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Gorakhpur News: दिल्ली एम्स के 44 साल पुराने प्रयोग से लौटी तीन मरीजों के आंखों की रोशनी

Gorakhpur News: डॉ. सुमित ने बताया कि तीन मरीजों को सर्जरी से पहले प्रयोग के तौर पर हाई न्यूरॉनिक एसिड इंजेक्शन लगाया गया। यह इंजेक्शन एक-एक हफ्ते के अंतराल पर दो महीने तक लगाया गया।

Purnima Srivastava
Published on: 14 April 2024 7:40 AM IST
Gorakhpur News
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आंखों की बीमारी प्रतीकात्मक तस्वीर (Pic: Social Media)

Gorakhpur News: मेडिकल चिकित्सा में इफेक्ट के साथ ही साइड इफेक्ट के कई मामले आते हैं। एक दवा कई बीमारियों में काम आती है। इसी प्रयोगधर्मिता पर चलते हुए गोखपुर के बीआरडी कालेज में चिकित्सकों ने तीन मरीजों की रोशनी दोबारा लाने में कामयाबी हासिल की। एम्स दिल्ली के 44 साल पुराने प्रयोग पर चिकित्सकों ने तीन मरीजों को गठिया में दिये जाने वाला इंजेक्शन दिया और उनकी आंखों की रोशनी वापस आ गई।

बीआरडी मेडिकल कालेज के न्यूरोलॉजी विभाग में तीन मरीज ऐसे थे जिनकी नर्व में गांठों के चलते आंखों की रोशनी चली गई थी। इसके बाद चिकित्सकों की मीटिंग में इन्हें एम्स के प्रयोग के आधार पर इलाज देने का निर्णय हुआ। जिसके बाद इन मरीजों के ऑप्टिव नर्व में गांठों को गलाने के लिए तीन मरीजों को यह इंजेक्शन लगाए गए। देखते हुए गाठें कम हुईं और आंखों की रोशनी भी लौट आई। इंजेक्शन का इस्तेमाल करने वाले न्यूरोलॉजी विभाग के डॉ. सुमित कुमार बताते हैं कि दिमाग में टीबी के कारण छोटी गांठें बन जाती हैं। इन्हें ट्यूबरक्लोसिस ट्यूमर भी कहते हैं। ज्यादातर यह गांठें दिमाग के पिछले हिस्से में आंख से जुड़ी नसों में बनती है।

इन नसों को ऑप्टिक नर्व कहा जाता है। इसका सामान्य तौर पर इलाज सर्जरी से होता है। ऑप्टिक नर्व की सर्जरी में सफलता की दर सीमित होती है। इसमें दिमाग के आसपास के हिस्सों से सर्जरी कर टीबी की गांठों को निकाला जाता है। डॉ. सुमित ने बताते हैं कि हड्डी रोग के चिकित्सक गठिया या यूरिक एसिड के मरीजों को हाई न्यूरॉनिक एसिड का इंजेक्शन लगाते हैं। इस इंजेक्शन में दर्द से त्वरित राहत देने की क्षमता होती है। साथ ही छोटी गांठों को यह एसिड गलाने लगता है। इसी का प्रयोग दिमाग की नस में बने टीबी की गांठ को गलाने में किया गया।

ऐसे लौटी आंखों की रोशनी

डॉ. सुमित ने बताया कि तीन मरीजों को सर्जरी से पहले प्रयोग के तौर पर हाई न्यूरॉनिक एसिड इंजेक्शन लगाया गया। यह इंजेक्शन एक-एक हफ्ते के अंतराल पर दो महीने तक लगाया गया। दूसरी डोज से ही इसका असर दिखने लगा। उनकी आंखों की रोशनी लौटने लगी। दिमाग में बनी गांठ का आकार छोटा होने लगा। इस इंजेक्शन का कोई साइड इफेक्ट नहीं है।

1980 में एम्स में हुआ था प्रयोग

बीआरडी के न्यूरोलॉजी विभाग के डॉ. सुमित ने बताया कि वर्ष 1980 से पहले गठिया के इंजेक्शन का खूब प्रयोग होता था। लेकिन उसके बाद इसके प्रयोग में तेजी से कमी आने लगी। टीवी मरीजों के इलाज में इस इंजेक्शन के प्रयोग प्रचलित पद्धति में शामिल नहीं है। हालांकि एम्स दिल्ली में इस इंजेक्शन का प्रयोग मरीजों पर होता है। वहां पर दिमाग में टीबी की गांठ के अलावा स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग के चिकित्सक भी बच्चेदानी की गांठ को गलाने में इसका प्रयोग करते हैं।



Jugul Kishor

Jugul Kishor

Content Writer

मीडिया में पांच साल से ज्यादा काम करने का अनुभव। डाइनामाइट न्यूज पोर्टल से शुरुवात, पंजाब केसरी ग्रुप (नवोदय टाइम्स) अखबार में उप संपादक की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद, लखनऊ में Newstrack.Com में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। भारतीय विद्या भवन दिल्ली से मास कम्युनिकेशन (हिंदी) डिप्लोमा और एमजेएमसी किया है। B.A, Mass communication (Hindi), MJMC.

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