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Gorakhpur News : नाथपंथ की साधना से जुड़े चिह्नों को इकट्ठा कर डिजिटल रूप देने की जरूरत, संगोष्ठी में बोले सीएम योगी

Gorakhpur News: आज नाथपंथ की साधना पद्धति से जुड़े चिह्नों, अवशेषों को इकट्ठा कर डिजिटल रूप से संजोने की जरूरत है।

Purnima Srivastava
Published on: 25 March 2025 9:54 PM IST
Gorakhpur News : नाथपंथ की साधना से जुड़े चिह्नों को इकट्ठा कर डिजिटल रूप देने की जरूरत, संगोष्ठी में बोले सीएम योगी
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Gorakhpur News: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा ने भौतिकता का अतिक्रमण कर ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजा है। नाथपंथ की सिद्ध साधना पद्धति ने भी लोक कल्याण केंद्रित इसी आध्यात्मिक परंपरा को आगे बढ़ाया है। उत्तर में तिब्बत से लेकर सुदूर दक्षिण में श्रीलंका तक तथा पूर्व में इंडोनेशिया और बांग्लादेश से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक भारतीय साधना पद्धति के चिह्न देखने को मिलते हैं। आज नाथपंथ की साधना पद्धति से जुड़े चिह्नों, अवशेषों को इकट्ठा कर डिजिटल रूप से संजोने की जरूरत है। यदि हम ऐसा कर सकें तो वर्तमान और भावी पीढ़ी को भारतीय ज्ञान परंपरा और साधना पद्धति विरासत के रूप में सौंप सकेंगे।

सीएम योगी मंगलवार को दोपहर बाद दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित ‘भारतीय योग परंपरा में योगिराज बाबा गंभीरनाथ जी का यौगिक अवदान’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नाथपंथ के चिह्नों और अवशेषों को एकत्र कर संजोने में गोरखपुर विश्वविद्यालय में बनाए गए महायोगी गुरु गोरखनाथ शोध पीठ और योगिराज बाबा गंभीरनाथ शोध पीठ बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने कहा कि विरासत पर गौरव की अनुभूति करने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी साधना पद्धतियों से वर्तमान और भावी पीढ़ी को परिचित करा सकें। उन्होंने कहा कि यदि समय रहते हमने विरासत को नहीं संजोया तो साधना पद्धतियों के लिए भी योग के पेटेंट जैसा संघर्ष करना पड़ सकता है। मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर के नाथपंथ की परंपरा से जुड़ाव का उल्लेख करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में नवनाथों की गाथा का वर्णन ऐसे होता है जैसे उत्तर भारत में सुंदरकांड का।

सीएम योगी ने कहा कि देश और दुनिया में भारतीय ज्ञान परंपरा के तीन आयामों बौद्ध, आदि शंकराचार्य और महायोगी गोरखनाथ की साधना से जुड़े चिह्न यत्र-तत्र मिलते हैं। इनमें भी नाथपंथ की परंपरा किसी न किसी नाथयोगी और सिद्धों के माध्यम से विद्यमान रही है। तिब्बत की पूरी परंपरा गोरखनाथ, नवनाथों या चौरासी सिद्धों के माध्यम से प्रस्तुत होती है। देश के अनेक स्थानों पर भी नाथपंथ से जुड़े स्थल, मठ, मंदिर या गुफाओं में अवशेष मिलते हैं।

सीएम योगी ने कहा कि नाथपंथ की परंपरा भगवान शिव से आगे बढ़ती है। योगी मत्स्येंद्रनाथ से आगे महायोगी गोरखनाथ ने इसे व्यवस्थित रूप दिया। ऐसी मान्यता है कि महायोगी गोरखनाथ, शिव जी के ही योगी रूप हैं। गोरखनाथ जी ने नाथपंथ की साधना पद्धति को सबके लिए बनाया, चाहे वह किसी भी जाति, क्षेत्र या लिंग का हो। उन्होंने कहा कि नाथपंथ के साधना पद्धति की विद्यमानता अलग अलग कालखण्डों में रही है। इसी परंपरा में महायोगी गोरखनाथ ने गोरखपुर को लंबे समय तक अपनी साधना स्थली बनाकर उपकृत किया। गोरखपुर की पहचान उन्ही के नाम पर है।

साधना सिद्धि का लोक कल्याण केंद्रित उपयोग किया बाबा गंभीरनाथ ने

सीएम ने कहा कि किसी साधक को योग की विशिष्टता एक सिद्ध योगी ही बता सकता है। जब एक सिद्ध योगी लोक कल्याण के लिए असम्भव से कार्य को मानव रूप में करके दिखाता है तो लोग चमत्कार के प्रति आकर्षित होते हैं। योगिराज बाबा गंभीरनाथ जी महाराज ऐसे ही चमत्कारिक सिद्ध योगी थे। 1870 कि दशक में उनका आगमन गोरखपुर हुआ था। उन्होंने गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महंत गोपालनाथ जी से दीक्षा ली। उसके बाद साधना और सेवा कार्य में रत हो गए। उन्होंने काशी, प्रयाग, नर्मदा तट, गया आदि स्थलों पर साधना कर चरम सिद्धि प्राप्त की।

उन्होंने इस सिद्धि का जब भी उपयोग किया तो लोक कल्याण केंद्रित ही रहा। विज्ञान की सीमाओं का अतिक्रमण करके उन्होंने अपनी साधना सिद्धि से लोक कल्याण का कार्य किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी को मंदिर के उद्धार करने की जिम्मेदारी योगिराज बाबा गंभीरनाथ ने ही दिलाई थी। उनकी शिष्य परंपरा देश के कई राज्यों में है। योगिराज बाबा गंभीरनाथ के समाधिस्थ होने के 108 साल बाद भी जब भी गोरखनाथ मंदिर में कोई आयोजन होता है तो बंगाल, गया, रांची, धनबाद आदि जगहों से उनकी शिष्य परंपरा के लोग यहां आकर कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

दुनिया जब अंधकार में थी, ऋषि परंपरा ज्ञान को कर रही थी संहिताबद्ध

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कहना कि भारत की ज्ञान परंपरा ने टेक्नोलॉजी पर ध्यान नहीं दिया, सही नहीं है। यह भारतीय ज्ञान परंपरा को आकने में कमी है। दुनिया जब अंधकार में थी तब पांच हजार वर्ष से भी पहले हमारी ऋषि परंपरा ज्ञान को संहिताबद्ध करने का कार्य कर रही थी। वेदव्यास को गुरुओं का गुरु इसीलिए कहा जाता है कि उन्होंने ज्ञान परंपरा को लिपिबद्ध कर मानवता का मार्गदर्शन किया। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा को दुनिया तक पहुंचाया। सीएम ने कहा कि महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसमें धर्म अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का वर्णन है। दुनिया के अन्य किसी ग्रंथ में ऐसा आख्यान नहीं मिलता। मुख्यमंत्री ने कहा कि ब्रह्मांड के रहस्याओं को जानना हो तो उपनिषद सबसे बड़ा ज्ञान का भंडार है। उन्होंने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा से खुद को दूर कर लेने का ही परिणाम है कि जो दुनिया पहले हमारे पीछे भागती थी, अब हम उसके पीछे भागने लगे।

दस वर्षों में सब ने देखा है बदलते भारत को

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बीते दस वर्षों में हम सबने बदलते भारत को देखा है। आज हर कोई भारत आना चाहता है, भारत से संबंध रखना चाहता है। भारत को जानने वाला हर व्यक्ति गर्व की अनुभूति करता है। उन्होंने कहा कि योग को दुनिया के 193 देश अपना रहे हैं। चीन जैसा नास्तिक देश भी अब विशिष्ट आयोजन करता है। जिस देश ने धर्म को अफीम मान लिया था, वह देश भी बौद्ध दर्शन पर शोध कर रहा है। यह भारत की विजय नहीं तो और क्या है। यही भारत की विजय है।

आध्यात्मिकता में गोता लगाने वाला ही कर सकता है ताकत का आकलन

सीएम योगी ने कहा कि भारत की आध्यात्मिकता में गोता लगाने वाला ही भारत की ताकत का सही आकलन कर सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने प्रयागराज महाकुंभ का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की आध्यात्मिकता का दिग्दर्शन अभी हाल ही में महाकुंभ प्रयागराज के अवसर पर देश और दुनिया ने किया है। यहां देश के प्रधानमंत्री ने आकर मां गंगा की उतर आरती उतारी और गंगाजल का आचमन किया। फिर इसके बाद तो दुनिया टूट पड़ी। सब लोग प्रयागराज आने को उतावले दिखे। 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने भारत के आध्यात्मिकता की ताकत को महसूस किया। यह ऐसी ताकत है जो भौतिक बंधनों से बंध नहीं सकती।

सत्य केवल एक, उस तक पहुंचने के मार्ग भले ही अलग-अलग

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि दुनिया के अंदर लगभग 200 देश हैं। उन सबकी अपनी पहचान, अपनी परंपराएं, अपनी विशेषता भी है। उपासना विधियां भी बहुत सारे देशों की मिलती हैं लेकिन इसके बावजूद उनमें मतभिन्नता भी है। दुनिया के अंदर जो प्रभावशाली देश है उन सबकी विशिष्ट पहचान है। किसी ने व्यापार में पारंगत हासिल की है, किसी ने अपनी कला के माध्यम से अपनी पहचान बनाई है। किसी ने नवाचार से अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है। किसी ने अपनी विरासत के संरक्षण के माध्यम से पहचान दुनिया के अंदर बनाई है। इसके बावजूद भौतिक जगत से जुड़ी हुई सबकी अपनी सीमाएं हैं। पर, इन सबके बीच दुनिया के अंदर एक देश है जिसने भौतिक सीमाओं का अतिक्रमण करके ब्रह्मांड के रहस्यों का भी उद्घाटन किया है। और, वह देश है हमारा भारत। भारत की मनीषा ने ही यह कहा है की सत्य केवल एक है, उस तक पहुंचने का मार्ग अलग हो सकते हैं।

सभ्यता के आख्यान हैं योगीराज बाबा गंभीर नाथ के कार्य : प्रो श्रीवास्तव

विशिष्ट अतिथि नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय नालंदा के आचार्य प्रो. रवींद्रनाथ श्रीवास्तव ने कहा कि आज बाबा गंभीरनाथ के माध्यम से हम अपने समय को खंगाल रहे हैं। वह तेजस्विता संपन्न विद्वान थे। उन्होंने अनुभव और वैचारिकी से मानवीय गरिमा को स्थापित किया। उनके कार्य सभ्यता के आख्यान हैं। स्वागत संबोधन दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो पूनम टंडन ने किया जबकि आयोजन के उद्देश्यों की जानकारी राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक, योगिराज बाबा गंभीरनाथ शोध पीठ के प्रो द्वारिका नाथ ने दी। उद्घाटन सत्र का संचालन प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा ने किया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रो रवींद्रनाथ श्रीवास्तव, डॉ दीपक कुमार गुप्ता की पुस्तकों तथा राष्ट्रीय संगोष्ठी में आए शोध पत्रों पर आधारित कर संक्षेपिका का विमोचन भी किया।

नाथ परंपरा पर आयोजित चित्रकला प्रदर्शनी का उद्घाटन

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में योगिराज बाबा गंभीरनाथ पर केंद्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मिलित होने से पूर्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विश्वविद्यालय के दीक्षा भवन में आयोजित ‘नवनाथ एवं नाथ परंपरा’ विषयक चित्रकला प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया। प्रदर्शनी का उद्घाटन करने के बाद उन्होंने नाथपंथ के गुरुओं के तैलचित्रों का अवलोकन किया। प्रदर्शनी में बीस योगियों और संतों के चित्र प्रदर्शित किए गए हैं। चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन राज की बौद्ध संग्रहालय ने गोरखपुर विश्वविद्यालय के सहयोग से किया है।

Ramkrishna Vajpei

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