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Gorakhpur News: जीवन को लेकर आयुर्वेद, योग और नाथपंथ की मान्यता एक, बोले CM योगी

Gorakhpur Latest News: सीएम योगी सोमवार को महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम के गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) की तरफ से आयुर्वेद, योग और नाथपंथ के पारस्परिक अंतरसंबंधों को समझने के लिए आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन विशेष व्याख्यान दे रहे थे।

Purnima Srivastava
Published on: 13 Jan 2025 3:13 PM IST
CM Yogi Adityanath Statement Gorakshnaath Institute of Medical Sciences University
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 CM Yogi Adityanath Statement Gorakshnaath Institute of Medical Sciences University ( Pic- Social- Media)

Gorakhpur News in Hindi: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारतीय मनीषा मानती है कि ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्'। अर्थात धर्म की साधना के लिए शरीर ही माध्यम है। धर्म के सभी साधन स्वस्थ शरीर से ही संभव हो सकते हैं। धर्मपरक जीवन से ही अर्थ, कामनाओं की सिद्धि और फिर मोक्ष प्राप्ति संभव है। इस परिप्रेक्ष्य में धर्म साधना से जुड़े जीवन को लेकर आयुर्वेद, योग और नाथपंथ की मान्यता के समान है।

सीएम योगी सोमवार को महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम के गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) की तरफ से आयुर्वेद, योग और नाथपंथ के पारस्परिक अंतरसंबंधों को समझने के लिए आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन विशेष व्याख्यान दे रहे थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में ‘आयुर्वेद, योग और नाथपंथ का मानवता के प्रति योगदान’ विषय पर केंद्रित अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि आयुर्वेद की मान्यता है कि चराचर जगत पंचभूतों से बना है। इन्हीं पंचभूतों से हमारा शरीर भी बना है। महायोगी गुरु गोरखनाथ ने भी कहा है कि पिंड में ही ब्रह्मांड समाया है। जो तत्व ब्रह्मांड में है वही हमारे शरीर में भी हैं।

आयुर्वेद, योग और नाथपंथ सबका ध्यान नियम-संयम पर

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारतीय मनीषा में हर व्यक्ति के जीवन का एक अभीष्ट होता है, धर्म के पथ पर चलते हुए मोक्ष की प्राप्ति करना प्रति करना। धर्म की साधना के लिए स्वस्थ शरीर की अपरिहर्ता हमारे ऋषियों, मुनियों ने बताई है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेद, योग और नाथपंथ, तीनों नियम-संयम पर जोर देते हैं। आयुर्वेद में जहां व्याधियों को दूर करने के लिए औषधियों और पंचकर्म की पद्धतियां हैं तो वही योग में भी हठयोग, राजयोग, ज्ञानयोग, लययोग और क्रियायोग की विशिष्ट विधियां हैं। इसी क्रम में शरीर की आरोग्यता के लिए नाथपंथ का हठयोगी योग को खट्कर्म से जोड़ता है। आयुर्वेद, योग और नाथपंथ की पद्धतियां, तीनों ही वात, पित्त और कफ से जनित रोगों के निदान के लिए एक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं और वह मार्ग है नियम-संयम। सीएम योगी ने कहा कि आयुर्वेद, योग और नाथपंथ तीनों ही व्यवहारिकता के स्तर पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। तीनों ने ही शरीर को पंचभौतिक माना है।

नाथ योगियों ने दिया है अंतःकरण की शुद्धि पर जोर

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि नियम-संयम का जीवन में बड़ा महत्व है। योग ने उसी को जोड़ा है। अंतःकरण की शुद्धि नियम-संयम से ही हो सकती है। नाथ योगियों ने क्रियात्मक योग के माध्यम से नियम संयम की विशिष्ट विधा दी है। कौन सी क्रिया का लाभ कब प्राप्त होगा, नाथ योगियों ने इसे विस्तार से समझाया है। उन्होंने कहा कि योग के कई आसनों के नाम नाथ योगियों के नाम पर हैं जैसे गोरखआसन, मत्स्येंद्रआसान, गोमुखआसन आदि। सीएम योगी ने कहा कि नाथ परंपरा में हर नाथ योगी जनेऊ धारण करता है जो उसे शरीर की नाड़ियों से अवगत कराता है। नाथ जनेऊ की उपयोगिता उसे योगी की दीक्षा के समय बताई जाती है। योग हर नाथ योगी के जीवन का अभिन्न हिस्सा होता है।

चेतना के उच्च आयाम पर पहुंचने का मार्ग दिखाया गुरु गोरखनाथ ने

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरु गोरखनाथ ने चेतना के उच्च आयाम तक पहुंचाने का मार्ग दिखाया है। उन्होंने चेतन मन के साथ ही अवचेतन और अचेतन मन को साधने की क्रिया भी सिखाई है। मानव मन, बिना साधना के जितना चेतन होता है वह संपूर्ण चेतना का बहुत छोटा भाग है। योग के माध्यम से साधना की चरम सीमा पर जाकर हम अवचेतन और अचेतन मन के रहस्यों को उद्घाटित कर सकते हैं। नाथ योगियों की साधना का उद्देश्य भी यही रहा है।

शरीर की साधना से ही अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति

मुख्यमंत्री ने कहा कि शरीर की यही साधना अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों को प्राप्त करने का माध्यम भी है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार जीवन के लिए प्राण आवश्यक है उसी प्रकार मन की वृत्तियों और शरीर के बीच तारतम्य स्थापित करने के लिए प्राणायाम भी आवश्यक है।

भारत की ज्ञान धारा को प्राप्त हो रहा प्राचीन गौरव

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अपने प्राचीन ज्ञान के धरोहरों से हमने दूरी बनानी प्रारंभ की तो एक समय ऐसा भी आ गया कि भारतीय हीन भावना का विषय बन गए। अपने दिव्यज्ञान के स्रोत से वंचित होते गए। हमारी प्राचीन आयुर्वेद की दवाओं को बाहरी लोगों ने पेटेंट करना शुरू कर दिया। पर, आज यह सुखद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में भारत की प्राचीन ज्ञान धारा, आयुर्वेद और योग को फिर से प्राचीन गौरव प्राप्त हो रहा है। पूरी दुनिया एक बार फिर आयुर्वेद और योग के प्रति केंद्रित होकर भारत के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर रही है।

सृष्टि के कालखंड की सबसे प्राचीन है भारतीय संस्कृति

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नाथ ने कहा कि भारत की सभ्यता और संस्कृति अति प्राचीन है। सृष्टि के कालखंड की सबसे प्राचीन संस्कृति भारतीय संस्कृति को माना जाता है। अलग-अलग कालखंड में ऋषियों, मुनियों ने अपनी ज्ञान के धारा के अनुभव से इसे नया आयाम प्रदान किया। पहले ज्ञान की परंपरा गुरु शिष्य के माध्यम से श्रवण परंपरा थी। उसे लिपिबद्ध करने का कार्य महर्षि वेदव्यास ने चार संहिताओं के माध्यम से किया। महर्षि वेदव्यास ने न केवल चार वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की रचना की बल्कि उन्होंने श्रीमद्भागवत पुराण समेत 18 पुराणों की रचना को भी ज्ञान से जोड़कर भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाया। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत पुराण आज भी भारत वासियों को धर्म का सही मार्ग दिखाता है।

धर्म पथ पर चलकर सफलता के चरम पर पहुंचना ही मोक्ष

मुख्यमंत्री ने कहा कि मोक्ष या मुक्ति सिर्फ मरण से नहीं मिलती है बल्कि श्रीमद्भागवत के अनुसार धर्म के पथ पर चलते हुए सफलता के चरम पर पहुंचना ही मोक्ष है। महर्षि वेदव्यास ने भागवत पुराण के माध्यम से यह शिक्षा दी है कि सभी लोग धर्म के मार्ग का अनुसरण करें। धर्म के मार्ग का अनुसरण करने पर अर्थ और कामनाओं की भी सिद्ध हो सकती है।

धर्म केवल उपासना तक सीमित नहीं

सीएम योगी ने कहा कि भारतीय मनीषा ने धर्म को उपासना तक सीमित नहीं माना है। धर्म का स्वरूप विराट परिप्रेक्ष्य में निर्धारित किया गया है। कर्तव्य, सदाचार और नैतिक मूल्य के विशिष्ट जीवन पद्धति को समग्र रूप में भारतीय मनीषा धर्म के रूप में स्थापित करती है। धर्म के मार्ग से अर्थ और कामनाओं की सिद्धि से मोक्ष अपने आप प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि हिंदू कहलाने के लिए मंदिर जाना या धार्मिक ग्रंथो का पढ़ना आवश्यक नहीं है। हमारी सनातन परंपरा में धर्म को एक व्यापक दृष्टि से देखा और समझा गया है।

ज्ञान के लिए सभी दरवाजे खुले रखो

सीएम योगी ने कहा कि एक विश्वविद्यालय या शिक्षा संस्थान रचनात्मक कार्यों से वर्तमान पीढ़ी को नवीन ज्ञान से ओतप्रोत करता है। हमारे वैदिक संस्कृति का सूत्र भी यही है, ‘आनो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।’ अर्थात ज्ञान के लिए सभी दरवाजे खुले रखो। ऐसे में इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से ज्ञान के प्रति जड़ता तोड़ने और उसे नवीनता से परिपूर्ण करने में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा।

स्वागत संबोधन महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुरिंदर सिंह और आभार ज्ञापन आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्य डॉ. गिरिधर वेदांतम ने किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री के सलाहकार अवनीश अवस्थी, मुख्यमंत्री के सलाहकार एवं भारत सरकार के पूर्व औषधि महानियंत्रक डॉ. जीएन सिंह,

आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एके सिंह, बीएचयू के वरिष्ठ आचार्य डॉ. के. रामचंद्र रेड्डी,

इजराइल के आयुर्वेद औषधि विशेषज्ञ वैद्य गुई लेविन, श्रीलंका से आए आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. टी. वीररत्ना, महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रदीप कुमार राव सहित संगोष्ठी में देश और दुनिया से प्रतिभागी, शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

संगोष्ठी की स्मारिका और दो पुस्तकों का सीएम ने किया विमोचन, स्टालों का किया अवलोकन

मंच पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी की स्मारिका और डॉ. के. रामचंद्र रेड्डी व डॉ. शांतिभूषण हांदुर द्वारा लिखित दो पुस्तकों का विमोचन किया। मंच पर आगमन से पूर्व उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माताओं डाबर, वैद्यनाथ, श्रीधुतपापेश्वर, ऐमिल, हिमालया और वैद्यरत्नम की तरफ से लगाए गए स्टालों का भी अवलोकन किया।



Shalini Rai

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