार्यों की एक अखिल भारतीय संघर्ष समिति बनी। महंत अवेद्यनाथ को अखिल भारतीय संयोजक नियुक्त किया गया। सत्याग्रह की तैयारियों के बीच एक फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला जज ने विवादित ढांचे के दरवाजे पर लगा ताला खोलने का आदेश दे दिया। अदालत के फैसले के बाद महंत अवेद्यनाथ और अन्य धर्माचार्यों के आह्वान पर घर-घर दीये जलाए गए थे। 22 सितम्बर 1989 को महंत अवेद्यनाथ की अध्यक्षता में दिल्ली में विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ। इसमें घोषित कर दिया गया कि नौ नवम्बर 1989 को जन्मभूमि पर शिलान्यास किया जाएगा। इस दिन एक दलित से शिलान्यास कराकर महंत अवेद्यनाथ ने राममंदिर आंदोलन को सामाजिक समरसता से जोड़ दिया।
बूटा सिंह की चुनौती स्वीकारते हुए चुनाव लड़ा और संसद में पहुंचे
एक बार कांग्रेस नेता बूटा सिंह ने महंत अवेद्यनाथ को चुनौती देते हुए कहा था यदि वास्तव में जनता आपके साथ है तो फिर आप चुनाव लड़कर संसद में क्यों नहीं आते। तब महंत अवेद्यनाथ, अशोक सिंघल और परमहंस रामचंद्रदास की इस त्रिमूर्ति ने उस चुनौती को स्वीकार किया। गोरक्षपीठाधीश्वर ने बूटा सिंह से कहा, ‘हमारी अगली भेंट अब संसद में ही होगी’। धर्मसंसद के आग्रह पर 1989 में हिन्दू महासभा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे और संसद में पहुंचकर राममंदिर की आवाज बुलंद की। मंदिर निर्माण की अधूरी इच्छा लिए महंत दिग्विजयनाथ ने 28 सितम्बर 1969 को समाधि ले ली। उनके बाद महंत अवेद्यनाथ गोरक्षपीठाधीश्वर बने। पीठ की कमान संभालते ही महंत अवेद्यनाथ ने जन्मभूमि की मुक्ति के लिए अपने गुरु की जलाई मशाल थाम ली।