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Gorakhpur News: दलित साहित्य में आत्मकथा केवल शिकायत नहीं बल्कि भोगे हुए व्यक्ति द्वारा दर्ज सामाजिक एफआईआर

Gorakhpur News: दलित चिंतक और साहित्यकार जय प्रकाश कर्दम ने कहा कि दलित साहित्य का एक महत्वपूर्ण बिंदु आत्मकथा है। लेकिन यह आत्मकथा केवल शिकायत नहीं बल्कि भोगे हुए व्यक्ति द्वारा दर्ज सामाजिक एफआईआर है।

Purnima Srivastava
Published on: 30 Jun 2024 8:27 PM IST
Speaker speaking at Dalit Literature Conference, Souvenir released
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दलित साहित्य सम्मेलन में बोलते वक्ता, स्मारिका का हुआ विमोचन: Photo- Newstrack

Gorakhpur News: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में असुरन-पादरी बाजार रोड पर स्थित एक मैरेज हाल में रविवार को दलित साहित्य संस्कृत मंच के तत्वावधान में आयोजित दलित साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें दलित चिंतक और साहित्यकार जय प्रकाश कर्दम ने कहा कि दलित साहित्य का एक महत्वपूर्ण बिंदु आत्मकथा है। लेकिन यह आत्मकथा केवल शिकायत नहीं बल्कि भोगे हुए व्यक्ति द्वारा दर्ज सामाजिक एफआईआर है। आत्मकथा मानवीय अपराधों की प्रकृति को भी परिभाषित करती है। कुल मिलाकर दलित साहित्य में आत्मकथा मानवीय अपराधों का संपूर्ण दस्तावेज है।

श्री कर्दम ने कहा कि दलित साहित्य को केवल दलितों तक ही नहीं पहुंचना चाहिए। उसे समाज में हर वर्ग तक पहुंचाने की जरूरत है। जिससे समाज में समानता का भाव पैदा हो सके। दलित साहित्य सम्मेलन 3 सत्र में रखा गया था। प्रथम सत्र में दलित साहित्य का वर्तमान परिदृश्य और समाज विषय पर चर्चा करते हुए मुख्य वक्ता विद्यानंद एवं बुद्ध शरण हंस ने अपनी बातें रखीं l इस सत्र का विषय परिवर्तन करते हुए रामविलास भारती ने कहा कि बहुजन साहित्य असमानता को प्रगट करता है। दलित साहित्य का मूल ही गैर बराबरी है।


हीरा डोम की कविता दलित साहित्य की शुरूआत

द्वितीय सत्र में विषय परिवर्तन करते हुए डॉक्टर अलख निरंजन ने कहा कि दलित शब्द उन लोगों को चिन्हित करता है, जो अछूत हैं। अंबेडकरवाद का सीधा-साधा मतलब लौकिक जगत से है। इस लौकिक जगत में जो साहित्य रचा जाता है, वही दलित साहित्य है। वर्ष 1924 में हीरा डोम की सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित कविता को दलित साहित्य की शुरुआत मानी जाती है। द्वितीय सत्र दलित साहित्य और अंबेडकरवाद विषय पर मुख्य वक्ता श्रद्धा एचएल दुसाध ने कहा कि आर्थिक, सामाजिक गैर बराबरी के कारण ही दलित साहित्यकार रचना के लिए विवश हुए। तृतीय सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. बीआर विप्लवी ने भविष्य का दलित साहित्य अब जीवन को जीने और सोचने के तरीके को उद्घाटित करें, इस बात को लेकर अभियान चलाएं। दलित साहित्य आने वाले समय में प्रकाश स्तंभ की तरह काम करेगा।

इस दौरान अतिथियों द्वारा स्मारिका ‘दलित विमर्श’ का विमोचन भी किया गया। इस दौरान साहित्यकार अमित कुमार, सूरज भारती, उमेश भाष्कर, इं.नागेन्द्र गौतम, ई.श्रवण कुमार निराला, आरबी भाष्कर, राम चंद्र त्यागी आदि उपस्थित रहे।

शब्दों के जरिये बयां की गई संवेदना बेहद अहम

द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता मोहनदास नैमिशराय ने कहा कि दलित साहित्य केवल पढ़ने और पढाने का साहित्य नहीं है। यह जीवन जीने का साहित्य है। दलित साहित्य में शब्दों का बहुत बड़ा योगदान है। शब्दों के जरिये बयां की गई संवेदना बेहद अहम है। जिसे आसानी से समझा जा सकता है। सम्मेलन के तृतीय सत्र दलित साहित्य का भविष्य और भविष्य का दलित साहित्य विषय पर रखा गया। इसका विषय परिवर्तन डॉ. राम नरेश राम ने किया। उन्होंने दलित साहित्य के भविष्य पर खतरा का अनुमान लगाते हुए कहा कि दलित साहित्य पर बहुत से लोगों की नजरें तिरछी हुई हैं।



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Shashi kant gautam

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