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Gorakhpur News: सीएम योगी ने पुस्तक ‘नाथपंथ के इतिहास’ का किया लोकार्पण, देशभर से जुटाए गए हैं ऐतिहासिक स्रोत

Gorakhpur News: सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने नाथपंथ के इतिहास पर दीनदयाल उपाध्‍याय गोरखपुर विश्‍वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग की असिस्‍टेंट प्रोफेसर डॉ. पद्मजा सिंह की पुस्‍तक 'नाथपंथ का इतिहास' का लोकार्पण किया।

Purnima Srivastava
Published on: 14 Sept 2024 4:16 PM IST
CM Yogi launched the book
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सीएम योगी ने पुस्तक ‘नाथपंथ के इतिहास’ का किया लोकार्पण, देशभर से जुटाए गए हैं ऐतिहासिक स्रोत: Photo- Newstrack

Gorakhpur News: मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने नाथपंथ के इतिहास पर दीनदयाल उपाध्‍याय गोरखपुर विश्‍वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग की असिस्‍टेंट प्रोफेसर डॉ. पद्मजा सिंह की पुस्‍तक 'नाथपंथ का इतिहास' का लोकार्पण शनिवार को किया। प्रमाणिक साक्ष्‍यों से भरपूर, नाथपंथ के रहस्‍यों को खोलती यह पुस्तक इस विषय पर किसी इतिहासकार द्वारा लिखित अब तक की यह तीसरी पुस्‍तक है। इसे नाथपंथ और उससे संबंधित विषयों पर शोध करने वाले अध्येताओं के लिए अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण और उपयोगी माना जा रहा है।

शनिवार को दीनदयाल उपाध्‍याय गोरखपुर विश्‍वविद्यालय में विश्‍वविद्यालय और हिन्‍दुस्‍तानी एकेडेमी उत्‍तर प्रयागराज (भाषा विज्ञान उत्‍तर प्रदेश शासन) के संयुक्‍त तत्‍वावधान में आयोजित 'समरस समाज के निमाण में नाथपंथ का अवदान' द्विदिवसीय अन्‍तर्राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी में पुस्‍तक का लोकार्पण हुआ। मुख्‍यमंत्री ने बतौर मुख्‍य अतिथि इस संगोष्‍ठी को संबोधित किया। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता गोरखपुर विश्‍वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने की। इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी, अमरकंटक के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी भी मौजूद रहे।

पुस्‍तक के लिए देशभर से जुटाए गए हैं ऐतिहासिक स्रोत

डॉ. पद्मजा सिंह ने अपनी पुस्‍तक में देशभर में बिखरे ऐतिहासिक स्रोतों को जुटाया है और उसकी ऐतिहासिक दृष्टि से तथ्‍यात्‍मक व्‍याख्‍या की है। नाथपंथ के परम्‍परागत तथ्‍यों को नाथपंथ के योगियों और इस परम्‍परा के ज्ञाता नाथपंथ के विद्वानों से पुष्‍ट किया गया है। इस पुस्‍तक की भूमिका डॉ. प्रदीप राव ने लिखी है। उनके मुताबिक नाथपंथ को ऐतिहासिक दृष्टि से पढ़ने-समझने के लिए यह अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण पुस्‍तक है।

आदि शंकर से है नाथपंथ की शुरुआत

नाथपंथ की शुरुआत आदिनाथ शंकर से मानी जाती है। महायोगी गुरु गोरखनाथ ने इसे मौजूदा स्‍वरूप दिया। उन्‍हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है। महायोगी गोरखनाथ भारतीय इतिहास के पहले तपस्‍वी हैं जिन्‍होंने विशुद्ध योगी और तपस्‍वी होते हुए भी सामाजिक-राष्‍ट्रीय चेतना का नेतृत्‍व किया। उन्‍होंने नाथपंथ का पुनर्गठन ही सामाजिक पुनर्जागरण के लिए किया। नाथपंथ के हठ योगियों ने समय-समय पर समाज और राष्‍ट्र के लिए बड़ी भूमिकाओं का निर्वहन किया है। इस पंथ की योग साधना पातंजल विधि का विकसित स्‍वरूप है।

नाथपंथ की परंपरा में दुनिया का सर्वोच्‍च नाथपंथी केंद्र गोरखनाथ मंदिर है। गोरक्षपीठाधीश्‍वर दुनिया भर में नाथपंथ के अध्‍यक्ष होते हैं। मुख्‍यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्‍वर महंत योगी आदित्‍यनाथ वर्तमान में इस पंथ के अगुआ हैं। डा. पद्मजा सिंह की पुस्‍तक भक्ति आंदोलन में नाथ पंथ की महत्‍वपूर्ण और केंद्रीय भूमिका का रहस्‍योद्घाटन करते हुए कहती है कि 'यद्यपि कि भक्ति आंदोलन में सब कुछ नाथपंथ जैसा ही नहीं था, तथापि नाथपंथी ज्ञान और योग की साधना से ही भक्ति का स्‍वर फूटा।' पुस्‍तक के बारे में बताते हुए डॉ. डा. पद्मजा सिंह कहती हैं, यह पुस्‍तक नाथ पंथ और उससे संबंधित विषयों पर शोध करने वाले अध्येताओं के लिए अत्‍यंत उपयोगी है। नाथपंथ के अध्‍येता के तौर पर डा. प्रदीप राव कहते हैं पुस्‍तक में इस बात का पूरा ध्‍यान रखा गया है कि आस्था को बिना कोई चोट पहुंचाए तथ्यों के आलोक में नाथ पंथ का प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत किया जाए। नाथ पंथ से जुड़े अनेक अनुत्तरित प्रश्नों के समाधान का मार्ग इस पुस्‍तक से निकलेगा।

नाथपंथ के अभ्युदय और विस्तार का प्रामाणिक वर्णन

नाथपंथ के इतिहास को समेटे इस पुस्‍तक में बौद्धमत, जैनमत के साथ शैव, वैष्‍णव, पांचरात्र, कापालिक, पाशुपत से लेकर नाथपंथ के अभ्‍युदय और विस्‍तार का प्रमाणिक वर्णन करते हुए स्‍वत: शुद्धिकरण के लिए भारतीय धर्म संस्‍कृति में मत-मतान्‍तर के महत्‍व पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही सामाजिक विकृतियों और पाखंड के खिलाफ महायोगी गोरखनाथ के सामाजिक पुनर्जागरण अभियान और पहले से प्रचलित नाथपंथ को पुर्नजीवन और भारतीय समाज को नई दिशा देने के इतिहास को सामने लाया गया है। नाथ पंथ पर डा.पद्मजा सिंह की एक और पुस्‍तक 'नाथ पंथ: वर्तमान उपादेयता का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्‍य' शीर्षक से आ चुकी है। महायोगी गोरखनाथ विश्‍वविद्यालय के कुलसचिव डा. प्रदीप राव उस पुस्‍तक में डॉ. पद्मजा के साथ सहलेखक हैं।



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