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Gorakhpur: पानी से आर्सेनिक को गायब कर देंगे ये पांच बैक्टीरिया, DDU के रिसर्च में मिली बड़ी उपलब्धि

Gorakhpur News: पीने के पानी में मौजूद आर्सेनिक कैंसर, दिव्यांगता की प्रमुख वजह आर्सेनिक के दुष्प्रभावों को कम करने वाले पांच बैक्टीरिया की खोज से विश्वविद्यालय काफी उत्साहित है।

Purnima Srivastava
Published on: 9 May 2024 7:34 AM IST
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आर्सेनिक से प्रभावित व्यक्ति  (photo: social media )

Gorakhpur News: पूर्वांचल में गोरखपुर से बलिया तक पानी में आर्सोनिक की अधिक मात्रा से कैंसर से लेकर अपंगता हो रही है। सरकारें शुद्ध पानी को लेकर करोड़ों की योजनाएं लाई लेकिन कोई खास असर नहीं हुआ। लेकिन अब दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के शोध छात्रों ने ऐसे पांच बैक्टीरिया की खोज की है, जो पानी से आर्सेनिक की मात्रा को खत्म करने में कारगर है। डीडीयू प्रशासन अब इस शोध को पेटेंट कराने की तैयारी में है।

पीने के पानी में मौजूद आर्सेनिक कैंसर और दिव्यांगता की प्रमुख वजह आर्सेनिक के दुष्प्रभावों को कम करने वाले पांच बैक्टीरिया की खोज से विश्वविद्यालय काफी उत्साहित है। दो नए प्रजाति के बैक्टीरिया की विश्व में पहली बार पहचान हुई है। जबकि तीन बैक्टीरिया के नए स्ट्रेन हैं, उनके परिवार की पहचान है। तलाशे गए बैक्टीरिया पीने के पानी में आर्सेनिक की मानक से 35 लाख गुना अधिक मात्रा को नियंत्रित करने में सफल रहे हैं। बायोटेक्नोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. शरद कुमार मिश्रा और शोध छात्रा प्रियंका भारती के इस शोध को लेकर तमाम दावे हो रहे हैं। प्रो. शरद ने बताया कि यह तय था कि इन पांचों बैक्टीरिया में आर्सेनिक के दुष्प्रभाव को नियंत्रित करने की क्षमता हैं। इसके लिए पानी के नमूनों में आर्सेनिक की मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ाते हुए उसके बैक्टीरिया पर प्रभाव को जांचा गया। आर्सेनिक की मात्रा को पानी में 35 लाख गुना अधिक तक किया गया। करीब 35 हजार पीपीएम मात्रा वाले पानी में पांचों बैक्टीरिया न सिर्फ मौजूद रहे बल्कि वे आर्सेनिक के प्रभाव को 75 से 91 फीसदी तक सीमित भी करते मिले। कुलपति प्रो. पूनम टंडन की पहल पर विवि ने बैक्टीरिया के नामकरण के प्रस्ताव के साथ प्रक्रिया के पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया है।

265 ब्लॉक के पानी के नमूनों पर हुआ शोध

प्रोफेसर डॉ. शरद कुमार मिश्रा और शोध छात्रा प्रियंका भारती ने बताया कि रिसर्च के लिए पूर्वी यूपी के गोरखपुर, बस्ती, आजमगढ़, देवीपाटन और वाराणसी मंडल के 14 जिलों का चयन किया गया। यह आर्सेनिक प्रभावित जनपद हैं। इनमें 265 ब्लॉक से पानी के 300 नमूने लिए गए। जिनमें से 22 नमूनों में आर्सेनिक की मात्रा मानक से कई गुना अधिक मिली। प्रो. शरद ने बताया कि सामान्य तौर पर पीने के पानी में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) होता है। रिसर्च में पीने के पानी के 22 नमूने ऐसे मिले जिनमें आर्सेनिक की मात्रा मानक से 10,000 गुना अधिक थी। यह रिसर्च में सबसे बड़ा ब्रेकथ्रू मिला था। तीन साल तक चले रिसर्च में पानी के 300 नमूनों की जांच हुई। सैंपल में 91 फीसदी आर्सेनिक कम करने में सफलता मिली है।


बैक्टीरिया का होगा नामकरण

नामकरण के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्था को दिए सुझाव प्रो. शरद ने बताया कि पांचों बैक्टीरिया के नामकरण के लिए विश्वविद्यालय ने सुझाव दिए हैं। यह नामकरण अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल कोड ऑफ प्रोकैटिओटिका नोमेन क्लेचर करती है। जिन बैक्टीरिया के परिवार का पता है, उनके नए स्ट्रेन के लिए उनकी फैमिली से जुड़े नाम सुझाए गए हैं। जबकि इस प्रयोग में मिले दो नए बैक्टीरिया का नाम उनके गुण के आधार पर सुझाया गया है। मिले पांच प्रकार के बैक्टीरिया प्रो. शरद ने बताया कि अत्यधिक आर्सेनिक वाले पानी के नमूनों की दोबारा गहनता से जांच की गई। उसमें मौजूद मिनरल और बैक्टीरिया की पहचान की गई। इसमें पांच नए बैक्टीरिया मिले। जिसमें से तीन के परिवार की जानकारी किताबों में दर्ज है। यह उसके नए स्ट्रेन हैं। जबकि दो बैक्टीरिया बिल्कुल नए हैं। उनको लेकर किसी प्रकार की जानकारी मौजूद नहीं है।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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